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Dala Chhath 2020 : नहाय-खाय से तन-मन किया पवित्र, डाला छठ का महापर्व आरंभ

Dala Chhath 2020 पूर्वांचल विकास एवं छठ पूजा समिति के सदस्यों ने बुधवार को संगम व गंगा के घाटों को दुरुस्त किया। श्रद्धालुओं की मदद के लिए संगम नोज पर कैंप कार्यालय खुलवाया । समिति के अध्यक्ष अजय राय ने बताया कि गुरुवार को अखंड रामायण पाठ की शुरुआत होगी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 18 Nov 2020 05:19 PM (IST)
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छठी मइया का ध्यान करके व्रत के निर्विघ्न पूर्ण होने की कामना की।

प्रयागराज,जेएनएन। सुख-समृद्धि, शुद्धता व सात्विकता का महापर्व डाला छठ बुधवार को नहाय-खाय से आरंभ हो गया। सुबह गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम के पवित्र जल में व्रती महिलाओं ने डुबकी लगाई। स्नान, ध्यान के बाद सूर्यदेव को अघ्र्य देकर पूजन किया। दिन में पूजा घर व रसोई की सफाई की। व्रत के लिए सूप, फल व अन्य पूजन सामग्री की खरीदारी की। सूर्यास्त के बाद पुन: स्नान करके नया वस्त्र धारण किया। छठी मइया का ध्यान करके व्रत के निर्विघ्न पूर्ण होने की कामना की। फिर गुड़, लौकी अथवा गुड़, चावल की खीर बनाकर उसे ग्रहण किया। घर के सारे सदस्यों ने उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया। डाला छठ व्रत के तहत गुरुवार को खरना मनाया जाएगा। खरना में रात में गन्ने के रस में खीर बनाकर व्रती महिलाएं ग्रहण करेंगी। यहीं से उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ हो जाएगा।

पूजन में यह हैं शुभ

छठी मइया को नींबू, नारंगी, गन्ना, नारियल, सिंघाड़ा, केला, ठेकुआ अर्पित किया जाता है। सबका खास महत्व है। नींबू व नारंगी का रंग पीला होता है। यह रंग शुभ होता है। जबकि समृद्धि के प्रतीक गन्ना का मंडप बनाकर उसके अंदर बैठकर पूजा होगी। सिंघाड़ा रोगनाशक होता है। केला, सुपाड़ी, पान, अमरूद व नारियल पवित्रता के प्रतीक हैं।

घाट हुए दुरुस्त, खुला कार्यालय

पूर्वांचल विकास एवं छठ पूजा समिति के सदस्यों ने बुधवार को संगम व गंगा तट के घाटों को दुरुस्त किया। श्रद्धालुओं की मदद के लिए संगम नोज पर कैंप कार्यालय खुलवाया है। समिति के अध्यक्ष अजय राय ने बताया कि गुरुवार को अखंड रामायण पाठ की शुरुआत होगी। साथ ही सेनेटाइजर व मास्क का वितरण किया जाएगा।

समस्त कष्ट दूर करती हैं छठी मइया : डॉ. बिपिन

विश्व पुरोहित परिषद के अध्यक्ष डॉ. बिपिन पांडेय बताते हैं कि डाला छठ व्रत प्रकृति से प्रेम, सूर्य और जल की महत्ता के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, वे संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। काॢतक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया हैं। बालक के जन्म के छठें दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है, जिससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत होते हैं। डाला छठ पर डूबते व उगते सूर्य को अघ्र्य देकर छठी मइया (षष्ठी देवी) का पूजन करने से व्रती व उनके परिजनों को दैहिक, दैविक व भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

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