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History : अलीगढ़ मैं है ऐसा किला जो एक कस्बे को नाम देकर गुमनाम हो गया Aligarh news

वर्षों पहले इगलास कस्बे के पूर्व दिशा में गांव असाबर व पश्चिम में गांव गंगापुर हुआ करता था। दोनों गांवों के मध्य मराठो में से ग्वालियर के संस्थापक महादाजी सिंधिया ने 1762 ई. के आसपास ऊचे टीले पर किले का निर्माण किया था।

By Anil KushwahaEdited By: Updated: Fri, 04 Dec 2020 09:09 AM (IST)
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किले में मराठे दरबार लगाकर न्याय करते थे।

अलीगढ़, योगेश कौशिक : मैं कभी जवान हुआ करता था। उस समय मेरा रुतबा भी कुछ ओर ही था। मेरे चारों बुर्ज मेरी शोभा बढ़ाते थे। कितने ही लोगों के न्याय का मैं साक्षी रहा हूं। मैं मराठों से लेकर फिरंगियों तक की हुकूमत के इतिहास का साक्षी हूं। भारत देश की आजादी की जंग और क्रांतिकारियों की शौर्य गाथा का गवाह हूं। मैंने गांव से लेकर नगर बनने तक के अपने कुनबे को बढ़ते हुए देखा है। मैं एक एतिहासिक धरोहर हूं। कभी दूर-दराज से लोग मुझे देखने के लिए आते थे। जब लोग मेरी सुंदरता को निहारते थे तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। आज में बूढ़ा हो गया हूं। मेरी दीवारें दरकने लगी हैं। अब कोई मुझे देखने नहीं आता। अपनी दुर्दशा पर अकेले की आंसू बहा रहा हूं। मैं चाहता हूं आज भी लोग मुझे देखने आए और मैं उन्हें इतिहास के किस्से सुनाऊं। लेकिन इस बदहाल स्थित में मुझे कौन देखने आएगा। अपने संरक्षण के लिए वर्षों से गुहार लगा रहा हूं। बड़े-बड़े हुक्‍मरान कभी-कभी मेरी बदहाली को देखने आते हैं तो ऐसा लगता हैं अब मुझे संजीवनी मिल जाएगी। लेकिन मेरी बदनसीबी से संजीवनी के कागज उन तमाम फाइलों में दबकर रह जाते हैं जिनसे कभी धूल भी नहीं हटती। मेरे ही नाम पर कस्बे को नाम मिला, लेकिन आज में गुमनाम हो गया हूं। हां मैं इगलास का मराठा किला हूं....

 

इगलास के किले का इतिहास

वर्षों पहले इगलास कस्बे के पूर्व दिशा में गांव असाबर व पश्चिम में गांव गंगापुर हुआ करता था। दोनों गांवों के मध्य मराठो में से ग्वालियर के संस्थापक महादाजी सिंधिया ने 1762 ई. के आसपास ऊचे टीले पर किले का निर्माण किया था। किले में मराठे दरबार लगाकर न्याय करते थे। फारसी भाषा होने के कारण दरबार को इज्लास (अदालत) कहा जाता था। लगभग 1802 ई. से अंग्रेजो ने यहां राज्य किया। स्वतंत्रता के साथ गंगापुर गांव का अस्तित्व खत्म हो गया। दोनों गांवों के मध्य बसावट होती चली गई और एक कस्बा बन गया। इस कस्बे का नाम इज्लास से बिगड़ कर इगलास पड़ गया। गांव असाबर आज भी एक मुहल्ले के रुप में अस्तित्व में है। स्वतंत्रता के बाद किले में तहसील की स्थापना हुई। नई इमारत बनने के बाद तहसील स्थानांतरित हो गई। सन्1991 के लगभग राजकीय कन्या हाईस्कूल की स्थापना कर दी गई। कुछ वर्ष पहले कॉलेज भी नए भवन में स्थानांतरित हो गया।

 

किले पर 1857 में हुई थी जंग

1857 ई. में जब चारों ओर क्रांति की भावना फैल गई तो इगलास क्षेत्र भी उससे अछूता नहीं रहा था। यहां के क्रांतिकारियों ने गांव गहलऊ के क्रांतिकारी अमानी सिंह के नेतृत्व में स्वतंत्रता का बिगुल फूंक दिया। अमानी सिंह ने किले पर चढ़ाई कर दी। क्रांतिकारियों के भय से अंग्रेज किले को छोड़ कर भाग गए। अंग्रेज तहसीलदार ने जान बचाकर मुरसान में शरण ली। क्रांतिकारियों ने किले का खजाना लूट लिया। अमानी सिंह ने इगलास क्षेत्र को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इसके बाद मेजर बर्लटन अपने सैनिकों व तोपों के साथ यहां पहुंच गया।

 

लोकगीत आज भी प्रसिद्ध

वीर स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों ने शौर्य के साथ उसका सामना किया लेकिन दुर्भाग्य से उसी समय बारिश होने पर पलीते भीग जाने के कारण उनकी बंदूकें अंग्रेजों का सामना करने में असमर्थ हुई। घोर संग्राम का परिणाम यह हुआ कि बर्लटन के सैनिकों ने पुन: किले को अपने संरक्षण में ले लिया। लेकिन क्रांतिकारियों की स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रही और उन्होंने खैर में हुए संग्राम में भी प्रमुख भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमानी सिंह को विद्रोही घौषित कर दिया। अंत में अंग्रेजों ने अमानी सिंह को पकड़ कर फांसी पर चढ़ा दिया। वीर अमानी सिंह से संबंधित लोकगीत 'अमानी मानै तो मानै अमानी की घोड़ी न मानै' और 'महुऔ मारि बीठना मारयौ, कोल के लग गये तारे, शाबास गहलऊ वारे' आज भी प्रसिद्ध हैं।

 

किले का अस्तित्व खतरे में

जिस से कस्बा इगलास को नाम मिला, अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले कांतिकारियों की युद्ध की गाथा व गुलामी की यादों को ताज करने वाला किला जमीदोज होने के कगार पर है। रखरखाब के अभाव में किले के बुर्जो में दरार पड़ गई है। दीवारे चटक गई है। ऐतिहासिक धरोहर को पुरातत्व इमारत या पर्यटन स्थल घोषित नहीं किया गया। इस और न तो शासन का ध्यान है न समाज का। देखरेख के अभाव में किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। किले के चारों ओर गंदगी का सामराज्य है। ऐसी अव्यवस्था में वह दिन दूर नहीं जब इस धरोहर का नाम निशान ही मिट जायेगा।

 

अभी तक नहीं पहनाया गया अमलीजामा

तत्कालीन एसडीएम ललित कुमार ने किले को संरक्षण हेतु पुरातत्व विभाग को दिए जाने के लिए रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी थी। लेकिन रिपोर्ट सिर्फ फाइलों में दबकर रह गई। पिछले दिनों सब रजिस्ट्रार एके त्रिपाठी द्वारा उनके कार्यालय में जगह कम होने पर किले में कार्यालय बनाने की मांग प्रशासनिक स्तर पर की गई थी। एसडीएम कुलदेव सिंह ने किले का निरीक्षण कर रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजने की बात कही थी। यह पहल भी अभी तक कोई अमलीजामा नहीं पा सकी है।

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