85 वर्षीय Lyricist Santosh Anand बोले- मन चाहता है...संगम नगरी में फिर बहे साहित्य की त्रिवेणी
संतोष आनंद भले ही 85 वर्ष के हो गए हों लेकिन सीने में भारतीय हिंदी सिनेमा को गीतों से उबारने का जज्बा उनमें भरा है। कहते हैं कि मैं ऐसे गीत लिख सकता हूं जो धूम मचाएंगे लेकिन कोई संगीत निर्देशक उन गीतों के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।
By Jagran NewsEdited By: Brijesh SrivastavaUpdated: Sat, 08 Oct 2022 08:17 AM (IST)
प्रयागराज, [अमरदीप भट्ट]। भारतीय हिंदी सिनेमा को कई अमर गीत देने वाले गीतकार संतोष आनंद का प्रयागराज आगमन हुआ। वे कुंभ 2019 समेत संगम नगरी में चौथी बार आए। दैनिक जागरण से बातचीत में इस महान गीतकार ने मन की बातें कीं, मन की टीस भी बातचीत में झलकी। उन्होंने कहा कि महादेवी, निराला, पंत जैसे हिंदी साहित्यकारों ने जिस संगम नगरी को साहित्य की राजधानी बनाया था, उसे अब क्या हो गया? इसे किसकी नजर लग गई? मन व्याकुल है।
बोले- यहां बिखरी प्रतिभाओं को समेटने के लिए संगठन होना चाहिए : गीतकार संतोष आनंद बोले कि मेरा मन चाहता कि संगम नगरी में साहित्य की त्रिवेणी फिर बहे। यह संभव भी है क्योंकि यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। युवा तो और भी ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। उनके पास अब डिजिटल प्लेटफार्म हैं, अवसर हैं किसी प्रकार की पाबंदी नहीं और कई रास्ते भी हैं। किसी को तो यह बीड़ा उठाना होगा। मैं प्रयागराज को प्रयाग महाराजा के रूप में देखना चाहता हूं। गीतकार संतोष आनंद ने कहा कि यहां अब एक भी ऐसी विभूति नहीं जो उन्हें प्रभावित कर सके। यहां प्रतिभाएं हैं जो बिखरी हैं उन्हें समेटने के लिए एक संगठन होना चाहिए।
सिनेमा को फिर उबारने का जज्बा : संतोष आनंद भले ही 85 साल के हो गए हों, वृद्धावस्था के चलते उनके हाथ-पैर कांपते हैं, जुबान लड़खड़ाती है लेकिन सीने में भारतीय हिंदी सिनेमा को गीतों से उबारने का जज्बा उनमें भरा है। कहते हैं कि मैं ऐसे गीत लिख सकता हूं जो धूम मचाएंगे लेकिन मन में शंका है कि अब का कोई संगीत निर्देशक उन गीतों के साथ न्याय नहीं कर पाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी से हैं प्रभावित : गीतकार संतोष आनंद राजनीति की बात तो नहीं करते लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रभावित हैं। कहा कि मोदी के हृदय में राष्ट्र के लिए प्रेम है। उनके लिखे गीत मेरी आन तिरंगा है, मेरी शान तिरंगा है मेरी जान तिरंगा है... को प्रधानमंत्री ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया। यह उनके लिए खुशी की बात है।
गीत लिखने और सुनने वाले भी नहीं समझते : संतोष आनंद ने सिनेमा में गीतों की वर्तमान स्थिति के प्रश्न पर कहा कि अब तो गीत लिखने वाले ही उसे नहीं समझ पाते, सुनने वाले तो और भी नहीं समझते। उन्होंने भवानी प्रसाद और पंडित गोपाल प्रसाद व्यास को अपना गाड फादर बताया। कहा कि क्रांति जब बन रही थी तो अभिनेता मनोज कुमार उन्हें घर से लेकर गए थे, वहीं से गीत लिखने का फिल्मी सफर शुरू हो गया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।