Mahadevi Varma Birth Anniversary: कवयित्री महादेवी के सपने को साकार करेगा बिड़ला समूह
Mahadevi Varma Birth Anniversary छायावादी युग की महान कवयित्री महादेवी वर्मा के अंतिम संस्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह शामिल हुए थे। उन्होंने न्यास को 10 लाख रुपये देने का आश्वासन दिया था पर यह आश्वासन कोरा ही रह गया। अब आदित्य बिड़ला समूह सहायता करेगा।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Sat, 26 Mar 2022 09:55 AM (IST)
प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। बात 1985 की है। छायावादी युग की प्रमुख स्तंभ महादेवी वर्मा ने साहित्य सहकार न्यास की स्थापना की। मकसद था लाइब्रेरी बनाने के साथ प्रकाशन करना। न्यास की स्थापना के दो बरस ही बीते थे कि सपने की पोटली समेटे महीयसी 11 सितंबर 1987 को दुनिया को अलविदा कह गईं। हालात ऐसे बन पड़े कि न्यास आर्थिक तंगी से जूझने लगा। 37 बरस के लंबे इंतजार बाद आखिरकार यह सपना पूरा हो गया। सपने को 'संजीवनी' दी आदित्य बिड़ला समूह ने।
महादेवी वर्मा जन्म : 26 मार्च 1907
निधन : 11 सितंबर 1987
साहित्य सहकार न्यास के बहुरेंगे दिन
साहित्य सहकार न्यास के सचिव बृजेश कुमार पांडेय बताते हैं कि लाइब्रेरी का संचालन शुरू कर दिया गया है। प्रकाशन भी सितंबर से शुरू हो जाएगा। इसके लिए बिड़ला समूह से बात बन गई है। बोले कि अब तो इक्का-दुक्का प्रकाशक भी रायल्टी देने लगे हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि न्यास के दिन जल्द ही बहुरेंगे। इसके पहले हिंदी संस्थान लखनऊ को पत्र भेजकर आर्थिक मदद मांगी गई थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
महादेवी की अंतिम यात्रा में मुख्यमंत्री वीबी सिंह ने सहायता का दिया था आश्वासन महादेवी के अंतिम संस्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह शामिल हुए थे। उन्होंने न्यास को 10 लाख रुपये देने का आश्वासन दिया था, पर यह भी कोरा ही है अब तक। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाक्टर संतोष सिंह बताते हैं फर्रुखाबाद में 26 मार्च 1907 को जन्मीं महादेवी ने जीवन का अधिकांश समय प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में बिताया। स्वरूप नारायण वर्मा से 1916 में महादेवी का विवाह हुआ था पर वह जीवन भर अविवाहित की भांति रही। श्वेत वस्त्र धारण किया और तख्त पर सोईं। विवाह के बाद भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। प्रयाग में 11 सितंबर 1987 को अंतिम सांस ली।
आजादी के लिए दिया था चांदा का कटोरावरिष्ठ साहित्यकार यश मालवीय बताते हैं कि एक बार महात्मा गांधी आनंद भवन आए थे। इसी दौरान ईश्वर शरण कालेज में महादेवी ने काव्यपाठ किया। वहां कालेज प्रशासन की तरफ उन्हें चांदी का कटोरा इनाम स्वरूप दिया गया। महादेवी वह कटोरा लेकर बापू के पास पहुंची और बताया कि उनकी कविता के लिए चांदी का कटोरा मिला। इस पर बापू ने चांदी कटोरा लेकर इठलाती रहोगी या आजादी के लिए कुछ काम करोगी। महादेवी ने कहा हम क्या कर सकते हैं तो गांधी जी ने कहा यह कटोरा आजादी के लिए दान कर दो। काफी संकोच के बाद उन्होंने वह कटोरो दान कर दिया।
...जब नेहरू के सामने रख दी अजीब शर्तवरिष्ठ साहित्यकार यश मालवीय बताते हैं महादेवी जी एक बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मिलने आनंद भवन गईं। दरवाजे पर गार्ड ने रोक लिया तो उन्होंने कहा जाकर कह दो महादेवी आई हैं। अगर मिलेंगे तो ठीक नहीं तो लौट जाएंगे। जैसे ही गार्ड ने नेहरू को बताया वह नंगे पांव भागते पहुंचे और बोल पड़े तेरा तो हक है तू मेरी बहन है। इस पर वह बोलीं प्रधानमंत्री बनकर बैठे हो अपके निर्देश पर ही तो रोका गया है। यहां महादेवी ने अपनी कविता सुनाने की पेशकश की तो नेहरू बोले मुझे तेरी कविता नहीं समझ में आती।गोलमोल लिखती हो। अब कहानी लिखो। इस पर उन्होंने कहा मेरी शर्त मान लो फिर। आप हिंदी में लिखो तो हम गोलमोल कविता लिखना बंद कर देंगे। इस पर नेहरू भी झेंप गए थे।
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