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AMU News : कौन हैं पद्मश्री प्रो हकीम सैयद जिल्लुर्रहमान, जिनकी निजी लाइब्ररी में हैं 32 हजार पुस्तकें और म्‍यूजियम में शाहजहां के फरमान, पढ़ें विस्‍तृत खबर

Padmashree Prof Hakim Syed Zillur Rahman अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के तिब्बिया कालेज से 1960 में बीयूएमएस करने वाले जिल्लुुर्रहमान ने चिकित्सा क्षेत्र में ऐसी उत्कृष्ट सेवाएं दीं कि उनको 1995 में राष्ट्रपति सम्मान (लाइफ टाइम अचीवमेंट) से नवाजा गया।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Updated: Sat, 11 Jun 2022 07:46 AM (IST)
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पद्मश्री प्रो. हकीम सैयद जिल्लुर्रहमान दोदपुर में रह रहे हैं।
अलीगढ़, जेएनएन। चिकित्सा व शिक्षा ये ऐसे दो आधार बिंदु हैं, जिन पर किसी भी देश का मजबूत निर्माण टिका होता है। ये दो पहलू जहां सशक्त होते हैं वो देश तरक्की की राह में अग्रसर होता है। इन्हीं दो क्षेत्रों में समाज व देश की युवा पीढ़ी को मुफ्त में संसाधन मुहैया कराकर सिर्फ उनकी ही नहीं बल्कि देश की दिशा भी संवारने का काम पद्मश्री प्रो. हकीम सैयद जिल्लुर्रहमान कर रहे हैं। दोदपुर निवासी व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के तिब्बिया कालेज से 1960 में बीयूएमएस करने वाले जिल्लुुर्रहमान ने चिकित्सा क्षेत्र में ऐसी उत्कृष्ट सेवाएं दीं कि उनको 1995 में राष्ट्रपति सम्मान (लाइफ टाइम अचीवमेंट) से नवाजा गया। तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इनको अवार्ड ने नवाजा। इसके बाद 2006 में इनको पद्मश्री और 2015 में यश भारती सम्मान से नवाजा गया। अब ये अपने 1100 गज के दोदपुर स्थित मकान में इब्ने सीना अकादमी संचालित कर रहे हैं। यहां जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए 32 हजार पुस्तकों की लाइब्रेरी खुद की राशि खर्च कर बना चुके हैं। इसमें साधनविहीन विद्यार्थी नीट, जेईई समेत विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी मुफ्त में कर रहे हैं।

जरूरतमंद बच्‍चों के लिए अकादमी संचालित होती रहेगी

अब तक 57 किताबें लिख चुके प्रो. जिल्लुर्रहमान का कहना है कि जब वे दुनिया से रुख्सत होंगे तो ये अकादमी जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई के लिए संचालित होती रहेगी। उन्होंने बताया कि वे 1955 में भोपाल से 15 वर्ष की उम्र में अलीगढ़ आ गए थे। पिता हकीम सैयद फजलुर्रहमान चिकित्सक थे। इसलिए चिकित्सा क्षेत्र में ही आगे बढऩा था। भोपाल से आकर एएमयू के तिब्बिया कालेज में दाखिला लिया। पांच साल का बीयूएमएस कोर्स किया। 1961 में कालेज में हाउस फिजीशियन रहे। 1963 तक डिमांस्ट्रेटर रहे। फिर 1963 से 1970 तक तिब्बिया कालेज दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफेसर (तत्कालीन लेक्चरर) रहे। 1970 से 72 तक अलीगढ़ में लिटरेरी रिसर्च आफिसर रहे। 1973 में एसोसिएट प्रोफेसर (तत्कालीन रीडर) व 1983 में प्रोफेसर बने। 1978 में एएमयू के इल्मुल अदविया के डिपार्टमेंट आफ फार्माकोलाजी के चेयरमैन बने। 1985 तक लगातार चेयरमैन बनते रहे। 1989 से 1991 तक फैकल्टी आफ यूनानी मेडिसिन के डीन पद पर रहे। जिल्लुर्रहमान ने बताया कि उनके जीवन पर अभी तक 11 किताबें लिखी जा चुकी हैं। बताया कि उजबेकिस्तान के इब्न सीना को मेडिकल साइंस का जनक कहा जाता है। इनके नाम पर ही अकादमी संचालित कर रहे हैं।

विरासत को भी सहेज रहे

प्रो. जिल्लुर्रहमान सिर्फ शिक्षा को ही बढ़ावा नहीं दे रहे बल्कि अपने घर पर बने म्यूजियम में विरासत को भी सहेज रहे हैं। इब्ने सीना की तस्वीर से लेकर 2500 वर्ष पुराने एलेक्जेंडर इंडो-ग्रीक पीरियड के सिक्के, कुशान पीरियड के राजा कनिष्क के पीरियड के 2000 साल पुराने सिक्के भी सहेजे हैं। सैकड़ों साल पुरानी राजा-रानियों की पोशाकें, बर्तन, आभूषण व शाहजहां के फरमान आदि भी म्यूजियम में सहेज कर रखे हैं।

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