Indira Gandhi Death Anniversary: आखिरी इलाहाबाद यात्रा में इंदिरा ने अनाथ बच्चों को अपनी कार में कराई थी सैर
इंदिरा गांधी का बचपन और युवा होने तक का जीवन इलाहाबाद (प्रयागराज) में गुजरा। कर्नलगंज में वह चाट खाने भी चली जाती थीं। 14 साल थीं तभी उनके मन में क्रांतिकारियों की मदद का जज्बा उभरा। साथी सहेलियों के साथ वानर सेना बना ली।
By Ankur TripathiEdited By: Updated: Mon, 31 Oct 2022 07:01 AM (IST)
अमरदीप भट्ट, प्रयागराज। अरे, इतने अच्छे बच्चे हैं यहां के? सब बताओ पढ़ लिखकर क्या बनोगे? अच्छा कार में घूमना किसको पसंद है? जब आवाज आई मुझे... मुझे... मुझे, तो बोलीं, जाओ भई, आज सबको मेरी गाड़ी से 'इलाहाबाद' घुमाकर लाओ। यह सुनकर बच्चों के चेहरे खिल गए। अपनी जन्मभूमि की अंतिम यात्रा पर कुछ ऐसी आत्मीयता से अनाथ बच्चों से मिली थीं इंदिरा गांधी। वे अपने निधन से ठीक एक साल पहले यानी 1983 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आयी थीं। आनंद भवन में प्रवास के दौरान स्वराज भवन स्थित अनाथ आश्रम में बच्चाें से मिलने गईं। अपनी विशेष सुरक्षित गाड़ी (तीन कारों का काफिला) से बच्चों को सैर करवाया था।
1917 को आनंद भवन में हुआ था इंदिरा गांधी का जन्मआनंद भवन में 19 नवंबर 1917 को जन्मीं इंदिरा, तीर्थराज प्रयाग की धरती पर ऐसा इस्पात थीं जिसने पूरी दुनिया को अपना लोहा मनवाया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्यामकृष्ण पांडेय के श्वसुर मुंशी कन्हैया लाल 1938 से 1985 तक आनंद भवन और स्वराज भवन के केयर टेकर थे। उनके ऊपर इंदिरा गांधी अत्यधिक भरोसा करती थीं।
आनंद भवन के तहखाने में बैठी रहीं चार घंटे
श्याम कृष्ण बताते हैं कि इंदिरा जी आखिरी बार इलाहाबाद आयी थीं तो आनंद भवन के उस तहखाने में चार घंटे बिताए थे, जहां स्वयं उनकी, पिता पं. जवाहर लाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, स्वरूपरानी नेहरू, कमला नेहरू की आलमारियां रखी हैं। उन्होंने सबको गहनता से देखा था। इसके बाद अनाथ आश्रम के बच्चों से मिलने गई थीं।
श्याम कृष्ण बताते हैं कि इंदिरा जी आखिरी बार इलाहाबाद आयी थीं तो आनंद भवन के उस तहखाने में चार घंटे बिताए थे, जहां स्वयं उनकी, पिता पं. जवाहर लाल नेहरू, मोतीलाल नेहरू, स्वरूपरानी नेहरू, कमला नेहरू की आलमारियां रखी हैं। उन्होंने सबको गहनता से देखा था। इसके बाद अनाथ आश्रम के बच्चों से मिलने गई थीं।
कर्नलगंज में चाट खाने जाती थीं इंदिराकांग्रेस के वरिष्ठ नेता बाबा अभय अवस्थी कहते हैं कि इंदिरा गांधी का बचपन और युवा होने तक का जीवन इलाहाबाद में गुजरा। कर्नलगंज में वह चाट खाने भी चली जाती थीं। 14 साल थीं तभी उनके मन में क्रांतिकारियों की मदद का जज्बा उभरा। साथी सहेलियों के साथ वानर सेना बना ली। वानर सेना नेहरू, गांधी के संदेश क्रांतिकारियों तक पहुंचाने लगी। उन्होंने जीरो रोड स्थित स्वरूपरानी पार्क में वानर सेना की बैठक भी की थी। प्रधानमंत्री रहते 1975 में इलाहाबाद के 25 लोगों को दिल्ली बुलाकर क्रांतिकारी होने का ताम्रपत्र भी दिया था। 1980 के दशक में कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट के अस्पताल गई थीं तो वहां उन्हें कर्मचारियों ने गेट पर ही घेर लिया था। इस पर वह कर्मचारियों के साथ समय बिताने के लिए वहीं सीढ़ियों पर बैठ गई थीं। इस शहर से उनका मोह लगातार बना रहा।
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