Ashok Singhal Death Anniversary: विहिप के पूर्व संरक्षक अशोक सिंहल की पुण्य तिथि पर कर्मभूमि में नमन
Ashok Singhal Death Anniversary विहिप के प्रांतीय कार्यालय केसर भवन में श्रद्धांजलि सभा की गई। सुंदरकांड का भी आयोजन किया गया। इसमें जिले भर के विहिप कार्यकर्ता शामिल हुए। अन्य संगठनों के सदस्य भी श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए केसर भवन आ रहे हैं।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 17 Nov 2021 12:31 PM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक रहे अशोक सिंहल की छठीं पुण्यतिथि उनकी कर्मभूमि यानी प्रयागराज में मनाई जा रही है। इस अवसर पर आज बुधवार को संगमनगरी के लोगों ने उन्हें नमन किया। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर राष्ट्र जागरण के लिए चलने वाली सभी मुहिम में वह अग्रणी भूमिका निभाते थे। जगह-जगह होने वाले आयोजनों में उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा की गई। तमाम वक्ताओं ने उन्हें हिंदू जागरण का अग्रदूत बताया। कहा कि जाति, वर्ग और भाषाई आधार पर बंटे हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने का संकल्प लेकर आगे बढ़ने की कार्ययोजना अशोक सिंहल ने ही बनाई थी।
विहिप प्रांतीय कार्यालय केसर भवन में सुंदरकांड पाठ विहिप के प्रांतीय कार्यालय केसर भवन में श्रद्धांजलि सभा की गई। सुंदरकांड का भी आयोजन किया गया। इसमें जिले भर के विहिप कार्यकर्ता शामिल हुए। अन्य संगठनों के सदस्य भी श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए केसर भवन आ रहे हैं। यहां अपराह्न दो बजे से प्रसाद वितरण शुरू होगा। इसमें संघ विचार परिवार के पदाधिकारी व सदस्य शामिल होंगे।
भारतीय चेतना विषय पर व्याख्यान संगठन के प्रवक्ता अश्वनी मिश्र ने बताया कि आयोजन की तैयारी मंगलवार शाम से शुरू हो गई थी। उधर, अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ, महावीर भवन हाशिमपुर रोड पर भी उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी। शाम चार बजे के बाद लोक जीवन में भारतीय चेतना विषय पर व्याख्यान का भी आयोजन किया गया है। मुख्य वक्ता पद्म श्री सम्मान से सम्मानित डा. कपिल तिवारी होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के सदस्य प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा करेंगे।
अशोक सिंहल ने राष्ट्रीय चेतना का किया था संचार : चंद्र प्रकाश सिंह अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ के राष्ट्रीय संयोजक चंद्र प्रकाश सिंह ने बताया कि विहिप भारतीय जनमानस को जगाने में जुटी है। अशोक सिंहल ने अपने जीवनकाल में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। हिंदू समाज को संगठित करने में जुटे रहे। उन्हें सांस्कृतिक महाजागरण का पुरोधा कहना गलत न होगा। उस अभियान को अब भी जारी रखा गया है। वह कहते थे कि यह विषय बार-बार आता है कि हमारी पहचान क्या है। वास्तव में हमारे भटकाव का मुख्य कारण यही है कि हमें हमारी पहचान का और यहां रहने वाले समाज की पहचान का सही बोध नहीं हो पा रहा है। भारत की पहचान संसार के सामने ठीक करना यह हमारी सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रथम लक्ष्य है। अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ इसी दिशा में कार्य कर रहा है।
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