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Alopashankari Mandir: प्रयागराज का एक ऐसा शक्तिपीठ, जहां देवी के मूर्ति की नहीं, उनके 'पालने' की होती है पूजा

Alopashankari Mandir महंत जमुनापुरी रविंद्र गिरी और रामसेवक गिरी जी महराज का कहना है कि इस मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है। बताया कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां गिरने के बाद विलुप्त हो गया था जिसके कारण मंदिर को नाम अलोप शंकरी पड़ा।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 10 Feb 2021 07:52 AM (IST)
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प्रयागराज के शक्तिपीठ अलोपशंकरी मंदिर की महिमा अपार है। यहां देवी मूर्ति की नहीं, पालने को पूजा जाता है।

प्रयागराज, जेएनएन। मां दुर्गा के कई स्वरूप हैं, जिनके दर्शन-पूजन के लिए शक्तिपीठों में देवी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। देवी के इन मंदिरों में अपने विभिन्न रूपों में मां विद्यमान हैं। प्रत्येक मंदिर में मां के किसी न किसी अंग के गिरने की मूर्त निशानी मौजूद है, लेकिन संगम नगरी में मां सती का एक ऐसा शक्तिपीठ मौजूद है जहां न मां की कोई मूर्ति है और न ही किसी अंग का मूर्त रूप है। अलोपशंकरी देवी के नाम से विख्यात इस मंदिर में लाल चुनरी में लिपटे एक पालने का पूजन और दर्शन होता है।

मंदिर के स्थान पर ही गिरा था मां सती के दाहिने हाथ का पंजा

प्रयागराज में दारागंज से रामबाग की ओर जाने वाले मार्ग पर अलोपशंकरी का मंदिर स्थित है। इन्हीं के नाम पर यहां अलोपीबाग मुहल्ला आबाद है। मंदिर की देखरेख करने वाले महंत जमुनापुरी, रविंद्र गिरी और रामसेवक गिरी जी महराज का कहना है कि इस मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है। बताया कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां गिरने के बाद विलुप्त हो गया था जिसके कारण मंदिर को नाम अलोप शंकरी पड़ा। स्थानीय लोग इसे अलोपीदेवी के नाम से भी जानते हैं।

मंदिर के गर्भगृह में बने कुंड के ऊपर लगा है पालना

मंदिर के गर्भगृह में बीचोबीच एक चबूतरा बना है जिसमें एक कुंड भी है। कुंड के ऊपर चौकोर आकार में लकड़ी का एक पालना या झूला भी रस्सी से लटकता रहता है जो एक लाल कपड़े  (चुनरी) से ढंका रहता है। किवदंती के अनुसार मां सती की दाहिनी कलाई का पंजा इसी स्थान पर गिरा था जहां पर कुंडा बना है। मंदिर के सेवक गुड्डू चौबे के अनुसार इस कुंड के जल को चमत्कारिक माना जाता है। इसलिए यहां पर आने वाले श्रद्धालु इस कुंड के पवित्र जल का आचमन भी करते हैं।

मंदिर आने वाले श्रद्धालु पालने की ही पूजा करते हैं

इस अनूठे मंदिर में आने वाले भक्त किसी प्रतिमा की नहीं, वरन झूले या पालने की ही पूजा करते हैं। श्रद्धालु कुंड से जल लेकर पालने पर चढ़ाते हैं और चबूतरे की परिक्रमा कर मां सती का आशीर्वाद लेते हैं। यहां पर मां को केवल नारियल और पुष्प ही चढ़ता है। दूर-दूर से श्रद्धालु मां की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। नवरात्र में यहां पर मेला लगता है। लोग मन्नत पूरी होने पर कड़ाही भी चढ़ाते हैं और हलवा पूड़ी का भोग मां को अर्पित करने के बाद अपने परिवार संग प्रसाद के रूप में खाते हैं।

पालने का दर्शन-पूजन करने से पूरी होती है मनोकामना

मान्यता है कि अलोपशंकरी मंदिर में पालने की पूजा करने और कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने वाले हर देवी भक्त की मन्नत पूरी होती है। हाथ में धागा बंधे रहने तक देवी मां उसकी रक्षा करती हैं। नवरात्र में इस मंदिर में माता रानी  का श्रृंगार तो नहीं होता लेकिन उनके सभी स्वरूपों का पाठ किया जाता है। नवरात्र में यहां काफी भीड़ होती है। मां का दर्शन पाने के लिए लोगों को घंटों प्रतीक्षा करना पड़ता है। सोमवार और शुक्रवार को मंदिर पर मेला लगता है। मंदिर में प्रसाद की तमाम दुकानें हैं जिन पर मां को अर्पित करने के लिए नारियल, चुनरी, पुष्प आदि मिलते हैं। दूसरे किस्म की दुकानें भी हैं जिन पर सिंदूर, चूड़ी और अन्य श्रृंगार प्रसाधन के साथ बच्चों के खिलौने मिलते हैं।

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