Vijayadashami 2022 बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है विजयदशमी। युवाओं को घेर रही बुराइयों का अंत कब होगा। हम अपने अंदर के अहंकार व बुराई रूपी रावण को खत्म नहीं कर पा रहे हैं। इसी के चलतेे विजयादशमी का संदेश निरर्थक साबित हो रहा है।
By Anil KushwahaEdited By: Updated: Wed, 05 Oct 2022 11:27 AM (IST)
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। Vijayadashami 2022 : विजयादशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। एक बार फिर बुराई के प्रतीक रावण का दहन होगा, मगर, चिंता इस बात की है कि युवाओं को घेर रहीं बुराइयों का अंत कब होगा। पढ़ाई के बोझ व जीवन में सफल होने की अपनों की अपेक्षा के बोझ तले तनाव ग्रस्त हो रहे हैं। नशा का बढ़ता शौक जिंदगी को बर्बाद कर रहा है। आनलाइन जुआ की लत जिंदगी की राह भटकाने वाली साबित हो रही है। तेज रफ्तार बाइक की जिद जान ले रही है। हम अपने अंदर के अहंकार व बुराई रूपी रावण को खत्म नहीं कर पा रहे हैं। इसी के चलते विजयादशमी का संदेश निरर्थक साबित हो रहा है। आइए, इस पर्व हम हर बुराई के अंत का संकल्प लें...
तनाव
तनाव इंसान को अंधकार की ओर धकेल देता है। जो व्यक्ति अपनी इच्छा शक्ति से इस पर विजय पा लेता है वह आगे बढ़ जाता है। जो हार मान लेता है, उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाती हैं। जीवन में सफलता हासिल करने के लिए युवा वर्ग भी ऐसी चुनौतियों से गुजरता है। एएमयू के जेएन मेडिकल कालेज के मनोरोग विज्ञान विभाग में डा. मोहम्मद रियाजुद्दीन बताते हैं कि युवाओं के सामने जितना समय नहीं होता है, उससे ज्यादा परफार्मेंस करना चाहता है। समय का प्रबंधन नहीं कर पाता है। युवाओं को स्कूल-कालेजों में लाइफ स्किल की ट्रेनिंग देनी चाहिए।
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बाइक स्पीड
युवाओं में बाइक का क्रेज चरम पर है। 18 वर्ष का होने से पहले ही बाइक थमाई जा रही हैं। नियंत्रण की सीख कोई नहीं दे रहा है। सड़कों पर बाइक दौड़ा रहे युवा स्पीड का कोई ख्याल नहीं रख रहे, जो जानलेवा साबित हो रहा है। मुसीबत का पहाड़ तो अभिभावकों पर गिरता है जब उनका बेटा हादसे का शिकार हो जाता है। एसपी ट्रैफिक मुकेश चंद्र उत्तम कहते हैं कि 40 प्रतिशत सड़क हादसे ओवरस्पीडिंग की वजह से होते हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या युवाओं की ही है।
आलस्य
काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं। यानी एक विद्यार्थी में यह पांच लक्षण होने चाहिए। कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की तरह सोना, आवश्यकतानुसार खाने वाला और गृह-त्यागी होना चाहिए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग के प्रो. बृजभूषण सिंह कहते हैं कि युवाओं को इस श्लोक को आत्मसात करना चाहिए। आलस प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है। अगर लक्ष्य से प्रेम होगा तो आलस कभी नहीं आएगा। जिसने आलस पर जीत पा ली, वो हर स्थिति में विजय पा लेगा।
जंकफूड
भागदौड़ भरी जिंदगी में जंकफूड के बढ़ते चलन युवा हड्डियों में भी टीस भर रही है। जिला अस्तपाल की सीएमएस डा. ईश्वर देवी बत्रा का कहना है कि जंक फूड इस समय सबसे अधिक नुकसानदायक है। मसालों के साथ ही मैदा व तेल सबसे अधिक हानिकारिक होता है। शुगर बढ़ने की संभावना रहती है। जिला अस्पताल में ऐसे मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ रही है। ओपीडी में तमाम मरीज जंक फूड से जुड़ी बीमारियों के ही आ रहे हैं। जंक फूड से हड्डियों में भी दर्द होने लगता है। युवा सबसे अधिक जंकफूड की गिरफ्त में आ रहे हैं।
हुक्काबार
हुक्काबार का शौक बढ़ रहा है। नशे के इस नए कारोबार की जड़ें मजबूत हो रही हैं। सबसे अधिक युवा युवक-युवतियां इसकी जद में आ रहे हैं। स्कूल- कालेज छोड़कर वे हुक्काबार में समय बिताते हैं। होटल से लेकर रेस्टारेंट तक में हुक्काबार का संचालन हो रहा है। एक बार जो युवा हुक्काबार के शौक में पड़ जाता है, वह छोड़ नहीं पाता है। इससे आर्थिक तंगी के साथ ही शारीरिक परेशानियों को भी सामना करना पड़ता है। सिटी मजिस्ट्रेट प्रदीप वर्मा का कहना है कि शहर में किसी भी हुक्काबार के संचालन को अनुमति नहीं है। युवाओं इनमें न जाएं।
आनलाइन गेम्स
इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता के साथ आनलाइन गेम्स का चलन बढ़ रहा है। 15 से 30 साल तक के युवा सबसे अधिक इसकी जद में आ रहे हैं। तमाम युवा से हैं, जिन्होंने इसमें फंसकर पढ़ाई तक छोड़ दी है। गेम न खेलने देने पर डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं। वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ अंशु सोम का कहना है कि आनलाइन गेम्स से आंखें व शरीर तो खराब होता ही है, डिप्रेशन भी बढ़ता है। मां-बाप को अपने बच्चों को ध्यान रखना चाहिए। कम से कम मोबाइल फोन दें। आनलाइन क्लास के समय भी उन पर नजर रखें।
दुर्व्यवहार
समाजीकरण के मूल्यों से भटका युवा दुर्व्यवहार से ग्रस्त हो रहा है। इसके पीछे कारण भी हैं। एएमयू में समाजशास्त्र विभाग के प्रो. मोहम्मद अकरम बताते हैं कि समाजीकरण के माध्यम से युवा समाज के विभिन्न व्यवहार, रीति-नीति, गतिविधियां सीखता है। समाजीकरण से ही वह संस्कृति को आत्मसात करता है। समाजीकरण पर हावी होती भौतिकवादी संस्कृति का प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है। सीमा से बाहर निकल कर युवा कुछ करना चाहता है, तब वह भटक जाता है। यह परिस्थिति उसे दुर्व्यवहार से ग्रस्त कर देती है।
अलगाव
एसवी कालेज की प्रो. अनीता वार्ष्णेय बताती हैं कि आधुनिक दौर में युवा परंपरागत मूल्यों और प्रतिमानों से बंधे रहना नहीं चाहते। उनकी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं में वृद्धि हुई है। इससे काफी हद तक उनकी जीवनशैली में बदलाव आया है। वे परिवार में बंधे न रहकर स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। बाद में यही अलगाव को जन्म देता है। उम्र के एक स्तर पर पहुंचने के बाद वे आर्थिक सुरक्षा भी चाहते हैं। पर, काम मिलने में असफल होने की स्थिति में अकेलापन महसूस करने लगते हैं। तब वे बुराइयों का शिकार होने लगते हैं।
स्टेरायड
प्रतिबंधित स्टेरायड की गिरफ्त में युवा तेजी से आ रहे हैं। स्टेरायड क्षणिक रूप से शारीरिक एनर्जी को बढ़ाता है। इससे किडनी, हृदय व लीवर सबसे ज्यादा व पहले प्रभावित होते हैं, जो जानलेवा बनते हैं। एएमयू जिम्नेजियम के वरिष्ठ प्रशिक्षक मजहर उल कमर ने बताया कि जिम व खेलों में युवा प्रतिबंधित स्टेरायड प्रयोग कर रहे हैं। ये शरीर में रक्तचाप कम करता है, हृदय संचालन गड़बड़ाता है। किडनी स्टेरायड को छानती है तो कमजोर होती है। ग्रंथियों को भी डिस्टर्ब करता है, जिससे पाचन क्रिया गड़बड़ाती है।
मोबाइल की लत
युवाओं में खासतौर से हाईस्कूल व इंटर में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में मोबाइल की लत कोरोना काल के बाद से बढ़ गई है। युवा फुर्सत के वक्त भी खाली नहीं हैं। लगातार एक ही पोजीशन में बैठे-बैठे मोबाइल को संचालित करते हैं। इससे आंखों समेत कंधों व गर्दन में दर्द की समस्याएं हो रही हैं। दीनदयाल अस्पताल में हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. एके वार्ष्णेय ने बताया कि अंगूठों में दर्द के मरीज आ रहे हैं। लगातार गर्दन झुकाने से मसल्स सख्त हो रहे, जिससे सुन्नपन हो रहा। सर्वाइकल व स्पेड्लाइटिस की समस्याएं बढ़ी हैं।
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