यमुना की लहरों से टकराते खूबसूरत बलुआघाट बारादरी का जानिए असली नाम और इतिहास
कारीगरी की बेजोड़ मिसाल हैं प्रयागराज में तमाम इमारतें। इनमें से एक प्रमुख है बलुआघाट की बारादरी। यह बारादरी के नाम से विख्यात इसलिए है क्योंकि इसमें 12 मजबूत खंभे लगाए गए थे। वास्तविक रूप से यह लाला मनोहरदास स्मारक है जो 1906 में बनकर तैयार हुआ
By Ankur TripathiEdited By: Updated: Fri, 01 Jul 2022 10:26 PM (IST)
प्रयागराज, जेएनएन। तीर्थराज प्रयाग में वास्तुकला के ढेरों उदाहरण केवल मुगलकालीन ही नहीं बल्कि ऐसे भी हैं, जिन्हें गुलाम भारत में ब्रिटिश सरकार के रहते आर्थिक रूप से संपन्न लोगों ने बनवाया। कारीगरी की बेजोड़ मिसाल हैं ऐसी इमारतें। इनमें से एक प्रमुख है बलुआघाट की बारादरी। यह बारादरी के नाम से विख्यात इसलिए है, क्योंकि इसमें 12 मजबूत खंभे लगाए गए थे। वास्तविक रूप से यह लाला मनोहरदास स्मारक है।
1906 में बनकर तैयार हुआ था स्मारक, तब जानिए कितना हुआ था खर्चलाला कन्हैयालाल टंडन के बेटे लाला मनोहरदास ने संकल्प लिया था इस बारादरी को बनवाने का। उस समय इस पर एक लाख रुपये खर्च सीमा तय हुई थी। लाला मनोहरदास की मृत्यु के बाद इस संकल्प को पूरा किया उनके दूसरे बेटे लाला रामचरण दास राय बहादुर महाजन ने। बारादरी, यमुना नदी के घाट तक सीढ़ियां और गुंबद बनवाने में तब डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए थे और यह स्मारक सन 1906 में बनकर तैयार हुआ था। इसकी खूबसूरती कुछ ऐसी है, जिसे करीब से देखकर आप भी दंग रह जाएंगे।
यमुना की लहरों से टकराने के बाद अडिग है बारादरीहर साल यमुना नदी की बाढ़ में लहरों के टकराने के बावजूद यह स्मारक पूरी मजबूती से आज भी खड़ा है। इसमें खंभों के अलावा छत और छज्जे की नक्काशी देखते ही बनती है। यह स्मारक केवल खूबसूरती तक ही नहीं, बाढ़ की विकराल स्थिति पर नजर बनाए रखने का एक तरह से मापक पैमाना भी बन गया है। पुरनिए आज भी कहते हैं कि 1978 की बाढ़ में यमुना जी का जलस्तर बारादरी की छत के करीब पहुंच गया था। अब तो इस बारादरी की सुंदरता बनाए रखने के लिए ना किसी के कदम आगे बढ़ रहे हैं ना स्थानीय लोग इसकी परवाह करते हैं। अपने भव्य स्वरूप के साथ बारादरी दूसरी ऐतिहासिक इमारतों से किसी मामले में कमतर नहीं है।
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