Atiq Ahmad: बीस मीटर दूरी पर हुआ ढेर, जहां कभी जमाता था रुतबा; पान की दुकान पर जमती थी महफिल
Atiq Ahmad Killed माफिया अतीक अहमद अपने भाई पूर्व विधायक अशरफ के साथ जिस स्थान पर शूटरों की गोलियों से ढेर हुआ वहीं से कुछ दूरी पर कभी उसका रुतबा जमता था। पान की एक दुकान देर रात तक अतीक की महफिल जमती थी।
By amardeep bhattEdited By: MOHAMMAD AQIB KHANUpdated: Sun, 16 Apr 2023 02:00 AM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता: माफिया अतीक अहमद अपने भाई पूर्व विधायक अशरफ के साथ जिस स्थान पर शूटरों की गोलियों से ढेर हुआ वहीं से दो फल्लांग पर कभी उसका रुतबा जमता था। अपने विधायकी कार्यकाल के दौरान वहीं पास में ही पान की एक दुकान देर रात तक अतीक की महफिल जमती थी। कोई बढ़िया वाला पान लेकर आता तो कोई उसके पानी पिलाने को आतुर रहता। समय चक्र कुछ ऐसा घूमा कि अतीक का वहीं पर अंत हुआ।
चकिया के रहने वाले अतीक अहमद की हर जगह तूती बोलती थी। आसपास के सभी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में तो कुछ चुनिंदा स्थानों पर बैठक भी होती थी जिसमें काल्विन अस्पताल के पास पान की एक दुकान भी थी। शनिवार रात दोहरे हत्याकांड का घटना स्थल इस दुकान से मुश्किल से 20 मीटर रहा।
अतीक अहमद: माफिया बनने की कहानी
माफिया अतीक अहमद। यह वह नाम था जो चार दशक से अधिक समय तक सुर्खियों में रहा। शनिवार रात जहां उसकी और उसके भाई अशरफ की हत्या हुई, यहीं कुछ दूर पर ही उसने वर्ष 1989 में उसने अपने गुरु चांद बाबा की हत्या की थी। इसके बाद अतीक ने मुड़कर पीछे नहीं देखा। इस एक हत्या ने उसे अतीक से ‘भाई’ बना दिया।चकिया का रहने वाला अतीक अहमद शुरू से ही निडर था। घर की माली हालत अच्छी नहीं थी। उसने गलत तरीके से कम समय में अमीर बनने का रास्ता अख्तिहार किया। राेशनबाग क्षेत्र के रहने वाले बदमाश चांद बाबा के संपर्क में आया। कम समय में वह चांद बाबा का चेहता बन गया। 17 वर्ष की उम्र में अतीक पर हत्या का एक आरोप लगा। हालांकि, उस समय वह नाबालिग था, इसलिए कम समय में ही जेल से छूट गया। इसके बाद तो चांद बाबा की नजरों में उसका कद काफी बढ़ गया। या यूं कहे कि वह चांद बाबा का दाहिना हाथ बन गया था। अतीक भी चांद बाबा को अपना गुरु मानने लगा था।
1989 में राजनीति में रखा था कदम
इसी बीच उसके कई खास लोग बन गए, जो उसे राजनीति में आने की बात कहने लगे। काफी सोच विचार के बाद अतीक ने 1989 में शहर पश्चिमी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा दाखिल कर दिया। चांद बाबा ने भी पर्चा भरा और अतीक से अपना नामांकन वापस लेने को कहा। लेकिन अतीक ने मना कर दिया। यहीं से दोनों के बीच खटपट शुरू हुई। पूरे चुनाव के दौरान दोनों गुट कई बार आमने-सामने आए और उनके बीच गैंगवार भी हुआ, लेकिन किसी के जानमाल का नुकसान नहीं हुआ।अपने गुरु चांद बाबा को रास्ते से हटाया
मतदान हुआ तो अतीक के पक्ष में लोग एकजुट नजर आए। इससे वह समझ गया था कि उसने बाजी मार ली है, लेकिन वहीं चांद बाबा को भी रास्ते से हटाना जरूरी था। अतीक जानता था कि चांद बाबा के रास्ते वह सुरक्षित नहीं है। मतगणना के दिन दोपहर में चांद बाबा रोशनबाग ढाल के पास चाय की दुकान में अपने समर्थकों के साथ बैठा था, उसी समय वहां पहुंचे कई लोगों ने गोली और बम मारकर उसकी हत्या कर दी थी। अतीक नामजद हुआ था।
शहर के बड़े बदमाश चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक का नाम पूरे प्रदेश में हो गया। करीब दो घंटे बाद मतगणना समाप्त हुई और अतीक विधायक बन गया था। जीत से गदगद उसके समर्थकों ने उसे नया नाम ‘भाई’ भी दे दिया।
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