Akshayavat of Prayagraj: अकबर के किले में स्थित वट वृक्ष 300 वर्ष पुराना है, जानें- सनातनी परंपरा के वृक्ष की खासियत
Akshayavat of Prayagraj ताजा अध्ययन में त्रिवेणी तट पर अकबर के किले में स्थित अक्षयवट को 300 वर्ष पुराना माना गया है। इसकी गोलाई दस मीटर है। बहुत प्राचीन न भी जाएं तो इस वृक्ष ने मुगल काल को तो देखा ही है।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 15 Mar 2021 04:33 PM (IST)
प्रयागराज, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पुराना इलाहाबाद) में प्राचीन बरगद का पेड़ है। यह अकबर के किले में स्थित है। इस वट वृक्ष का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है। इसे लेकर तमाम किंवदंती भी जुड़ी हुई है। इससे लोगों की मान्यता और आस्था भी जुड़ी है। यहां हम आपको बता रहे हैं कि इस पौराणिक वट वृक्ष की क्या खासियत है। किस कारण लोगों की जुबां पर अक्षयवट का नाम रहता है कि प्रयागराज आने पर यहां जाने को मन करता है।
प्रदेश सरकार की विरासत सूची में शामिल है अक्षयवट उत्तर प्रदेश सरकार ने विरासत वृक्षों की सूची जारी की है। इसमें प्रयागराज के 53 वृक्ष शामिल किए गए हैं। खास बात यह कि इन वृक्षों में बरगद के वृक्ष सब से अधिक शामिल हैं। किला स्थित वट वृक्ष को भी इस सूची में शामिल किया गया है। हालांकि इसकी आयु मात्र 300 वर्ष बताई गई है, जबकि पाताल पुरी मंदिर के बरगद की आयु इससे अधिक बताई गई है। फिलहाल आस्थावान लोगों के लिए यह सुखद है कि अक्षयवट को विरासत सूची में रखा गया है।
वट वृक्ष को लेकर मान्यतापुराणों के अनुसार प्रलय के समय जब समूची पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है, वही अक्षयवट है। इसे सनातनी परंपरा का संवाहक भी कहा जाता है। इसके एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में रहकर सृष्टि को देखते हैं। इस वृक्ष का उल्लेख कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा विवरण में भी मिला है। हालांकि देश मेें चार पौराणिक वट वृक्ष हैं। इनमें गृद्धवट-सोरों 'शूकरक्षेत्र', अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृंदावन शामिल हैं।
अक्षयवट को 300 वर्ष पुराना माना गया हैताजा अध्ययन में त्रिवेणी तट पर अकबर के किले में स्थित अक्षयवट को 300 वर्ष पुराना माना गया है। इसकी गोलाई दस मीटर है। बहुत प्राचीन न भी जाएं तो इस वृक्ष ने मुगल काल को तो देखा ही है। इस वृक्ष ने गंगा की धारा को भी बंटते देखा है। कभी पूर्वगामी तो कभी पश्चिम वाहिनी प्रवाह होता रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहासकार प्रो. डीपी दुबे के अनुसार पद्म पुराण में अक्षयवट को तीन नाम से जाना जाता है। आदिवट, श्यामवट और अक्षयवट। किसी जमाने में दरियाबाद, बलुआघाट से लेकर संगम तक वट के कई प्राचीन वृक्ष हुआ करते थे।
अक्षयवट से जुड़ी यह भी है मान्यता मान्यता है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव ने भी इस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया था। मुंगल काल में जहांगीर ने इसे काटने का भी प्रयास किया। वजह थी इसके साथ जुड़ी आस्था। किला परिसर में ही कई और वट वृक्ष हैं, जिनकी अपनी प्राचीनता है। पातालपुरी में स्थित वट वृक्ष भी कई सौ साल पुराना है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार पातालपुरी का वट वृक्ष अधिक प्राचीन है। फिलहाल यहां स्थित सभी वट वृक्ष धार्मिक महत्व रखते हैं।
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