प्रयागराज में तो कमाल ही हो गया, एक खेत में पांच फसलों की खेती, फाफामऊ के किसानों ने यह कर दिखाया
मातादीन का पूरा गांव के किसानों के अनुसार पंच फसली खेती की बुवाई जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। एक खेत में एक साथ खीरा तरोई कद्दू अथवा नेनुआ की बोवाई कतार में की जाती है।
प्रयागराज, जेएनएन। कृषि पर सूखे की मार से किसान एक फसल की खेती के लिए भगवान भरोसे रहते हैं। ऐसे में पंजाब की तर्ज पर 1 वर्ष में 5 फसलों की मॉडल खेती क्षेत्र में किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इस तरह की पंच फसली आधुनिक खेती से फाफामऊ से सटे मातादीन का पूरा गांव के किसान मालामाल हो रहे हैं। इस पंच फसली खेती पर सूखे और अधिक बारिश का विशेष असर नहीं पड़ता।
यह खेती इससे जुड़े किसानों के लिए जीविकोपार्जन का एक अच्छा विकल्प है। मातादीन का पूरा गांव के किसानों के अनुसार पंच फसली खेती की बुवाई जून के अंतिम और जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। एक खेत में एक साथ खीरा तरोई कद्दू अथवा नेनुआ की बोवाई कतार में की जाती है जबकि करेला चौरा और सेम की बुवाई बनाए गए मानक के अनुसार भी की जाती है। सभी फसल 1 फीट की हो जाती है तो खेत में फैला दिया जाता है। करेला, चौरा और सेम के पौधों के लिए लकड़ी लगाकर उनको ऊपर की ओर चढ़ा दिया जाता है।
जब यह पौधे लकड़ी के ऊपर चढ़ जाते हैं। तो करीब 5 फीट ऊपर बांस बल्ली गाड़ कर तार की जाल तैयार की जाती है जिस पर यह पौधे जाल पर पूरे खेत पर फैल जाते हैं। सबसे पहले खीरा की फसल पैदावार देना शुरू करती है। उसके बाद तरोई और नेनुआ फिर कद्दू की फसल तैयार होती है। खास बात यह है कि खीरा के बाद नेनुआ और तरोई उसके बाद कद्दू की फसल पैदावार देने के बाद अपने आप समाप्त हो जाती है। ऊपर जाल पर फैली करेला और चौरा की फसल समाप्त होने के बाद जाल पर सेम की फसल चारों ओर फैल कर फल देना शुरू कर देती है। यह मार्च महीने तक चलता है।
गांव के रामबरन पुरुषोत्तम जियालाल आज किसान का कहना है कि एक बीघे की खेती में खाद कीटनाशक दवा, बांस-बल्ली और तार में करीब 15 से 20000 रुपये खर्च हो जाते हैं जबकि आमदनी 70 से 80000 रुपये की होती है। मातादीन का पूरा गांव की जनसंख्या करीब 3000 है। किसानों का जीवन स्तर दिनोंदिन सुधर रहा है। शिक्षा के प्रति जागृति आई है। कई लोगों के पास खेती के आधुनिक संसाधन ट्रैक्टर एवं निजी पंपिंग सेट है। अधिकतर लोगों के पास मकान पक्के हैं।
जिला कृषि अधिकारी डॉ अश्वनी कुमार सिंह का कहना है कि एक साथ एक खेत में पांच फसलें पैदा करना आश्चर्य से कम नहीं है। किसानों के उत्साह के लिए गांव में चौपाल लगाकर और अधिक जागरूक करने का प्रयास किया जाएगा।