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सरस्वती का नया अंक नए कलेवर के साथ आया सामने, साहित्यिक उत्कृष्टता और गुणवत्ता से भरी है पत्रिका

पत्रिका सरस्वती का नया अंक सजधज के साथ पाठकों के बीच आ चुका है। इंडियन प्रेस प्रयागराज से प्रकाशित सरस्वती का अक्टूबर-दिसंबर 2021 का अंकअत्यंत समृद्ध व विविधतापूर्ण है। संपादक रविनंदन सिंह व अनुपम परिहार तथा इंडियन प्रेस के सुप्रतीक घोष का समन्वित प्रयास सार्थक बन पड़ा है।

By Ankur TripathiEdited By: Updated: Fri, 17 Jun 2022 08:03 PM (IST)
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'सरस्वती' का नया अंक पूरी संपन्नता और सजधज के साथ पाठकों के बीच आ चुका है।
प्रयागराज, जेएनएन। हिंदी साहित्य को दिशा देने वाली पत्रिका 'सरस्वती' का नया अंक पूरी संपन्नता और सजधज के साथ पाठकों के बीच आ चुका है। इंडियन प्रेस, प्रयागराज से प्रकाशित सरस्वती का अक्टूबर-दिसंबर 2021 का यह अंक अत्यंत समृद्ध व विविधतापूर्ण है। संपादक रविनंदन सिंह व अनुपम परिहार तथा इंडियन प्रेस के सुप्रतीक घोष का समन्वित प्रयास सार्थक बन पड़ा है। संपादकीय में रविनंदन सिंह ने पत्रिका की प्रकाशकीय दृष्टि और नीति को स्पष्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि 'सरस्वती संपादक की नहीं पाठकों की पत्रिका है और इसके केंद्र में पाठक ही रहेगा। सरस्वती की नीति होगी कि विचारधारा के पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर, रचनाओं का चयन निष्पक्ष होकर किया जाय। साहित्यिक उत्कृष्टता, गुणवत्ता और स्तरीयता ही इसकी कसौटी होगी।'

कवर से लेकर लेखन सब है खास

पत्रिका का कवर प्रसिद्ध चित्रकार प्रो. श्याम बिहारी अग्रवाल का तथा सभी स्केच वरिष्ठ कवि-चित्रकार अजामिल द्वारा निर्मित हैं। इसके 'धरोहर' स्तंभ में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का आत्म-निवेदन दिया गया है, जो दो मई 1933 को नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा उनके अभिनंदन के अवसर पर दिया गया उनका वक्तव्य है। इससे आचार्य द्विवेदी की जीवनकथा, जीवनमूल्यों तथा उनके संपादकीय आदर्शों का परिचय प्राप्त होता है।

आलेख स्तंभ में विजय बहादुर सिंह का लेख 'प्रसाद की आत्मकथात्मक कविताएं', जगदीश्वर चतुर्वेदी का लेख 'जार्ज लुकाच: नव्य लोकतंत्र, संस्कृति और लोकतांत्रिक विश्व दृष्टिकोण', सुधा सिंह का लेख 'हिंदी साहित्येतिहास का पुनर्लेखन: सामंजस्य बनाम समानता' तथा कुमार वीरेंद्र का आलेख नई कहानियां पत्रिका और अमृतराय की संपादन दृष्टि' जैसे महत्त्वपूर्ण आलेख हैं जिनको पढ़कर पाठक बौद्धिक रूप से समृद्ध महसूस करेगा।

साक्षात्कार में विदुषी कथाकार नासिरा शर्मा का हारून रशीद खान द्वारा लिया गया वृहद साक्षात्कार है, जिसमें कई समकालीन मुद्दों पर बेबाक बातचीत की गई है। लोक साहित्य स्तंभ के अंतर्गत लोक साहित्य के मर्मज्ञ सत्यप्रिय पांडेय का आलेख 'पक्षियों की लोकयात्रा: लोकमन की उड़ान' अत्यंत रोचक है। ललित कला स्तंभ में मनीष कुमार मिश्र तथा उषा आलोक दुबे का आलेख 'हुस्नाबाई कोठे की ठुमरी सरकार' में काशी की ठुमरी गायिका हुस्नाबाई तथा अयोध्या प्रसाद खत्री के कई रोचक प्रसंग हैं जो कलाप्रेमियों को जानने लायक हैं।

व्यंग्य स्तंभ के अंतर्गत सुपरिचित व्यंग्यकार सूर्यकुमार पांडेय का व्यंग्य अर्धज्ञान की बलिवेदी पर पूर्ण सत्य' बहुत बेधक बन पड़ा है। ललित निबंध के अंतर्गत उमेश प्रसाद सिंह का ललित निबंध 'तीसरी आँख' लोक और शास्त्र से गुजरते हुए लालित्य के साथ पाठक को समृद्ध करता है। इसी तरह प्रवासी लेखन में सिंगापुर से आराधना झा का लेख 'महिला और मीडिया' भी ज्ञानवर्धक है। विज्ञान-लेखन में शुकदेव प्रसाद का लेख 'वैश्विक गरमाहट: आसन्न संकट' उनके जीवन का आखिरी लेख है।

कहानियों में ज्ञान प्रकाश विवेक की कहानी 'कालू' तथा संजय गौतम की कहानी 'टामी' जानवरों की संवेदना को बखूबी उभारती हैं। विभांशु केशव, उर्मिल शर्मा तथा सुनील गज्जाणी की लघुकथाएं, अशोक भौमिक का जापान पर यात्रावृत्तांत, चौथे सप्तक के कवि राजकुमार कुम्भज, युवा कवि अमरजीत राम तथा नेहा अपराजिता की कविताएं, वशिष्ठ अनूप, अनामिका सिंह तथा अक्षय पांडेय के नवगीत के साथ यश मालवीय की ममता कालिया की पुस्तक पर तथा सुधांशु गुप्त की जयश्री पुरवार की पुस्तक पर खूबसूरत समीक्षाएं, कुल मिलाकर 14 स्तंभों में पत्रिका की बहुरंगी सामग्री ज्ञानवर्धक, सूचनाप्रद तथा रुचिकर बन पड़ी है। जून माह के अंत तक जनवरी-मार्च 2022 का अंक प्रकाशित करने की तैयारी है।

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