Diwali 2022: मिट्टी संग चाक पर दौड़ने को तैयार कुम्हारों की जिंदगी, कोरोना से ठप कारोबार में तेजी की उम्मीद
अबकी कुम्हारों की दीपावली रोशन होने की उम्मीद है। दीये बनाने से लेकर पूजन के विभिन्न बर्तनों को तैयार करने में उनका अधिकांश समय चाक पर गुजर रहा है। प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। ऐसे में मिट्टी के दीये व अन्य बर्तनों के दिन लौट रहे हैं।
By Anurag SrivastavaEdited By: Ankur TripathiUpdated: Wed, 19 Oct 2022 07:00 AM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। मिट्टी के चाक संग कुम्हारों के जिंदगी की गाड़ी भी पटरी पर दौड़ने लगी है। पिछले दो सालों से थमा उनके आर्थिक विकास का पहिया दौड़ चलने को तैयार है। कोरोना के कारण ठप पड़े कारोबार को इस बार की दीपावली पर रफ्तार मिलने की उम्मीद में लगे कुम्हारों ने पहले से तैयारी शुरू कर दी है। बाजार में बढ़ी दीये की मांग के हिसाब से उन्होंने माहभर पहले से ही दीयों का निर्माण शुरू कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल फार वोकल के मंत्र से कुम्हारों की दीपावली रोशन होने की उम्मीद है। दीये बनाने से लेकर पूजन के लिए विभिन्न बर्तनों को तैयार करने में उनका अधिकांश समय चाक पर गुजर रहा है। सरकार ने प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रखा है। ऐसे में मिट्टी के दीये व अन्य बर्तनों के दिन लौट रहे हैं।दो साल में टूट गया था कारोबार
नैनी स्थित दक्षिण लोकपुर कुम्हारों का गांव है। यहां मौजूद हर परिवार मिट्टी के बर्तन, दीये, गुल्लक समेत अन्य आइटम को तैयार करने में लगा रहता है। दीये का कारोबार करने वाले भोलानाथ प्रजापति बताते हैं कि कोरोना के कारण कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया था। पिछले साल बाजार खुला भी, तो वह रंग नहीं मिल पाया। जिससे उनके परिवार को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस बार कोरोना समाप्त हुआ तो दीपावली की तैयारी उन्होंने पहले से ही शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि इस बार कारोबार ठीक होने पर वह अपने बच्चों की पढ़ाई को और आगे बढ़ा सकेंगे।
आठ दशक से कर रहे हैं काम
लगभग अस्सी की उम्र और हाथ में लाठी लिए पुरुषोत्तम रोज सुबह चाक घुमाने और दीये बनाने में जुट जाते हैं। मिट्टी महंगी होने व लोगों का दीयों के प्रति रूझान घटने लगा है। लेकिन दादा और पिता जी से विरासत में मिली कारीगरी उन्होंने नहीं छोड़ी है। बताते हैं कि बच्चे पढ़ लिख रहे हैं। पता नहीं आगे इस काम को करेंगे भी या नहीं लेकिन जब तक वह जिंदा है। इसी कारोबार को करते रहेंगे।
महंगी हो गई है मिट्टी मिट्टी के उत्पाद बनाने वाले विश्वनाथ प्रजापति बताते हैं कि कोरोना से पहले जो मिट्टी दो हजार रुपये प्रति ट्रैक्टर मिल जाती थी। वह इस बार दोगुनी हो गई है। उसके लिए उनको चार हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं, लेकिन अब लोग खरीदने में रूची नहीं ले रहे हैं। इसके कारण घर के बच्चे मेहनत-मजदूरी करने लगे हैं।इनसे न करें मोलभावदो साल में महंगाई व आर्थिक रूप से टूट चुके इन परिवारों से सामान खरीदने के दौरान मोलभाव न करें। कुछ पैसे पर दीये के मुनाफे पर यह सिर्फ अपने परिवार को पेट पालने के लिए इस कारोबार को जिंदा रखे हुए हैं। वहीं ऐसे लोगों से दीयों की खरीदारी कर आप उनका घर रोशन करने में भी मदद कर सकते हैं।
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