Balkrishna Birth Anniversary: बालकृष्ण भट्ट के नाम प्रयागराज में पत्रकारिता संस्थान चाहते हैं रचनाकार
Balkrishna Birth Anniversary तीन जून 1844 को जन्मे बालकृष्ण भट्ट ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अलख जगाने के लिए मासिक पत्रिका हिन्दी प्रदीप का प्रकाशन शुरू कराया था। पत्रिका का पहला अंक कालेज के छात्रों द्वारा दिए गए पांच-पांच रुपये के चंदा-राशि से सितंबर 1877 में प्रकाशित हुआ।
By Ankur TripathiEdited By: Updated: Fri, 03 Jun 2022 05:17 PM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आर्थिक तंगी से जूझते हुए पत्रकारिता की लौ जगाने वाले पंडित बालकृष्ण भट्ट की जन्म व कर्मस्थली प्रयागराज में उपेक्षा से रचनाकार आहत हैं। वे शासन-प्रशासन द्वारा पं. बालकृष्ण की सुध न लेने से चिंतित भी हैं। इसके बीच प्रयागराज में पं. बालकृष्ण के नाम पर पत्रकारिता संस्थान बनाने की मांग मुखर होने लगी है।
रचनाकारों की मांग, जल्द उचित निर्णय ले सरकार
प्रयागराज के अहियापुर मोहल्ले में तीन जून 1844 को जन्मे बालकृष्ण भट्ट ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अलग जगाने के लिए मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रदीप' का प्रकाशन शुरू कराया था। पत्रिका का पहला अंक कालेज के छात्रों द्वारा दिए गए पांच-पांच रुपये के चंदा-राशि से सितंबर 1877 में प्रकाशित हुआ। आरम्भ से ही पत्रिका पर ब्रिटिश सरकार का दमनचक्र चलता रहा। इसके बाद भी पत्रिका 32 वर्ष सात माह तक निकलती रही। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' के (अगस्त 1906) अंक में 'हिंदी प्रदीप' पर एक लेख लिखा, जिसमें भट्टजी द्वारा हिंदी वर्धिनी सभा की स्थापना व पत्रिका निकालने का उल्लेख किया था। सरस्वती पत्रिका के संपादक रविनंदन सिंह कहते हैं कि 'हिंदी प्रदीप' अप्रैल 1909 के अंक में छपी माधव शुक्ल की कविता 'बम क्या है' पर सरकार ने तीन हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया था।
प्रयागराज के अहियापुर मोहल्ले में तीन जून 1844 को जन्मे बालकृष्ण भट्ट ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अलग जगाने के लिए मासिक पत्रिका 'हिन्दी प्रदीप' का प्रकाशन शुरू कराया था। पत्रिका का पहला अंक कालेज के छात्रों द्वारा दिए गए पांच-पांच रुपये के चंदा-राशि से सितंबर 1877 में प्रकाशित हुआ। आरम्भ से ही पत्रिका पर ब्रिटिश सरकार का दमनचक्र चलता रहा। इसके बाद भी पत्रिका 32 वर्ष सात माह तक निकलती रही। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' के (अगस्त 1906) अंक में 'हिंदी प्रदीप' पर एक लेख लिखा, जिसमें भट्टजी द्वारा हिंदी वर्धिनी सभा की स्थापना व पत्रिका निकालने का उल्लेख किया था। सरस्वती पत्रिका के संपादक रविनंदन सिंह कहते हैं कि 'हिंदी प्रदीप' अप्रैल 1909 के अंक में छपी माधव शुक्ल की कविता 'बम क्या है' पर सरकार ने तीन हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया था।
भोजन तक के पैसे नहीं थे भट्ट जी के पासभट्टजी के पास तो भोजन तक के लिए धन नहीं था। ऐसे में वो जुर्माना की राशि का प्रबंध कहां से करते? ब्रिटिश सरकार के दमनात्मक रवैये से हिंदी प्रदीप की लौ सदा के लिए बुझ गयी। पत्रकारिता के लिए अमूल्य योगदान को देखते हुए पं. बालकृष्ण के नाम पर प्रयागराज में पत्रकारिता संस्थान बनाना चाहिए। साहित्यिक चिंतक व्रतशील शर्मा कहते हैं कि पं. बालकृष्ण के नाम पर पत्रकारिता संस्थान के साथ उन्हें समर्पित संग्रहालय बनाया जाना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि पं. बालकृष्ण जैसी विभूति को उनकी जन्म व कर्मस्थली में उपेक्षित करना चिंताजनक है। सरकार उनके नाम पर पत्रकारिता संस्थान बनवाए, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हाेगी। वरिष्ठ कथाकार डा. कीर्ति कुमार सिंह ने पं. बालकृष्ण भट्ट के जन्म स्थल को संरक्षित करने का सुझाव दिया। कहा कि पं. बालकृष्ण भट्ट ने जहां रहकर पत्रकारिता की अलख जगाई है, उसे संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाए।
मुख्यमंत्री को लिखा पत्रपं. बालकृष्ण के नाम पर पत्रकारिता संस्थान बनवाने के लिए साहित्यकार अनुपम परिहार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है। कहा कि उचित कार्यवाही न होने तक मुख्यमंत्री को नियमित पत्र भेजा जाएगा।
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