Sharad Purnima 2022 : स्वयं को पूर्ण करने का अमृतमय दिन शरद पूर्णिमा : श्री पुंडरीक महाराज
Sharad Purnima 2022 आज शरद पूर्णिमा है। आज के दिन चंद्रमा अपनी पूर्णता अर्थात 16 कलाओं के साथ प्रकृति में उपस्थित होकर करुणा का प्रकाश बिखेर देता है। उड़ीसा में इस व्रत को मां भगवती से जोड़ा जाता है। वृंदावन में पर्व का महत्व अलौकिक आनंद के साथ है।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। शरद पूर्णिमा एक अद्भुत और पावन दिन है। इस दिन का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष समझाते हुए श्री पुंडरीक ने कहा कि शरद पूर्णिमा का भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व परंपरा में महत्व है। ज्ञान, भक्ति, वैराग्य और कर्म के मार्ग से जुड़ते हुए यह दिन ज्योतिष विज्ञान प्रकृति विज्ञान चिकित्सा विज्ञान तक में अपना विशेष स्थान बनाता है। जितने भी तरह की स्कूल ऑफ फिलॉसफी है, उसमें शरद पूर्णिमा की महत्ता सुरक्षित और अंकित की गई है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्णता अर्थात 16 कलाओं के साथ प्रकृति में उपस्थित होकर करुणा का प्रकाश बिखेर देता है। ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा को मन का देवता माना गया है इसलिए मन पर इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है। इस दिन कुमारियों के जीवन में सुकुमार, सुयोग्य वर को पाने की इच्छा से भगवान कार्तिकेय के प्रति व्रत रखती हैं। वहीं उड़ीसा में इस व्रत को मां भगवती से जोड़ा जाता है।
दिन विशेष के सबसे सुंदर पक्ष की अनुभूति
पुंडरीक ने बताया कि वृंदावन में तो इस पर्व का महत्व अलौकिक आनंद के साथ है। यहां इस 'दिन विशेष' के सबसे सुंदर पक्ष की अनुभूति की जाती है कि श्री राधारमण युगल रूप में एक होकर रास को पूर्ण करते हैं और इसीलिए यह 'रास पूर्णिमा' कहलाती है। संपूर्ण ब्रज इसी भाव की दिव्यता में स्वयं को समेटकर, इसी भाव की केंद्रता में व्याप्त हो जाता है। वृंदावन रास में डूब जाता है। यह रास का उत्सव है, यह दिवस है। आत्मा से परमात्मा और भक्तों से भगवान के सर्वोत्तम मिलन का।
चंद्रमा की अमृत ऊर्जा खींचकर नाभि में एकत्र करता था रावण
पुंडरीक ने रामायण की कथा को स्मरण करते हुए शरद पूर्णिमा का आश्चर्यजनक तथ्य बताया कि हम सभी जानते हैं कि रावण की नाभि में अमृत था। उसका स्त्रोत था शरद पूर्णिमा का दिन, रावण इसी दिन दर्पणों का प्रयोग कर चंद्रमा की संपूर्ण अमृत ऊर्जा को खींचकर नाभि में एकत्र कर लेता था, जिससे उसे अमृतत्व की प्राप्ति हुई। राम ने नाभि भेदन द्वारा ही रावण पर विजय प्राप्त कर उसका उद्धार किया। चंद्रमा की उष्णता सूर्य के तेज से ही मुक्त होती है इसलिए श्रीराम ने सूर्य की उपासना की और 'आदित्य ह्रदय स्त्रोत' का पाठ किया। इसका उल्लेख भी रामायण में है।
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शरद पूर्णिमा महत्व
शरद पूर्णिमा के वैज्ञानिक स्वरूप को तथ्यों के साथ समझाते हुए श्री पुंडरीक ने कहा कि इन दिनों, दिन गर्म होते हैं और रातें ठंडी होती हैं। इस कारण हमारे भीतर पित्त की वृद्धि हो जाती है। इस दिन चंद्रमा की किरणों को ग्रहण करने और उन किरणों में रखी खीर के आस्वादन से पित्त को शांत और संतुलित किया जा सकता है। हमारे सनातन धर्म का आधार मात्र विश्वास नहीं विज्ञान भी है। शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर पूर्ण चंद्रमा की उपस्थिति में खुले आकाश तले रखा जाता है । दूध में लैक्टिक एसिड होता है जब उसमें चावल मिलाया जाता है तो स्टार्च भी मिल जाता है। ये लैक्टिक एसिड और स्टार्च का योग चंद्रमा की पॉजिटिव एनर्जी को पूरी तरह से खींच लेता है जिससे वह खीर चंद्रमा के सकारात्मक उर्जा और दिव्यता से पूर्ण हो जाती है। अगले दिन जब सुबह उसे खाया जाता है तो व्यक्ति को शारीरिक व आत्मिक रूप से अनंत लाभ व अमृत का अंश मिलता है।
मानव के भीतर छह से सात कलाएं
ऐसा कहा गया है कि मानव के भीतर छह से सात कलायें हैं। वहीं पशुओं में चार से पांच, लेकिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण है- 'अमृततत्व', 'मनदा' अर्थात विचार, ' पुष्प ' अर्थात सौंदर्य ,'पुष्टि 'अर्थात स्वास्थ्य, 'तुष्टि' अर्थात इच्छापूर्ति, 'धृती' अर्थात विद्या, 'शासनी' अर्थात तेज, 'चंद्रिका' अर्थात कांति, शांति, ज्योत्स्ना (प्रकाश), 'श्री' अर्थात धन, ' प्रीति', 'अंगदा '( स्थायित्व) 'पूर्ण' और 'पूर्णामृत'। ये सोलह कलाएं कही गई हैं, तो आज के दिन ऐसी अनुपम सोलह कलाओं से पूर्ण चंद्रमा की उपासना करके व्यक्ति अपने भीतर अपनी कलाओं को प्रकाशित कर सकता है अतः इसे प्रकृति विज्ञान से भी जोड़ा गया है।
भारतीय संस्कृति जैसी विशेषता कहीं नहीं
कहा गया है कि 'यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' अर्थात् जो इस पिंड में है जो शरीर में है वह सब इस ब्रह्मांड में है। भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है जो अन्यत्र कहीं नहीं है ..कि यहांं व्यक्ति को प्रकृति और उसमें निहित हर अंश, हर वस्तु, हर स्थिति से इस तरह जोड़ा गया है कि हम अपनी चेतना को इन सब के साथ समन्वित कर खुद को हर स्तर पर बढ़ा सकते हैं। आज के दिन सफेद रंग का भी अपना महत्व है। सफेद रंग चंद्रमा का है और ये रंग चंद्रमा की उर्जा को रिफ्लेक्ट करता है। इसलिए आज के दिन ठाकुर जी भी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं।