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National Farmers Day कड़ाके की ठंड में रतजगा कर फसल की रखवाली कर रहे अन्नदाता, पढ़ें- करछना के किसानों का दर्द

सूखी नहरें बंद समितियां सहित कई मुसीबतों से लड़कर किसान अन्न पैदा करने हैं। लेकिन इन किसानों का किसी को फिक्र नहीं है। कभी बिजली कटौती और लो वोल्टेज के कारण किसानों को रातभर जागकर सिंचाई करनी पड़ती तो कभी पशुओं से फसलों की सुरक्षा के लिए जागना पड़ता है।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Fri, 23 Dec 2022 03:31 PM (IST)
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खेत में बने मचान से फसल की रखवाली करते किसान बाबूलाल वर्मा। -जागरण
प्रयागराज, संसू। राष्ट्रीय किसान दिवस की बधाइयों से बेखबर करछना के अन्नदाता कड़ाके की ठंड में सरकारी नाकामियों से लड़कर और एक दिन बीता देंगे। इस दौरान उनकी चिंता सूखी नहरें और बंद सहकारी समितियां हैं। जहां से फसलों के लिए पानी और खाद नहीं मिल पा रहा है।

बिजली कटौती और लो वोल्टेज के चलते रातभर जागकर करते हैं सिंचाई

भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर हर बार बेहतर व्यवस्था देने का वादा करने वाले जिम्मेदार किसानों की प्राथमिक जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। करछना में तो बेलगाम अफसरों के कारण पूस की हर रात किसानों को हलकू बनना पड़ रहा है। दिन-दिनभर बिजली कटौती और लो वोल्टेज के कारण किसानों को रात में सिंचाई करनी पड़ रही है। इन तकलीफों के बाद भी वह अन्न पैदा करना नहीं छोड़ रहे हैं। करछना के किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। अन्न मवेशी खेतों में पूरी फसल चौपट कर दे रहे हैं। गांवों में खुली सरकारी गोशालाएं सिर्फ अधिकारियों की जेब भरने का जरिया बन चुकी हैं।

पूरी रात खेतों में टहलते रहते हैं मवेशी

हकीकत में सैकड़ों की संख्या में मवेशी पूरी रात खेतों में टहलते रहते हैं। बरदहा के किसान जगदीश मौर्या के लिए राष्ट्रीय किसान दिवस के मायने बेकार हैं। उनके लिए हर दिन संकट भरा है। इन्होंने गांव में ही दूसरे के खेत को बटाई पर लेकर सब्जी की खेती की है। आवारा पशुओं के कारण खेत में ही छप्पर डालकर पूरी रात जागना पड़ता है। ठंड से बचने के लिए कोई और विकल्प नहीं है। इनका कहना है कि सरकार यदि इन छुट्टा घूमने वाले मवेशियों से मुक्ति दिला दे तो यही हमारे लिए सबसे बड़ा दिवस माना जाएगा। पनासा के किसान बाबूलाल वर्मा बिजली कटौती के कारण खेतों को पलेवा नहीं कर पा रहे हैं। वह खेत में ही पन्नी डालकर रहने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि बार-बार बिजली आती जाती है।

किसानों से सीधे मुंह बात नहीं करते बिजलीकर्मी

ट्यूबवेल को चलाने के लिए खेत में ही ठहरना पड़ता है। इसी तरह मेंडरा के किसान विपिन ने बताया कि दिन-दिनभर बिजली नहीं आती है। मजबूरी में रात को फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है। बिजली विभाग के अफसर किसानों से सीधे मुंह बात नहीं करते हैं। उपकेंद्रों पर निजी कर्मचारियों के रहने से समस्याएं दूर नहीं की जाती हैं। यदि किसी किसान को रात में जरूरत पड़ती है तो उसे अतिरिक्त शुल्क देकर ही काम कराना पड़ता है। सहलोलवा के किसान मनजीत सिंह पटेल भी यूरिया और डीएपी के लिए काफी परेशान रहे। उनके कई दिन सिर्फ खाद के इंतजाम में खराब हो गए। जी दुकानों पर महंगे दामों में खाद और बीज को खरीदना पड़ा। टिकरी के पूर्व प्रधान अवध नाथ यादव ने बताया कि खेतों में खाद डालने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। कई-कई दिनों के संघर्ष के बाद यूरिया मिली है।

किसानों के हिस्से में ही सभी को चाहिए कमीशन

करछना में किसानों के हित के लिए चलाई जा रही अधिकांश योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई हैं। राजकीय बीज गोदाम और कृषि रक्षा इकाई में उनके लिए बीज और कीटनाशक उपलब्ध नहीं रहते हैं। पंद्रह दिनों से बिना सूचना के गोदाम बंद चल रहा है। नहरों में पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। नहर विभाग के अफसरों पर अंकुश नहीं होने के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। रामगढ़ के किसान रामबाबू मिश्रा ने बताया कि नहरों की ठीक से सफाई नहीं की गई। वहीं अमिलो के किसान ब्रह्मदीन तिवारी ने बताया कि ठेकेदार की मनमानी से टेल तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। इनके खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है।

क्या कहते हैं किसान

  • किसान शिवानंद पांडेय ने कहा कि रबी की बोआई के दौरान डीएपी की कालाबाजारी खूब की गई। बिना खाना और पानी के किसान लाइन में लगे रहे। उन्हें खाद के लिए पुलिस से डंडे खाने पड़े। इस परिस्थिति में किसान दिवस पर सम्मान करना उचित नहीं लग रहा है।
  • मेंडरा के मातादीन ने कहा कि बेसहारा पशु सबसे बड़ी समस्या हैं। किसी अफसर, कर्मचारी और नेता के सामने 364 दिन किसानों का मतलब शून्य रहता है। सिर्फ एक दिन के लिए उनके प्रति सम्मान का भाव जागना असंभव है। चौधरी चरण सिंह की तरह बनना आसान नहीं।
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