Navratri 2022: प्रयागराज के शक्तिपीठ Lalitha Devi Temple का अनूठा है इतिहास, पांडवों ने की थी पूजा
Navratri 2022 ललिता देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष हरिमोहन वर्मा कहते हैं कि मां ललिता के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता। मां के दरबार में सच्चे हृदय से स्तुति करने से आर्थिक सामाजिक संपन्नता मिलती है। यही कारण है कि वर्ष पर्यंत दूर-दूर से भक्त मंदिर आते हैं।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Tue, 27 Sep 2022 03:02 PM (IST)
प्रयागराज, जेएनएन। Navratri 2022 प्रयागराज में तीन शक्तिपीठ बताया जाता है। मीरापुर स्थित ललिता देवी मंदिर, इसी मोहल्ले में कल्याणी देवी मंदिर और त्रिवेणी संगम क्षेत्र में अलोपीबाग स्थित मां अलोपशंकरी मंदिर। इन तीनों शक्तिपीठों की महिमा निराली है। आज यहां ललिता देवी मंदिर से जुड़ी रोचक जानकारी दे रहे हैं।
शहर के मीरापुर में स्थित है मंदिर : प्रयागराज शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के तट के निकट मीरापुर मोहल्ले में महाशक्तिपीठ ललिता देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर का विशेष महात्म्य है। मान्यता है कि मां का यह मंदिर पौराणिक काल से स्थित है। मान्यता है कि पवित्र संगम में स्नान के पश्चात इस महाशक्तिपीठ में दर्शन-पूजन से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। ललिता देवी के दिव्य स्वरूप का दर्शन-पूजन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं।
महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास : मां ललिता की महिमा सदियों से बखानी जा रही है। किवदंति है कि महाभारत काल में लाक्षागृह अग्निकांड से सकुशल बाहर निकलने पर पांडवों ने मां ललिता का दर्शन-पूजन करने आए थे। तपस्वी संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1950 के आस-पास मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर भव्य स्वरूप दिया। पिछले कुछ वर्षों में मंदिर काे नया स्वरूप दिया गया
मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया महात्म्य : ललिता देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष हरिमोहन वर्मा कहते हैं कि मां ललिता के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता। मां के दरबार में सच्चे हृदय से शीश झुकाकर स्तुति करने वाले को आर्थिक व सामाजिक संपन्नता मिलती है। यही कारण है कि वर्ष पर्यंत दूर-दूर से भक्त मंदिर आते हैं।
मंदिर समिति के महामंत्री बोले : ललिता देवी मंदिर समिति के महामंत्री व सेवक पंडित धीरज नागर ने कहा कि मां ललिता का दरबार भक्तों से सदैव भरा रहता है। नवरात्र में दर्शन-पूजन करने वालों की संख्या बढ़ जाती है। मां के दरबार में किया गया अनुष्ठान कभी व्यर्थ नहीं जाता।
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