एक समय था टीवी यानि दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत देखने के लिए लोग उत्सुक रहते थे। बार-बार एंटीना सही करने के लिए छत पर जाने में थकान न होना घर में टीवी न होने पर पड़ोसियों के यहां जाना किसी दुकान पर रुक जाना बिजली न जाने की प्रार्थना तक करना। डिस्कवरी-एक खोज हम लोग मालगुड़ी डेज नुक्कड़ सर्कस जुनून जैसे सीरियल का बड़ा रोमांच था।
By Jagran NewsEdited By: Nitesh SrivastavaUpdated: Tue, 21 Nov 2023 06:34 PM (IST)
जागरण संवाददाता, अलीगढ़। समय की धारा में बहुत कुछ बह जाता है। बस यादें ही तो हैं जो सदैव साथ रहती हैं। गुदगुदाती हैं। बीते अनुभव बताती हैं। चर्चाएं शुरू होती हैं तो किस्सों के खजाने खुल जाते हैं।
एक समय था टीवी यानि दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत देखने के लिए लोग उत्सुक रहते थे। बार-बार एंटीना सही करने के लिए छत पर जाने में थकान न होना, घर में टीवी न होने पर पड़ोसियों के यहां जाना, किसी दुकान पर रुक जाना, बिजली न जाने की प्रार्थना तक करना।
डिस्कवरी-एक खोज, हम लोग, मालगुड़ी डेज, नुक्कड़, सर्कस, जुनून जैसे सीरियल का बड़ा रोमांच था। रंगोली कार्यक्रम में फिल्मी गीतों को सुनने का अलग ही आनंद था। तब दूरदर्शन का राज था। समय के साथ सुविधाएं बढ़ीं। लैपटाप, मोबाइल और टैबलेट तक पर कार्यक्रम देख सकते हैं। मगर, दूरदर्शन के उस दौर को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
दूरदर्शन का सफर
टीवी का पहला माडल वर्ष 1927 में अमरीका में तैयार हुआ था। भारत में वर्ष 1959 में टेलीविजन आया और 15 सितंबर 1959 को पहले टेलीविजन का प्रयोग राजधानी दिल्ली में दूरदर्शन केंद्र की स्थापना के साथ किया गया था।
वर्ष 1965 में आल इंडिया रेडियो ने रोजाना टीवी ट्रांसमिशन शुरू किया। वर्ष 1976 में सरकार ने टीवी को आल इंडिया रेडियो से अलग कर दिया। वर्ष 1982 में पहली बार राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल की शुरुआत हुई। इसी के साल देश में पहला कलर टीवी भी आया।
इसका व्यापक प्रसार वर्ष 1982 में भारत में आयोजित एशियाड खेलों के आयोजन से हुआ। टीवी के आविष्कार से सूचना के क्षेत्र में एक क्रांति का आगाज किया था। शुरुआती दौर में दूरदर्शन अधिक प्रभावशाली था। मीडिया के और भी माध्यम तैयार हो जाने के कारण दूरदर्शन जैसे माध्यम कमजोर हो गए।
पहली बार गांव में टेलीविजन आया तो चित्र देखकर हैरान रह गए
अकराबाद क्षेत्र के गांव दभा निवासी गोपाल कृष्ण उपाध्याय बताते हैं कि उनके बाल्यकाल में पिता स्वर्गीय जगदीश प्रसाद ने पहली बार गांव में टेलीविजन लगवाया था। यह पूरे गांव में आश्चर्य का विषय था।ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन पर चलते हुए चित्र देखकर तो लोग हैरान रह गए थे।पूरे गांव एक टेलीविजन पर कार्यक्रम देखता था। उस दौरान किसानों को फसल व खेती से संबंधित जानकारी पाने के लिए अधिक उत्सुकता रहती थी। मनोरंजन का भी यही माध्यम था। अब टेलीविजन का दौर जा चुका है। अब तो हर मोबाइल में ही टेलीविजन है। लोग इसका आनंद ले रहे हैं।
गोपाल कृष्ण उपाध्याय निवासी दभा l
कई परिवारों को जोड़ता था टेलीविजन
नगला नत्था निवासी 85 वर्षीय सूरजपाल सिंह टेलीविजन की बात शुरू होते ही पुराने दिनों में खो गए। वह बताते हैं कि पहले टेलीविजन बहुत बड़ी चीज हुआ करती थी। गांव के चुनिंदा घरों में टीवी हुआ करता था। वह भी ब्लैक एंड व्हाइट होता था। उस समय दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत धारावारिक प्रारंभ हुए।
जिस घर में टीवी होता था, उस घर में बड़ी संख्या में गांव के लोग एकत्रित होकर धारावारिक को देखते थे। लोग चने, मूंगफली आदि लेकर जाते थे और सामूहिक रूप से धारावारिक देखते हुए खाते थे।रामायण व महाभारत को देखने के लिए सड़कें व गलियां पूरी तरह से सूनी हो जाती थीं। हमारा जो भी आर्थिक व सामाजिक विकास हुआ है उसके पीछे दूरदर्शन की अहम भूमिका रही है।
सूरजपाल सिंह, नगला नत्था l
कभी छत पर ठीक करते थे एंटीना, आज रिमोट से बदलते हैं चैनल
गभाना के काले आम क्षेत्र निवासी 97 वर्षीय मुंशीलाल बताते हैं कि एक जमाना वो था, जब पूरे क्षेत्र में एक या दो लोगों के घर पर टेलीविजन हुआ करता था। पूरे गांव के लोग उस घर में एकत्रित हो जाते थे। इस बीच अगर चित्र चला जाता था तो साथ के लोग भागकर छत पर जाते थे और एंटीना घुमाकर उसे ठीक करते थे।
दूरदर्शन पर रामायण शुरू हुई तो पूरा गांव उन घरों की तलाश में रहता, जिनके यहां टीवी व बैठने के लिए जगह हो। उस जमाने में टीवी होना बहुत बड़ी बात होती थी। अलिफ लैला, चंद्रकांता, चित्रहार, रंगोली, जान है जहान है, शक्तिमान, विक्रम बेताल जैसे धारावाहिकों को देखने के लिए लोग अपने काम छोड़ देते थे।इन धारावाहिकों से संस्कार व अच्छाई मिलती थी। सामाचार का समय निर्धारित था। अब तकनीकी के बदलते दौर में अनगिन न्यूज व अलग-अलग चैनल हो गए हैं, लोग रिमोट से चैनल बदलते हैं। हाल में धारावाहिकों में ऐसे विषय दर्शकों को परोसे जा रहे हैं जिनसे रिश्तों में दरारें बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे।
मुंशी लाल, गभाना l
आज के मुकाबले पुराना दौर ज्यादा आसान था
बैंक कालोनी प्रीमियर नगर निवासी सेवानिवृत्त डीएसपी एसपी वार्ष्णेय बताते हैं कि टीवी हमेशा से जनसंचार व मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम रहा है। हमारे जमाने में टीवी पर काफी निर्भरता रहती थी। ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होते थे। सिग्नल की बड़ी समस्या होती थी। तब छत पर जाकर सिग्नल सही करते थे। कार्यक्रम देखने को लेकर बड़ी उत्सुकता रहती है। परिवार एक साथ बैठकर टीवी देखते थे। खासकर सामाचार सुनने के लिए टीवी देखता था।
धीरे-धीरे समय बदला तो रंगीन टीवी आ गया। फिर केबल पर कई चैनल्स आने लगे। वर्तमान में इंटरनेट के जमाने में सब कुछ बदल गया है। मुझे पुराना दौर ज्यादा आसान लगता है। अब तो टीवी में सामाचार वाले चैनल खोज पाना ही कठिन काम हो गया है। हां, ये बात भी सही है कि पुराने दौर में इतना बड़ा दायरा नहीं था। अब टीवी पर असीमित दुनिया है। आप एक क्लिक पर सबकुछ देख सकते हैं। लेकिन, बुजुर्ग लोगों के लिए तकनीक को समझ पाने में थोड़ी कठिनाई भी है।
एसपी वार्ष्णेय, सेवानिवृत्त डीएसपी
घर में रहता था उत्सव का माहौल
पला रोड स्थित रामविहार कालोनी निवासी बीना शर्मा ने बताया कि वर्ष 1985 की बात हैं। तब हमारे घर टीवी नहीं था। एक पड़ोसी के घर ब्लैक इन व्हाइट टीवी था। शनिवार और रविवार को फिल्म आया करती थीं। दोपहर को धारावाहिक आता था। इन्हें देखने हम पड़ोस में जाते थे।रामायण सीरियल जब शुरू हुआ तो हमारे घर पहला ब्लैक एंड व्हाइट टेक्सला कंपनी का टीवी आया। रविवार को मोहल्ले के अधिकतर लोग हमारे घर रामायण सीरियल देखने आते थे। परिवार में उत्सव का माहौल रहता था। बड़े-बुजुर्ग पीछे बैठते थे और बच्चे आगे जमीन पर।सुबह रंगोली कार्यक्रम में गाने सुनते थे। शाम को समाचार वक्ता वेद प्रकाश देश-दुनिया की खबरें सुनाते थे। पति के कुछ मित्र समाचार सुनने घर आते थे।
बीना शर्मा, रामविहार कालोनी पला रोड
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