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Ramveer Upadhyay: जिंदगी की जंग हार गए रामवीर उपाध्याय, 14 महीने लड़ी बीमारी से जंग

Former Minister Ramveer Upadhyay ढाई दशक से अधिक राजनीति में दबदबा रखने वाले रामवीर उपाध्याय भले ही अब नहीं रहे लेकिन वह हाथरस की राजनीति का इतिहास लिख गए। 14 महीने कैंसर से जंग लड़ने के बाद वह आखिर जिंदगी से जंग हार गए।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Updated: Sat, 03 Sep 2022 06:05 AM (IST)
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जिंदगी से जंग हार गए रामवीर उपाध्‍याय।
हाथरस, हिमांशु गुप्‍ता। राजनीति में हाथरस का नाम राेशन करने वाले और ढाई दशक से अधिक राजनीति में दबदबा रखने वाले Ramveer Upadhyay भले ही अब नहीं रहे, लेकिन वह हाथरस की राजनीति का इतिहास लिख गए। 14 महीने कैंसर से जंग लड़ने के बाद वह आखिर जिंदगी से जंग हार गए। इत्तेफाक है उन्होंने राजनीति की शुरुआत भाजपा से ही की थी, और वह भाजपा में ही रहते हुए राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। रामवीर की मौत की खबर से राजनीति जगत में खलबली मच गई है। तीन दशक पहले हाथरस, अलीगढ़ जनपद का हिस्सा था। अलग-अलग बिरादरियों के नेता यहां अपने बर्चस्व को साबित करने में लगे हुए थे। उन दिनों हाथरस में ब्राह्मणों का बहुत मजबूत नेता नहीं था।

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ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे Ramveer Upadhyay

मुरसान ब्लाक के गांव बामौली निवासी Ramveer Upadhyay राजनीति की ऊंचाइयों को छूने का मन बना चुके थे। वर्ष 1989 में हाथरस के रामवीर ने गाजियाबाद से आकर राजनीति में सक्रियता बढ़ाई। हाथरस की लेबर कालोनी में रहकर राम मंदिर की लहर के दौरान भाजपा के रथ पर सवार हुए। इसी बीच संघ में अच्छी पकड़ बनाने के लिए अपने पैतृक गांव बामौली में आरएसएस का ओटीसी कैंप लगवाया पर प्रयास कामयाब न हुए। 1993 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया। पार्टी की टिकट राजवीर पहलवान की मिलने के बाद रामवीर बागी हो गए। ब्राह्मणों को एकजुट करने में तो शुरू से ही जुटे थे, यही काम आया। वे ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे।

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हाथरस में कराई थी मुलायम सिंह की सभा

ब्राह्मणों की पंचायत में रामवीर को हाथरस सदर से निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला लिया गया। हालांकि, राम मंदिर लहर में भाजपा की जीत हुई। लेकिन, Ramveer Upadhyay सियासी दांव-पेच में माहिर हो गए। वह समाजवादी पार्टी के संपर्क में भी आए। समाजवादी पार्टी की बैठकों में शामिल होने लगे। हाथरस में मुलायम सिंह यादव की जनसभा भी कराई। उनके बढ़ते कद को सपा में उनके प्रतिद्वंद्वी पचा नहीं पा रहे थे। सपा में विरोध के चलते 1996 की शुरुआत में रामवीर बसपा के हाथी पर सवार हो गए और हाथरस सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Ramveer Upadhyay का बसपा में रहा 25 साल का सफर

बसपा में रामवीर उपाध्याय का 25 वर्ष सफर रहा। के पास अहम जिम्मेदारियां रहीं। मायावती के वह करीबी रहे। 1996 में पहली बार हाथरस सदर से विधायक बनने के बाद 1997 में हाथरस को अलग जनपद का दर्जा दिलाने में रामवीर उपाध्याय  Ramveer Upadhyay की अहम भूमिका रही। इसके बाद से ब्राह्मण ही नहीं, बल्कि बसपा के कैडर वोट में भी उनकी पकड़ मजबूत हो गई। परिवहन और चिकित्सा शिक्षा, ग्रामीण समग्र विकास विभागों के मंत्री रहे। कई वर्ष ऊर्जा मंत्रालय भी संभाला। वर्ष 2002 और 2007 में हाथरस सदर, 2012 में सिकंदराराऊ और 2017 से वह सादाबाद से विधायक बने।

रामवीर का पूरा परिवार राजनीति में सक्रिय 

बसपा ने Ramveer Upadhyay को लोक लेखा समिति का सभापति भी बनाया। विधानमंडल दल में मुख्य सचेतक भी रहे। रामवीर उपाध्याय वर्ष 2017 में मोदी लहर में बसपा से सादाबाद सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। अलीगढ़ मंडल में बसपा से केवल रामवीर की ही जीत हुई थी। इस दौरान रामवीर का पूरा परिवार राजनीति में आ चुका था। पत्नी सीमा उपाध्याय लगातार दो बार 2002 और 2007 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। वर्ष 2009 में वह जिला पंचायत अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद फतेहपुर सीकरी से सांसद का चुनी गईं। उन्होंने सिने स्टार राज बब्बर को हराया था।

छोटे भाई मुकुल भी बने विधायक

Ramveer Upadhyay की भाजपा में वापसी होने के बाद सीमा भाजपा से जिला पंचायत अध्यक्ष की प्रत्याशी बनी और जीत दर्ज की। रामवीर उपाध्याय के छोटे भाई विनोद उपाध्याय 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष बने। दूसरे भाई मुकुल उपाध्याय 2005 में इगलास के उपचुनाव में बसपा से विधायक बने। इसके अलावा अलीगढ़ मंडल से एमएलसी और राज्य सेतु निगम के निदेशक भी रहे। वे वर्तमान में भाजपा में हैं। सबसे छोटे भाई रामेश्वर वर्तमान में मुरसान के ब्लाक प्रमुख हैं।

जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के दौरान बिगड़ी थी तबीयत

तीन जुलाई 2021 को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय भाजपा की प्रत्याशी थीं, वहीं उनके सामने रालोद के प्रदीप चौधरी गुड्डू की पत्नी थीं। एक-एक वोट की कश्मकश रही। चुनाव के बीच में ही कलेक्ट्रेट परिसर में रामवीर की तबीयत बिगड़ गई थी, इसके बाद वह लोगों के बीच में पहले जैसे नहीं आ सके।

योगी की सभा में मंच तक नहीं पहुंच सके थे Ramveer Upadhyay

भाजपा में वापसी के बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाया था। जनवरी 2022 में वह एक दिन के लिए ही चुनाव प्रचार के लिए आए थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभा के दौरान भी वह मंच पर नहीं पहुंच सके थे। इस चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। ढाई दशक के राजनीतिक ऊंचाइयां छूने के बाद उनकी पहली हार थी।

जनवरी में भाजपा में वापसी

लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बसपा ने उन्हें निलंबित कर दिया था। निलंबन अवधि में ही वह विधायक बने रहे। इसके बाद लगने लगा था कि रामवीर अब किसी और दल में जा सकते हैं। जनवरी 2021 में उन्होंने भी उन्होंने बहुप्रतीक्षित निर्णय लिया और बसपा से भाजपा में शाामिल होने की घोषणा की। रामवीर का परिवार पहले ही भाजपाई हो गया था। उनकी पत्नी भाजपा से जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रामवीर ने बसपा से इस्तीफा दे दिया था। 15 जनवरी 2022 में उन्होंने भी भगवा चोला पहन लिया।

BSP की वजह से भाइयों में दरार

बसपा सुप्रीमो मायावती ने वर्ष 2018 में रामवीर उपाध्याय के छोटे भाई मुकुल उपाध्याय को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इसके बाद दोनों भाइयों में विवाद पैदा हो गया। 2019 में मुकुल उपाध्याय भाजपा में चले गए। 2019 में ही बसपा ने रामवीर उपाध्याय को निलंबित कर दिया। इसके बाद उनके पुत्र चिराग उपाध्याय भाजपा में शामिल हुए और पंचायत चुनाव 2021 के बाद पत्नी सीमा उपाध्याय, भाई रामेश्वर ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।

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