किस टकराव की वजह से प्रयागराज में हुई थी स्वराज पार्टी की स्थापना, पढि़ए यह खबर
प्रो.तिवारी बताते हैं कि इसी अधिवेशन के बाद जनवरी 1923 मेें प्रयागराज में चितरंजन दास नरसिंह चिंतामन केलकर मोतीलाल नेहरू और बिटठल भाई ने कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी की स्थापना की। चितरंजन दास पार्टी के अध्यक्ष और मोतीलाल सचिव बनाए गए।
By Rajneesh MishraEdited By: Updated: Sun, 07 Feb 2021 01:00 PM (IST)
प्रयागराज, जेएनएन। राजनीतिक नेताओं में मतभेद हमेशा से होते रहे हैं। विचारों में टकराहट और मुद्दों पर सहमत ना होना नेताओं के बीच आज भी है और पहले भी होता रहा है। प्रयागराज में स्वराज पार्टी की स्थापना भी ऐसे हुई थी। चार फरवरी को 1922 को गोरखपुर में चौरीचौरा प्रकरण के बाद महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने से कांग्रेस के कई बड़े नाराज हो गए थे। दिसंबर माह में गया के कांग्रेस अधिवेशन में यह मतभेद उभर कर आ गए थे। इन्हीं नाराज नेताओं ने जनवरी 1923 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी का गठन किया था। चितरंजन दास पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए थे। इस पार्टी ने संयुक्त प्रांत विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था।
गया में कांग्रेस अधिवेशन के बाद बनाई थी पार्टी
इतिहासकार प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने के निर्णय से कांग्रेस के कई बड़े नेता नाराज हो गए थे। इसमें चितरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर, बिटठल भाई पटेल, मोतीलाल नेहरू आदि थे। ऐसा इसलिए था कि इस आंदोलन को जनता का आश्चर्यचकित करने वाला समर्थन मिल रहा था। यह आंदोलन अंग्रेजों की जड़ का उखाड़ देने में समक्ष था। इन नेताओं का विचार था कि असहयोग आंदोलन को वापस नहीं लिया जाना चाहिए था। दिसंबर 1922 में गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। चितरंजन दास ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। अधिवेशन में विधान परिषद में प्रवेश ना लेने का प्रस्ताव पारित हुआ था। चितरंजन दास इस प्रस्ताव के विरोध में थे। इससे नाराज होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। प्रो.तिवारी बताते हैं कि इसी अधिवेशन के बाद जनवरी 1923 मेें प्रयागराज में चितरंजन दास, नरसिंह, चिंतामन केलकर, मोतीलाल नेहरू और बिटठल भाई ने कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी की स्थापना की। चितरंजन दास पार्टी के अध्यक्ष और मोतीलाल सचिव बनाए गए।
गया में कांग्रेस अधिवेशन के बाद बनाई थी पार्टी
इतिहासकार प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन वापस लेने के निर्णय से कांग्रेस के कई बड़े नेता नाराज हो गए थे। इसमें चितरंजन दास, नरसिंह चिंतामन केलकर, बिटठल भाई पटेल, मोतीलाल नेहरू आदि थे। ऐसा इसलिए था कि इस आंदोलन को जनता का आश्चर्यचकित करने वाला समर्थन मिल रहा था। यह आंदोलन अंग्रेजों की जड़ का उखाड़ देने में समक्ष था। इन नेताओं का विचार था कि असहयोग आंदोलन को वापस नहीं लिया जाना चाहिए था। दिसंबर 1922 में गया में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। चितरंजन दास ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। अधिवेशन में विधान परिषद में प्रवेश ना लेने का प्रस्ताव पारित हुआ था। चितरंजन दास इस प्रस्ताव के विरोध में थे। इससे नाराज होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। प्रो.तिवारी बताते हैं कि इसी अधिवेशन के बाद जनवरी 1923 मेें प्रयागराज में चितरंजन दास, नरसिंह, चिंतामन केलकर, मोतीलाल नेहरू और बिटठल भाई ने कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी की स्थापना की। चितरंजन दास पार्टी के अध्यक्ष और मोतीलाल सचिव बनाए गए।
प्रयागराज में हुआ था प्रथम अधिवेशन
प्रो.तिवारी बताते हैं कि स्वराज पार्टी का प्रथम अधिवेशन मार्च 1923 में प्रयागराज के स्वराज भवन हुआ था। अधिवेशन में पार्टी का संविधान और कार्यक्रम निर्धारित हुआ था। अधिवेशन में तय हुआ कि विधान परिषद में सरकार के उन प्रस्तावों का विरोध किया जाएगा जिनके द्वारा नौकरशाही को शक्तिशाली बनाया जा रहा है। साथ ही राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि लाने वाले प्रस्तावों, योजनाओं और विधेयकों को प्रस्तुत करने पर सहमति बनी थी। इसके अतिरिक्त केंद्रीय और प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं के सभी निर्वाचित स्थानों को घेरने का निर्णय हुआ ताकि स्वराज पार्टी की नीतियां चारों ओर फैल सके।
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