Birth Anniversary: विदेश मंत्री के रूप में राजा दिनेश सिंह ने दिलाई थी प्रतापगढ़ को अलग पहचान
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार के रूप में उन्होंने राजनीतिक पारी शुरू की थी और नरसिम्हाराव की सरकार तक में केंद्रीय मंत्री रहे। फिर भी सियासी करियर उतार चढ़ाव भरा रहा। यूं तो वह नेहरू गांधी परिवार के खास कहलाते थे
जन्मतिथि पर विशेष
जन्म 19 जुलाई- 1925
निधन: 30 नवंबर-1995
प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। कालाकांकर के राजा दिनेश सिंह का नाम आज भी पूरे जिले में गर्व से लिया जाता है। उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में प्रतापगढ़ को विदेश में पहचान दिलाई थी। इस संसदीय क्षेत्र से सर्वाधिक चार बार निवार्चित होने का रिकार्ड भी उनके ही नाम है अब तक। जन्मतिथि 19 जुलाई पर राजा दिनेश से जुड़े तमाम संस्मरण ताजा हो उठते हैैं।
पंडित नेहरू के सलाहकार के तौर पर शुरू की राजनीतिक पारी
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सलाहकार के रूप में उन्होंने राजनीतिक पारी शुरू की थी और नरसिम्हाराव की सरकार तक में केंद्रीय मंत्री रहे। फिर भी सियासी करियर उतार चढ़ाव भरा रहा। यूं तो वह नेहरू गांधी परिवार के खास कहलाते थे, लेकिन दौर ऐसा भी रहा जब उन्होंने इंदिरा गांधी का साथ छोड़ दिया था।
स्थापित कराया था एटीएल
कालाकांकर राजभवन में महात्मा गांधी ने 1929 में राजा अवधेश सिंह के सामने पंचायती राज का सपना देखा था। उसे राजा दिनेश सिंह के सहयोग से राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्रितत्व काल में लागू किया। उन्होंने जनपद की औद्योगिक पहचान बनाने के लिए आटो ट्रैक्टर लिमिटेड (एटीएल) की स्थापना कराई थी, जिसमें कभी हजारों नौजवान काम करते थे। अब यह फैक्ट्री इतिहास बन चुकी है। उनकी बेटी और पूर्व सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह बताती हैं कि पिताजी के जन्मदिन पर ही स्व. इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था। पूरे देश के लोगों को आज इसका लाभ मिल रहा है। वर्ष 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी विदेशमंत्री बने तो शपथ लेने के बाद वह राजा दिनेश सिंह के पास गए और विदेश नीति के बारे में परामर्श किया।
पहला चुनाव 1967 में जीते थे
इमरजेंसी के बाद वर्ष 1977 में हुए चुनाव में राजा दिनेश लोकदल उम्मीदवार रूपनाथ सिंह यादव से हार गए थे। अगले चुनाव 1980 में उन्होंने जनता पार्टी का दामन थामा, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1984 में वह कांग्रेस में पुन: लौट आए और चुनाव जीते। लोकसभा का पहला चुनाव उन्होंने वर्ष 1967 में जीता था। वह जिले के पहले ऐसे सांसद रहे जो जीवन के आखिरी दिनों में केंद्र सरकार में बिना विभाग वाले मंत्री थे।