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Aligarh News : जीआइ टैग से मिलेगी इगलास की चमचम को चमक, 1944 में रघ्घा सेठ ने की थी शुरुआत

Aligarh News अगर आप इगलास की ओर जाएं और चमचम न खाएं तो समझो उधर जाना व्‍यर्थ गया। मथुरा की ओर से अलीगढ़ आने वाले रास्‍ते में दोनों तरफ चमचम की दुकानें बरबस ही आपको अपनी ओर आकर्षित करेंगी।

By Yogesh KaushikEdited By: Anil KushwahaUpdated: Sat, 19 Nov 2022 01:35 PM (IST)
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आप मथुरा की ओर से अलीगढ़ आएं और इगलास में रुककर चमचम न खाएं तो सफर अधूरा ही लगेगा।
योगेश कौशिक, अलीगढ़ । Aligarh News : आप मथुरा की ओर से अलीगढ़ आएं और रास्ते में कस्बा इगलास में रुककर चमचम न खाएं तो सफर अधूरा ही लगेगा। इसके स्वाद की बात ही कुछ और है। विभिन्न तरह की मिठाई तो सभी जगह मिल जाएगी, लेकिन इस तरह की चमचम इगलास में ही मिलेगी, जिसकी मिठास विदेशों तक है। अब यह मिठाई जीआइ टैग की सूची होगी, जिससे इसकी विशिष्ट पहचान होगी। 

छेना और सूजी मिलाकर होता है तैयार

इगलास से गुजरते समय दोनों ओर इसकी दुकानें आकर्षित करती हैं। इसे बनाने का तरीका और स्वाद अलग है। इसकी शुरूआत वर्ष 1944 में रघुवर दयाल उर्फ रघ्घा सेठ ने की थी। खासियत यह है कि पहले दूध से छैना निकाला जाता है। छैना व सूजी मिलाकर गोले तैयार किए जाते हैं और फिर इसे चीनी की चासनी में सेका जाता है। इससे वह सुरक हो जाती है। इसे बनाने में घी या रिफाइंड को प्रयोग नहीं किया जाता। इससे यह जल्द खराब नहीं होती और स्वाद ऐसा कि आप वाह कहने लगें। पहले चमचम 25 पैसे की एक मिलती थी, आज 11 रुपये की एक है। पहले पैकिंग मिट्टी के बर्तन में होती थी, अब डिजाइनदार डिब्बों में। स्वाद आज भी वैसा ही है। समय के साथ स्वाद के चलते मांग बढ़ी तो दुकानों की संख्या भी बढ़ती चली गई। इगलास में चमचम बनाने वालों की करीब पचास दुकानें हैं। करीब 10 कुंतल चमचम की प्रतिदिन बिक्री होती है। यहां नाश्ते में चमचम अवश्य मिलती है। आने-जाने वालों से उनके परिचित इस खास मिठाई को मंगाना नहीं भूलते।

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क्या है जीआइ टैग

वर्ल्ड इंटलैक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन के अनुसार जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है।

इनका कहना है

चमचम को जीआइ टैग सूची में शामिल किया जाना चाहिए। हमारे पिता जी ने नया प्रयोग करके 1944 में चमचम बनाने की शुरुआत की थी। आज लोग दूर-दूर से चमचम लेने के लिए आते हैं।

- छोटेलाल सिंघल, चमचम विक्रेता

हमारे बाबा नेकसेराम ने 1947 में चमचम की दुकान खोली थी। उनके बाद पिता जी मंगलसेन ने विरासत को आगे बढ़ाया। अब हम भी इसी कारोबार से जुड़े हुए हैं। इसे सरकार के संरक्षण की जरूरत है।

- सुनील कुमार, चमचम विक्रेता

चमचम को जीआइ टैग मिलने से क्षेत्र की पहचान बढ़ेगी। 1980 से हम चमचम बेच रहे हैं, पहले हमारी दुकान बेसवां में थी। मिठाई के खाने वालों को चमचम काफी पसंद आती है।

- राहुल शर्मा, चमचम विक्रेता

जीआइ टैग के लिए चार दिन पहले मुख्य सचिव की वीडियो कान्फ्रेंसिंग में मशहूर खाद्य उत्पादों की सूची मांगी गई थी। इगलास की चमचम का प्रस्ताव भेजा गया है। जीआइ टैग होने के बाद चमचम की प्रदेश में अलग विशेष पहचान होगी।

- अंकित खंडेलवाल, सीडीओ

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