Move to Jagran APP

प्रयागराज में शंकरगढ़ के गढ़वा के पुराने किले में छुपा है प्राचीन वैभव, समृद्ध नगर था गुप्त काल का भट्ट ग्राम

यह स्थान प्रयागराज के बारा तहसील के शंकरगढ़ रेलवे स्टेशन से शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर स्थित है। गढ़वा का यह ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ से लगभग 7 किमी.पश्चिम में है। मुख्य सड़क से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित यह दुर्ग वर्तमान में उप्र पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 06 Nov 2020 07:53 AM (IST)
Hero Image
शंकरगढ़ के अंतर्गत स्थित ग्राम गढ़वा का सुदृढ़ किला उप्र पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज जनपद में बघेल खंड राजघराने से संबंध रखने वाले कसौटा रियासत वर्तमान शंकरगढ़ के अंतर्गत स्थित ग्राम गढ़वा का सुदृढ़ किला और उसके भीतर स्थापित प्रस्तर मूर्तिकला एवं विशाल शिवालय आज भी एक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल एवं समकालीन वैभव की अमर गाथा का मूक गवाह है। 

ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ से लगभग 7 किमी.पश्चिम में है

यह स्थान प्रयागराज के बारा तहसील के शंकरगढ़ रेलवे स्टेशन से शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर स्थित है। गढ़वा का यह ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ से लगभग 7 किमी.पश्चिम जाने पर पड़ता है। मुख्य सड़क से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित यह दुर्ग वर्तमान में उप्र पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। प्रस्तर निर्मित यह गढ़वा का दुर्ग पंचकोणीय है । दुर्ग के चारों कोनों पर एक-एक बुर्ज है ।

गुप्त एवं मध्यकालीन युग में दुर्ग की वास्‍तविक स्‍थापना बताते हैं

दुर्ग की वास्तविक स्थापना का समय गुप्त एवं मध्यकालीन समझा जाता है। गढ़वा स्थल का प्राचीन नाम भट्ट प्राय है। जो गुप्त राजाओं के काल में प्रसिद्ध था। इससे लगा हुआ लगभग डेढ़ मील की दूरी पर भट्ट गढ़ था। जो अब बरगढ़ नाम का छोट सा गांव रह गया है। 

बावली को पुरातत्व विभाग ने मरम्‍मत कराके दर्शनीय बनाया

इन दोनों स्थलों के मध्य अनेक ऐतिहासिक पत्थर बिखरे पड़े हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि कभी यहां के पुराने नगर का विस्तार बरगढ़ तक रहा होगा। इस दुर्ग के निरीक्षण के दौरान देखा गया कि इस दुर्ग के भीतर दो बावली बनी है, जिसमें जल भरा। इस बावली को पुरातत्व विभाग के द्वारा मरम्मत कराकर दर्शनीय बना दिया गया है। दुर्ग के विशाल प्रांगण में मनमोहक पाषाण शिव मंदिर निर्मित है। जिसका गर्भगृह रिक्त है। यहीं पर बिखरी हुई खंडित पाषाण प्रतिमा में एक गणेश जी की प्रतिमा मिली है। मंदिर के शिखर का कलशदल ध्वस्त हो चुका है।  

श्री विष्णु मूर्ति एवं उनके दशावतार की विशाल प्रतिमा जो लगभग 8 फिट से अधिक ऊंची है

बाहर से शिखर नहीं दिखता किंतु गर्भगृह के भीतर से देखने पर शिखर का ढंका हुआ भाग दिखाई देता है। मंदिर के अलंकृत पाषाण स्तंभ पर संस्कृत भाषा में शिला लेख भी खुदा हुआ है। मंदिर के समीप ही विद्यमान पाषाण मूर्तिकक्ष में चर्तुभुज भगवान विष्णु जी की पद्मासन मुद्रा में बैठी मूर्ति है। श्री विष्णु मूर्ति एवं उनके दशावतार की विशाल प्रतिमा जो लगभग 8 फिट से अधिक ऊंची होगी। इसमें मत्स्यावतार, कच्चपावतार, बराह अवतार, नरसिंह अवतार, रामावतार, परशुराम अवतार आदि की मूॢत पूर्ण अवस्था में देखी जा सकती है।

आकर्षक है विशाल बौद्ध प्रतिमा

यहीं पर विशाल बौद्ध प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर के सामने ही बनी दोनों बावली में जल तक पहुंचने के लिए पाहन सोपान बना है। मुख्य मंदिर के बांयी ओर विशाल सभा कक्ष एवं राज निवास जैसे विशाल भवन का भग्नावशेष दिखाई देता है। सभाकक्ष का यह पंच द्वार अलंकृत खंभों पर टिका है। जिसका छत नदारत है।

इतिहासकार ऐसा कहते हैं

इतिहासकारों की मानें तो कसौटा खानदान के कंधार देव के बारहवें वंशज हुकुम सिंह ने गढ़वा के सबसे प्राचीन किले का जीर्णोद्धार कराया था। हुकुम सिंह ने जिस समय इसका जीर्णोद्धार कराया था। उस समय इस किले की बनावट 15 सौ वर्ष पहले की मानी गई थी। हुकुम सिंह के पुत्र शंकर सिंह ने भी गढ़वा किले का प्रबंध किया था। साथ ही एक महान यज्ञ कराके भगवान शंकर जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की थी।

दुर्ग का निर्माण बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा सन 1750 में करवाया था

कहा जाता है कि कभी यहां पर ज्वालादित्य योगी ने 9 फीट ऊंची शिवलिंग स्थापित की थी। गढ़वा किले के द्वार पर पुरातत्व विभाग की ओर से प्रर्दिशत लेख में इस किले के बारे में कहा गया है कि यह एक एक पंचकोणीय शिलाखंडों से निर्मित परकोटा है। इसके अंदर कुछ प्राचीन मंदिर के अवशेष विद्यमान है। इस दुर्ग का निर्माण बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा सन 1750 में करवाया गया था। इस स्थल से प्राप्त अवशेष गुप्तकालीन है। इस स्थल से चंद्रगुप्त, कुमारगुप्त और स्कंद गुप्त के काल की 7 अभिलेख प्राप्त हुए। 

गढ़वा का यह किला इस अंचल की एक महान विरासत है

प्राप्त अभिलेखों के माध्यम से प्रतीत होता है कि इस स्थल का प्राचीन नाम भट्ट ग्राम था जो गुप्त काल में एक समृद्ध नगर था। इस दुर्ग के भीतर गुप्तकाल से लेकर मध्यकाल तक की प्राचीन मूर्तियां मूर्तिशाला में विद्यमान दर्शकों के लिए उपलब्ध है। गढ़वा का यह किला इस अंचल की एक महान विरासत है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।