Death Anniversary of Balkrishna Bhatt : 'हिंदी प्रदीप' के जरिए जगाई थी क्रांति की अलख, अंग्रेजों का छीना चैन
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामनरेश त्रिपाठी कहते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत जब पं. बालकृष्ण को नहीं झुका सकी तब उनके संपर्क में रहने वालों को परेशान करना शुरू कर दिया।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 20 Jul 2020 05:12 PM (IST)
प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। साधना, श्रम और समर्पण इंसान को सम्माननीय बनाता है। संगम नगरी में पं. बालकृष्ण भट्ट की हिंदी साहित्य साधना इस बात की गवाही देती है। पं. बालकृष्ण भट्ट अपनी मासिक पत्रिका 'हिंदी प्रदीप' निकालते थे। इसी के जरिए उन्होंने अंग्रेजों का चैन छीन लिया था। 'हिंदी प्रदीप' नामक मासिक पत्र के जरिए उन्होंने भारतीयों को एकजुट करने का प्रयास किया। शासकों की चेतावनी भी उन्हें उनके मकसद से नहीं डिगा सकी थी। शहर के अहियापुर (मालवीयनगर) मुहल्ले में तीन जून 1844 को पं. वेणी प्रसाद के घर में जन्मे पं. बालकृष्ण ने हिंदी पत्रकारिता व साहित्य को अपने क्रांतिकारी भावों से लैस किया था। सितंबर, 1877 से फरवरी, 1910 तक हिंदी प्रदीप का प्रकाशन व संपादन किया। 20 जुलाई 1914 को उन्होंंने अंतिम सांस ली थी।
एक नजर डालें जन्म : तीन जून 1844
मृत्यु : 20 जुलाई 1914
बालकृष्ण ने हिंदी सेवा का व्रत लिया था : डॉ. रामनरेशवरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामनरेश त्रिपाठी कहते हैं कि भारतेंदु जी से प्रभावित होकर पं. बालकृष्ण ने हिंदी सेवा का व्रत लिया था। ब्रिटिश हुकूमत जब पं. बालकृष्ण को नहीं झुका सकी तब उनके संपर्क में रहने वालों को परेशान करना शुरू कर दिया। ऐसे में पं. भट्टï हिंदी प्रदीप को स्वयं लोगों के घर-घर पहुंचाने जाते थे। इस पत्रिका के जरिए वह दहेज प्रथा, अनुसूचित जाति के लोगों की उपेक्षा जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध भी आवाज बुलंद करते रहे।
बालकृष्ण को स्वाभिमानी व्यक्ति थे : नरेंद्र देव लोकतंत्र सेनानी नरेंद्र देव पांडेय पं. बालकृष्ण को स्वाभिमानी व्यक्ति बताते हैैं। बताया कि कायस्थ पाठशाला में कक्षा सात तक की पढ़ाई के बाद उन्होंंने मिशन स्कूल में दाखिला लिया। जब वह 11 वीं कक्षा के छात्र थे तब क्रिश्चियन प्रधानाचार्य ने हिंदी व भारतीय संस्कृति को लेकर कुछ ऐसी बातें कही जो पं. बालकृष्ण को नागवार गुजरी। वह प्रधानाचार्य को फटकार लगाते हुए स्कूल छोड़कर आ गए। फिर कभी स्कूल नहीं गए। घर में संस्कृत की पढ़ाई की। उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी व फारसी के भी ज्ञाता थे। साहित्यकार रविनंदन सिंह का कहना है कि अपने क्रांतिकारी स्वभाव की वजह से पं. बालकृष्ण भट्ट ने कायस्थ पाठशाला में संस्कृत के अध्यापक की नौकरी नहीं की।
बालकृष्ण की प्रमुख रचनाएं-निबंध संग्रह : साहित्य सुमन और भट्ट, आत्मनिर्भरता। -उपन्यास : नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान और एक सुजान, रहस्य कथा। -मौलिक नाटक : दमयंती स्वयंवर, बाल विवाह, चंद्रसेन, रेल का विकट खेल।
-अनुवाद : बांग्ला व संस्कृत के नाटक वेणी संहार, मृच्छकटिक, पद्मावती।
बोले, हिंदुस्तानी एकेडमी के अध्यक्षहिंदुस्तानी एकेडमी के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहते हैैं कि पं. बालकृष्ण भट्टï की रचनाएं संरक्षित की जाएंगी। आधुनिक गद्य के निर्माता पं. बालकृष्ण भट्ट की मूर्ति एकेडमी परिसर में लगवाई गई है। वहीं पुरस्कार शुरू करने की जरूरत पं. देवीदत्त शुक्ल पं. रमादत्त शुक्ल शोध संस्थान बीते कुछ वर्षों से पं. बालकृष्ण भट्ट की जयंती, व पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित करता आ रहा है। संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा चाहते हैैं कि सरकार पं. बालकृष्ण के नाम से सम्मान व पुरस्कार घोषित कर उनका एक स्मारक भी बनवाए।
आज भी मौजूद है चौकीपं. बालकृष्ण का आवास आज भी हिंदी जगत के लिए श्रद्धा का केंद्र है। उनकी वह चौकी आज भी है, जिस पर बैठकर वह अपनी आत्मानुभूति को अभिव्यक्ति देते थे। 'भारत का भावी परिणाम क्या होगा', 'यह कौन कह सकता है कि भारतवासियों के भाग्य में दु:ख भोगना कब तक बदा' है। जैसे उनके शीर्षक बुजुर्ग साहित्यकारों के जेहन में हैैं।
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