Birju Maharaj: जानिए लोकप्रिय नृत्य कथक का कहां हुआ जन्म और किसे कहते हैं इसका जन्मदाता
कम लोग जानते हैं कि कथक का जन्म प्रयागराज के हंडिया तहसील के किचकिला गांव में हुआ है। बात 11वीं शताब्दी की है। पं. ईश्वरीय प्रसाद कर्मकांडी ब्राह्मण थे। श्रीमद्भागवत कथा का बखान करके जीवन यापन करते थे। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण उनके सपने में आए।
By Ankur TripathiEdited By: Updated: Tue, 18 Jan 2022 12:29 PM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। कथक नृत्य के कायल हर जगह मिल जाएंगे। हर देश में कथक को जानने, समझने व अपनाने वालों की संख्या बढ़ रही है। कथक को विश्व फलक पर लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है पद्मविभूषण बिरजू महाराज ने। जो कथक कभी राजदरबार तक सीमित था, बिरजू महाराज ने उसे घर-घर पहुंचाया। कम लोग जानते हैं कि कथक का जन्म प्रयागराज के हंडिया तहसील के किचकिला गांव में हुआ है। बात 11वीं शताब्दी की है। पं. ईश्वरीय प्रसाद कर्मकांडी ब्राह्मण थे। श्रीमद्भागवत कथा का बखान करके जीवन यापन करते थे। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण उनके सपने में आए। भगवान ने ईश्वरीय प्रसाद को भागवत के भाव व मर्म नृत्य के रूप में प्रस्तुत करने का आदेश दिया। नींद टूटने पर ईश्वरीय प्रसाद के कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन कुछ दिनों बाद वे ईश्वर का आदेश मानकर भागवत कथा का भाव नृत्य के जरिए प्रस्तुत करने लगे।
कथक नृत्य करने के कारण उस दौर में लोग उन्हें कथकिया कहकर पुकारते थे
ईश्वरीय प्रसाद ने यह विधा अपने बेटों अडग़ू, खडग़ू व तुलगू को सिखायी। कथक गुरु उर्मिला शर्मा बताती हैं कि कथक नृत्य करने के कारण उस दौर में लोग उन्हें ''कथकिया कहकर पुकारते थे। इसके बाद कथिक नाम पड़ा, फिर 17वीं शताब्दी में कथक नाम पड़ गया। बताती हैं कि 18वीं शताब्दी में प्लेग की बीमारी फैलने पर ईश्वरीय प्रसाद के वंशज गांव छोड़कर लखनऊ में बस गए। इसके बाद राजदरबार व नवाबों के यहां नृत्य करके जीवनयापन करते थे। इनके शिष्य लखनऊ के अलावा बनारस व जयपुर में जाकर बस गए। यही आगे चलकर ''कथक घराने बन गए। बिरजू महाराज ईश्वरीय प्रसाद की 10वीं पीढ़ी के वंशज थे।
ईश्वरीय प्रसाद ने यह विधा अपने बेटों अडग़ू, खडग़ू व तुलगू को सिखायी। कथक गुरु उर्मिला शर्मा बताती हैं कि कथक नृत्य करने के कारण उस दौर में लोग उन्हें ''कथकिया कहकर पुकारते थे। इसके बाद कथिक नाम पड़ा, फिर 17वीं शताब्दी में कथक नाम पड़ गया। बताती हैं कि 18वीं शताब्दी में प्लेग की बीमारी फैलने पर ईश्वरीय प्रसाद के वंशज गांव छोड़कर लखनऊ में बस गए। इसके बाद राजदरबार व नवाबों के यहां नृत्य करके जीवनयापन करते थे। इनके शिष्य लखनऊ के अलावा बनारस व जयपुर में जाकर बस गए। यही आगे चलकर ''कथक घराने बन गए। बिरजू महाराज ईश्वरीय प्रसाद की 10वीं पीढ़ी के वंशज थे।
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