बथुआ है गुणों की खान, ठंड में शरीर के लिए अमृत समान Prayagraj News
बथुए में कई औषधीय गुण होते हैं जो इसको खास बनाते हैं। इसका सेवन करने से तमाम रोगों से बचाव संभव है। इसका साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। यह अमाशय को मजबूत करता है। कब्ज दूर करने के साथ बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रकृति ने हमें ऐसी चीजें उपलब्ध कराई हैं जो हमारे शरीर के पोषण के लिए लाभकारी होने के साथ हमें स्वास्थ्य भी प्रदान करते हैं। जानकारी न होने अथवा कई बार स्वाद ठीक न लगने के कारण हम उक्त चीजों का सेवन नहीं करते हैं। आइये जानते हैं ऐसे ही गुणकारी पौधे के बारे में जिसमें मौजूद तत्व हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद है। सर्दी के मौसम में तो यह शरीर के लिए अमृत के समान है। गुणों की खान तो है ही।
हमारे यहां अनादि काल से खाया जाता रहा है बथुआ
आयुर्वेदाचार्य डा. भरत नायक का कहना है कि अंग्रेजी में बथुआ को लैंब्स क्वार्टर्स कहते हैं, वैज्ञानिक नाम सिनोपोडियम एल्बम है। हमारे देश में बथुआ का इस्तेमाल खानपान में प्राचीन समय से होता आ रहा है। इसको साग के रूप में अथवा दाल में डालकर खाया जाता है जिसे पूर्वांचल में लोग सगपैता कहते हैं। पुराने समय में हमारी दादी-नानी डैंड्रफ साफ करने के लिए बथुवे के पानी से सिर धोया करती थीं। घरों का रंग हरा करने के लिए दीवारों का पलस्तर कराते समय सीमेंट में लोग बथुवा मिलाते थे।
विटामिन और मिनरल्स से होता है भरपूर, ठंडी में अच्छा आहार
बथुआ का पौधा विटामिन व मिनरल्स से भरपूर होता है। ठंडी में यह बेहतर आहार है जो शरीर को गर्मी देने के साथ ही तमाम रोगों से भी बचाता है। विटामिन बी व विटामिन सी से भरपूर होता है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, मैगनीज, सोडियम, आइरन, फास्फोरस, पोटैशियम, जिंक आदि मिनरल्स पाए जाते हैं। सौ ग्राम कच्चे बथुए के पत्तों में 7.3 ग्राम कार्बोहाडे्रट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व चार ग्राम पोषक रेशे होते हैं।
बच्चा हो या बूढ़ा, सबके लिए बथुआ है फायदेमंद
बथुए में कई औषधीय गुण होते हैं जो इसको खास बनाते हैं। इसका सेवन करने से तमाम रोगों से बचाव संभव है। इसका साग प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। यह अमाशय को मजबूत करता है। कब्ज दूर करने के साथ गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। लीवर के लिए भी लाभकारी है। त्वचा संबंधी रोगों से भी छुटकारा मिलता है। डाक्टर्स का कहना है कि जब तक बथुआ मिले तब तक नित्य साग और रायता के रूप में सेवन करें।