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मोथा घास में औषधीय गुण, आंखों की बीमारी, खांसी, कुष्ठ रोग व बुखार में लाभकारी बताते हैं विशेषज्ञ

कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार सिंह बोले कि खेत में हर समय नमी बनी रहने से तमाम पौधे अपने आप उगते हैं। इनमें मोथा घास के साथ ही अन्य प्रजातियों के पौधे हैं। मोथा घास में काफी मात्रा में औषधीय गुण पाया जाता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2022 08:37 AM (IST)
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औषधीय गुणों से भरपूर है मोथा घास लेकिन शाकनाशी के प्रयोग से लाभकारी जड़ी-बूटियां नष्ट हो रही हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। मोथा घास के बारे में जानते हैं न..., जी हां यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। खेत में तमाम पौधे अपने आप उग आते हैं। इनमें से एक है मोथा घास का पौधा है। मोथा घास का औषधीय गुण बहुत ज्यादा है। आंखों की बीमारी, खांसी, उल्टी रोकने, कुष्ठ रोग और बुखार में यह लाभकारी है। यह घास नशा को तुरंत उतारने में भी काफी कारगर सिद्ध होती है। ऐसा कृषि वैज्ञानिक कहते हैं।

कृषि वैज्ञानिक ने बताए फायदे : कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार सिंह का कहना है कि जिन खेतों में 12 महीने फसल उगती है, वहां गर्मियों में भी लगातार सिंचाई होती है। खेत में हर समय नमी बनी रहने से तमाम पौधे अपने आप उगते हैं। इनमें मोथा घास के साथ ही अन्य प्रजातियों के पौधे हैं। मोथा घास का औषधीय गुण बहुत ज्यादा है। आंखों की बीमारी, खांसी, उल्टी रोकने, कुष्ठ रोग और बुखार में यह लाभकारी है। यह घास नशा को तुरंत उतारने में भी काफी कारगर सिद्ध होती है। इसका उपयोग ज्यादातर काढ़ा के रूप में ही किया जाता है।

ब्राह्मी पौधे को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है : कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार सिंह कहा कि सोमवल्ली के सेवन से शरीर का कायाकल्प हो सकता है। कहा तो यहां तक जाता है कि देवी-देवता व मुनि इस पौधे के रस का सेवन अपने को चिरायु बनाए रखने, बल, सामर्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए करते थे। तेलिया कंद इसकी जड़ों से तेल का रिसाव होता रहता है। माना जाता है कि यह पौधा सोने के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्राह्मी को बुद्धि और उम्र को बढ़ाने वाला माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है। यह बुखार, स्मृतिदोष, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को भी दूर करती है।

खरपतवारनाशी के प्रयोग से लाभकारी जड़ी-बूटियां नष्‍ट हो रही : कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज कुमार सिंह ने बताया कि बदलते परिवेश में खरपतवारनाशी का प्रयोग बढ़ गया है। ग्लाइफोसेट व मीरा-71 के प्रयोग से मोथा के साथ ही अन्य लाभदायक जड़ी बूटियां मसलन, सोमवल्ली पौधा, तेलियाकंद, ब्राह्मी आदि भी नष्ट होते जा रहे हैं।

क्‍या है खरपतवारनाशी के नुकसान : खरपतवारनाशी के प्रयोग से खेत के आस-पास व मेड़ों पर जमी घासों के साथ ही जड़ी-बूटियां भी नष्ट होती जा रही हैं। इससे जहां एक ओर मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। वहीं, दूसरी ओर खरपतवार के साथ औषधीय पौधों का नष्ट होना चिंता का विषय है। कौशांबी में भी इससे ग्रामीण परिवेश में जड़ी बूटियां का महत्व भी धीरे-धीरे काम होता जा रहा है और लोग एलोपैथ उपचार की ओर बढ़ रहे हैं।

एक समय था जब छोटी-छोटी बीमारियां खेत, खलिहान और बाग-बगीचे में उगने वाली घास-फूस रूपी जड़ी बूटियों के प्रयोग से दूर हो जाती थीं। अब यह जड़ी बूटियां (पौधे) गायब होती जा रही हैं। इनकी वजह खरपतवारनाशी मानी जा रही है।

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