चिप बताएगी लिवर की नई दवाएं इंसानों के लिए कितनी सुरक्षित, IIIT के वैज्ञानिकों ने तैयार किया डिवाइस
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (ट्रिपलआइटी) के विज्ञानियों ने प्री-क्लीनिकल ट्रायल (ड्रग ट्रायल) की प्रक्रिया को आसान और भरोसेमंद बनाने के लिए लिवर आन चिप डिवाइस तैयार किया है। यह ड्रग ट्रायल के लिए आर्गन आन चिप प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है।
By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Mon, 19 Dec 2022 08:09 PM (IST)
मृत्युंजय मिश्रा, प्रयागराज। आधी सदी से भी अधिक समय से चूहे , खरगोश , कुत्ते और बंदरों का विभिन्न प्रयोगशालाओं में दवा परीक्षण के लिए इस्तेमाल होता है। पशुओं और इंसानों की जैविक बनावट अलग होने के कारण जरूरी नहीं है कि पशुओं पर अच्छा प्रदर्शन करने वाले दवाएं इंसानों के लिए सुरक्षित भी हों।
अब भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (IIIT) के विज्ञानियों ने प्री-क्लीनिकल ट्रायल (ड्रग ट्रायल) की प्रक्रिया को आसान और भरोसेमंद बनाने के लिए ' लिवर आन चिप ' डिवाइस तैयार किया है। यह ड्रग ट्रायल के लिए आर्गन आन चिप प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है। इससे लिवर की दवाओं के परीक्षण में पशुओं व इंसानों की जरूरत खत्म की जा सकेगी। दवा का लिवर पर वही परिणाम होगा जो इस डिवाइस पर दिखाई देगा।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशन, पेटेंट भी मिला
ट्रिपलआइटी के अप्लाइड साइंस विभाग के प्रो. अमित प्रभाकर के निर्देशन में शोध छात्रा निमिषा राय ने तीन वर्ष के शोध के बाद दवा और विषाक्तता परीक्षण के लिए कम लागत वाला लिवर आन चिप प्लेटफार्म विकसित किया है। यह चिप माइक्रोफ्लुइडिक डिवाइस है , जो लिवर की बीमारियों के ड्रग ट्रायल की प्रक्रिया को ही बदल देगा। इस खोज को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एसीएस ओमेगा ने प्रकाशित किया है।
साथ ही इसको अप्रैल 2022 में आस्ट्रेलियाई इनोवेशन पेंटेंट भी मिल चुका है। निमिषा ने बताय कि दवा तैयार कर बाजार में उतारने में 10 से 12 वर्ष का समय और भारी रकम खर्च होती है। साथ ही दवाओं के ड्रग ट्रायल के दौरान पशुओं और वालंटियर पर परीक्षण के खतरे भी हैं। यह डिवाइस परीक्षण के खतरे को कम करेगी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।लिवर की कार्यप्रणाली का प्रतिरूप है डिवाइस
प्रो. अमित प्रभाकर बता ते हैं कि लिवर आन चिप डिवाइस लिवर कोशिकाओं की कार्यप्रणाली का ही एक प्रतिरूप है। मानव लिवर की कोशिकाओं (हिपैटोसाइट्स) के बाहर एक सुरक्षात्मक कवच होता है। इसको ध्यान में रखते हुए फोटो लिथोग्राफी तकनीक से लिवर आन चिप डिवाइस तैयार की गई है । इसमें दो चैंबर हैं , जिनके बीच में एक झिल्ली होती है। परीक्षण में नेशनल सेंटर फार सेल साइंस (एनसीसीएस) से सेल लाइन मंगाकर इसको डिवाइस के चेंबर में विकसित कराया गया। इसके बाद इसमें पोषक तत्व व दवा डालकर परीक्षण किया गया। दवा झिल्ली के जरिए कोशिकाओं तक पहुंची और प्रभाव दिखाया। कोशिकाओं के मरने या फिर उनकी वृद्धि से दवा के लिवर पर परिणाम का पता लग सकता है।पशुओं पर परीक्षण कम भरोसेमंद
शोधार्थी निमिषा राय कहती हैं कि वर्ष 2006 में नार्थविक दवा परीक्षण आपदा ने दुनिया को हिलाकर रख दिया था। इस त्रासदी को द एलिफेंट मैन ट्रायल के रूप में जाना जाता है। इस में लंदन के नार्थविक पार्क अस्पताल में छह स्वयंसेवकों ने टीजीएन- 1412 दवा ली थी। कुछ घंटों बाद इन स्वयंसेवकों में गंभीर अंग विफलता और मस्तिष्क में सूजन के मामले आने लगे। कई वालंटियर कैंसर और आटोइम्यून रोग के प्रति संवेदनशील हो गए। हैरानी की बात थी कि इस नई दवा ने बंदरों में अच्छा परिणाम दिखाया था। दवाओं के परीक्षण के लिए आर्गन आन चिप एक प्रक्रिया है। जिसके तहत शरीर के अंदरूनी अंगों (लिवर , किडनी , हृदय , आंत , पेट , फेफड़े सहित सभी अंग) पर दवा और बीमारियों के प्रभाव जांचा जा सकता है। शरीर के अंदरूनी अंगों की कार्यप्रणाली की परिस्थितियों को एक चिप पर तैयार किया जाता है , ताकि बिना अंगों को क्षति पहुंचाए दवा के सटीक प्रभाव का अध्ययन किया जा सके। हर अंग की अलग-अलग कार्यप्रणाली होती है। इसलिए हर आं तरिक अंग के अनुसार अलग-अलग परीक्षण चिप तैयार करने का काम विभिन्न संस्थानों में विज्ञानी कर रहे हैं। निमिषा ने बताया कि इसी कड़ी में लिवर पर दवा परीक्षण के लिए ' लिवर आन चिप ' तैयार किया गया है। लिवर आन चिप डिवाइस दवाओं के परीक्षण में क्रांतिकारी कदम है। इससे दवाओं के परीक्षण में पशुओं के प्रयोग को कम करने में मदद मिलेगी। नई दवा की खोज के लिए समय और दवा की विफलता से होने वाले नुकसान को भी रोका जा सकेगा। दवा के बाजार में आने में लगने वाले समय व लागत दोनों में पचास प्रतिशत तक कमी आ जाएगी।यह भी पढ़ें: Delhi: लिवर प्रत्यारोपण तक पहुंचे मरीज की प्लाज्मा बदलकर बचाई जान, 30 लाख की जगह 30 हजार आया खर्चा