Kedarnath Disaster के 10 साल, अलीगढ़ के 41 परिवारों का दर्द, कहीं जल प्रलय में बह गई कार तो काेई पहाड़ में दबा
केदारनाथ त्रासदी को दस वर्ष हो गए हैं लेकिन आज भी अपनों की याद में छलक जाती हैं आंखें। अलीगढ़ से तीर्थयात्रा पर गए 41 परिवारों की आंखें आज भी अपनों को यादकर भर आती हैं। हर राेज अपनों की याद आती है। ये घाव आज तक नहीं भरे हैं।
अलीगढ़, जागरण टीम, (संदीप सक्सेना)। केदारनाथ का प्रलयकारी नजारा शायद ही भुलाया जा सके। बादलों का फटना और बिनाशकारी बाढ़। ये दृश्य जिसने देखे, तस्वीरें उसकी आंखों में समा गईं। जिसने सुना, उनकी आंखें नम हो जाती हैं। जिसने भोगा, उसके घाव अब तक नहीं भरे जा सके। वहां से उठी चीखें, अलीगढ़ तक सुनाईं दी थीं। त्रासदी से जिले के 41 परिवारों को सदैव के लिए गम मिला। तीर्थ यात्रा पर जाने वालों में शामिल ये 41 श्रद्धालु लौटकर घर नहीं आ सके।
दस वर्ष बाद भी अपनों की तलाश
केदारनाथा त्रासदी को 10 वर्ष हो गए हैं। लेकिन अपनों का इस तरह जाना नश्तर की तरह सदैव चुभता है। हर रोज घर में उनके बैठने, सोने वाले स्थान पर नजर जाती हैं आंखें भर आने की बात कहते हुए आगरा रोड की डा. रिचा कौशिक सुबक उठीं। उनके परिवार से दो लोग पहाड़ों में खोए हैं। मां व सास दोनों अब तक नहीं लौटी हैं। रिचा कौशिक बताती हैं कि अपनों को कौन भूल पाता है यादें सदैव पीछा करती हैं। जब स्वजन के बीच लंबी चर्चा होती है तो आंसू रुक नहीं पाते।
चार लोग मेलरोज बाइपास क्षेत्र के गए थे। इस क्षेत्र के अलावा बन्नादेवी, एटा चुंगी, पला रोड व सासनी गेट आदि क्षेत्र के 29 लोग एक ही बस में गए थे। इनमें से चालक व क्लीनर समेत पांच लोग बस पर रहे। शेष यात्रा में गए, जो लौट नहीं पाए।
मां की याद में गंगा किनारे किया हवन
बन्नादेवी निवासी इंजीनियर अनूप कुमार शर्मा का कहना है कि मैं केदारनाथ त्रासदी को भूल नहीं सकता। मेरी मां सुशीला, मौसी सत्यवती शर्मा, बुआ मनोरमा शर्मा, फूफा ब्र ब्रजभूषण शर्मा व कार चालक समेत सभी बाढ़ में बह गए थे। पिता रामरतन शर्मा की बचपन में हत्या हो गई थी। मेरे लिए मां की सब कुछ थी। मां को खोजने के लिए बाइक से केदारनाथ तक गया। अब भी साल में पांच-छह बार हरिद्वार, देहरादून आदि जगहों पर जाता हूं। शायद मां मिल जाए। मां की याद में हर साल नरौरा में गंगा किनारे हवन करता हूँ।
भाई की याद में रखता हूं मौन व्रत
मैलरोज फैक्ट्री के पास रहने वाले सत्यवीर सिंह ने बताया कि छोटा भाई नीरज केदारनाथ गया था। 15 जून 2013 की रात आखिरी बार फोन पर बात हुई थी। इसके बाद न बात हुई और न ही वह लौटकर आया। शव नहीं मिला, इसलिए लगता है, वह जिंदा है। उसकी याद में परिवार के सभी लोग मौन व्रत रखते है।
36 के ही बने मृत्यु प्रमाण पत्र
केदारनाथ में हजारों लोग वह गए। इनमें अलीगढ़ के 41 लोग शामिल थे। मगर उत्तराखंड सरकार ने अलीगढ़ के सिर्फ 36 मृतकों के ही प्रमाण पत्र दिए। पांच के मृत्यु प्रमाण पत्र काफी कोशिशों के बाद भी नहीं बन सके।
पत्नी व समधन की याद में करते हैं हवन
योगेश शर्मा बताते हैं कि उनकी पत्नी सर्वेश लता शर्मा, समधन गिरजेश शर्मा, गाड़ी चालक नीरज केदारनाथ गए थे, जो लौट कर नहीं आए। काफी खोजा, लेकिन कोई नहीं मिला। हकीकत समझता हूं, लेकिन मन नहीं मानता। ऐसा लगता है, शायद आज भी मौजूद है। बेटा-बेटी ने अपने आप को संभाला है। इसे क्या नहीं किया जा सकता। उनकी याद में हर साल हवन करता हूं।