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Pt. Hariprasad Chaurasia Birthday : उस लड़के की बांसुरी से हरि ने पहली बार बजाई संगीत की धुन

एक लड़के से मांगकर बांसुरी की धुन बजाई तो वह आज तक बज रही है। वह लड़का तो उस समय थोड़ी देर बाद अपनी बांसुरी लेकर चला गया लेकिन बांसुरी के बड़े वादक का मार्ग प्रशस्त कर गया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 01 Jul 2020 08:04 AM (IST)
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Pt. Hariprasad Chaurasia Birthday : उस लड़के की बांसुरी से हरि ने पहली बार बजाई संगीत की धुन
 प्रयागराज, [अमरदीप भट्ट] बांसुरी की सुर का जादू देश-दुनिया में बिखेरने वाले पद्मविभूषण हरि प्रसाद चौरसिया के जीवन में बांसुरी की पहली धुन एक अनाम लड़के ने बजाई थी। उस समय संगम की रेती पर माघ मेला लगा था। मेले से बांसुरी खरीदकर भारती भवन पुस्तकालय के पास की गली से बजाते हुए अनाम लड़का निकला तो 13 साल के हरि ने उसे रोक लिया। उसकी बांसुरी मांगकर बजाई तो संगीत विद्यालय चलाने वाले पड़ोसी राजाराम धुन सुनकर चकित रह गए। उन्हें बुलाकर अपने विद्यालय में संगीत का प्रशिक्षण दिया। अब तो बांसुरी और पं. हरिप्रसाद चौरसिया एक दूसरे के पर्याय जैसे हैैं।

प्रयागराज में भारती भवन के पास हुआ जन्‍म

एक जुलाई १९३८ को प्रयागराज के भारती भवन पुस्तकालय के समीप छेदीलाल चौरसिया के बेटे के रूप में उनका जन्म हुआ। बचपन में ही मन संगीत की ओर झुकने लगा। परिवार उन्हें पहलवान बनाना चाहता था। उनके बालसखा रामचंद्र पटेल बताते हैैं कि हरि अपने मन और परिवार की इच्छा के बीच निर्णय की उधेड़बुन में अक्सर रहते थे, लेकिन उनकी जिंदगी का सूरज तो संगीत के क्षितिज पर चमकना था, सो अचानक एक दिन राह मिल गई। एक लड़के से मांगकर बांसुरी की धुन बजाई तो वह आज तक बज रही है। वह लड़का तो उस समय थोड़ी देर बाद अपनी बांसुरी लेकर चला गया, लेकिन बांसुरी के बड़े वादक का मार्ग प्रशस्त कर गया।

गुरुओं की शागिर्दगी में उन्होंने खुद को और निखारा

रामचंद्र के मुताबिक उस समय हरिप्रसाद की उम्र 13-14 वर्ष रही होगी। राजाराम के विद्यालय में प्रशिक्षण लेने के बाद उनकी बांसुरी दूर-दूर तक सुनी जाने लगी। इसके बाद अलग-अलग गुरुओं की शागिर्दगी में उन्होंने खुद को और निखारा। उन्हें आकाशवाणी प्रयागराज में कार्यक्रम मिलने लगे।

महारत हासिल हुई तो जुड गया टाइटल 'पंडित'

शास्त्रीय संगीत और खासकर बांसुरी में महारत होने से लोग उन्हें सम्मानपूर्वक पंडित जी कहने लगे। फिर तो यह उनके नाम में टाइटल के रूप में जुड़ गया। आकाशवाणी कटक में नौकरी उनके जीवन में बदलाव का अहम मोड़ बना और मुंबई में उनका कदम मुकम्मल मंजिल साबित हुआ।

रियाज के लिए छुपा कर लाते थे बांसुरी

 पं. हरि प्रसाद चौरसिया के भतीजे गोपाल जी चौरसिया ने बताया कि चाचा हरि प्रसाद मेरे ही घर में  बांसुरी बजाने का रियाज करते थे। बांसुरी को कमर में छुपाकर लाते थे ताकि यह बात उनके पिता तक न पहुंच जाए। उन्होंने तमाम परेशानियों के बावजूद संगीत और बांसुरी का साथ नहीं छोड़ा। अक्सर मुझे भी बांसुरी सुनाने आकाशवाणी ले जाते थे। 

कैंची स्टाइल में साइकिल चलाकर आते थे घर

बांसुरी वादक भोलानाथ प्रसन्ना के पुत्र सपन प्रसन्ना ने बताया कि हरि प्रसाद चौरसिया मेरे पिता भोलानाथ प्रसन्ना के अग्रणी शिष्यों में थे। वे लोकनाथ से साइकिल कैंची स्टाइल में चलाकर बहुगुणा मार्केट के समीप मेरे घर आते थे। यहीं पिता जी से बांसुरी सीखते। मां उन्हें खाना बनाकर खिलातीं। उन्होंने पिता जी के नाम से वाराणसी में पार्क और सड़क का निर्माण कराया।

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