Online Fraud: सिरदर्द बनती डिजिटल धोखाधड़ी, आनलाइन लेन-देन की हो सुदृढ़ व्यवस्था
Online Fraud इस वर्ष जून के दौरान मुंबई पुलिस के संज्ञान में 7500 से अधिक साइबर धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं परंतु उनमें से लगभग चार सौ का ही निपटारा हो सका है। देशभर में यह आंकड़ा कहीं बहुत अधिक है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 28 Jul 2022 10:38 AM (IST)
लालजी जायसवाल। Online Fraud डिजिटल हो रही दुनिया में साइबर अपराध का स्वरूप वैसे तो वर्षो पहले ही आ चुका था। परंतु कोविड महामारी की चपेट में आने के बाद से देश में साइबर धोखाधड़ी के मामलों में व्यापक वृद्धि हुई है। दरअसल बहुत सारे कामकाज अब ‘वर्क फ्राम होम’ के रूप में होने से बहुत लोगों का अधिकतर समय इंटरनेट पर ही बीतने लगा है। इतना ही नहीं, आजकल अधिकांश लोग रोजमर्रा की जिंदगी से संबंधित चीजों से निपटने में स्मार्टफोन और कंप्यूटर का बहुत अधिक उपयोग करते हैं। ऐसे में एक आशंका यह भी है कि बड़ी संख्या में लोगों के आनलाइन होने के कारण साइबर अपराधी आसानी से उन्हें निशाना बना लेते हैं।
उल्लेखनीय है कि देश में वित्तीय सेवाएं लेने वाले अधिकांश ग्राहकों ने डिजिटल बैंकिंग को अत्यंत उत्साह के साथ अपनाया, परंतु चिंता की बात यह है कि बैंकिंग फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा शिकार भी उन्हें ही होना पड़ा। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, साइबर धोखाधड़ी का शिकार होने वालों में बुजुर्गो की संख्या ज्यादा है। निश्चित तौर पर, साइबर सुरक्षा को लेकर सदैव सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन इस सवाल का कोई ठोस जवाब आज भी प्राप्त नहीं हो सका है।
सतर्कता का अभाव : वैसे तो भारत सरकार डिजिटल भारत की ओर कदम दर कदम बढ़ाती जा रही है, लेकिन आज भी साइबर सुरक्षा की दीवार के लिए एक ईंट भी ठोस तरीके से नहीं रख सकी है। देश आज जहां एक तरफ डिजिटल माध्यमों को प्रोत्साहित कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ इस माध्यम से संबंधित अपराधी अपनी जड़ें मजबूती से जमाते जा रहे हैं। उदारीकरण यानी पिछली सदी के अंतिम दशक से शुरू हुआ तकनीकी परिवर्तन आज इंटरनेट, नेट बैंकिंग और यूपीआइ तक आ पहुंचा है जिसका प्रचलन ठेले पर सब्जी बेचने वाले से लेकर गांव के किसान और श्रमिक वर्ग तक तेजी से बढ़ा है। वहीं जागरूकता और सतर्कता की कमी के कारण इनमें से अधिकांश को डिजिटल फ्राड से भारी क्षति भी उठानी पड़ी है।
ई-बैंकिंग सुविधा : आज किसानों को जहां ई-बैंकिंग सुविधा, मोबाइल एप के माध्यम से अपना व्यापार करने तथा जानकारी प्राप्त करने आदि में आसानी हुई है, वहीं प्रशिक्षण की कमी और बढ़ते साइबर धोखाधड़ी के कारण किसानों, मजदूरों और श्रमिक वर्गो के लिए यह उनके विरुद्ध होने वाली ठगी का भी एक बड़ा कारण बन रहा है। इसी वजह से आज लोगों का आनलाइन सुरक्षा पर विश्वास नहीं बन पा रहा है। इस मामले में आज भी बहुत से प्रश्न अनुत्तरित हैं। आज भी यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर डिजिटल मार्केटप्लेस का रेगुलेटर कौन है? वास्तविकता तो यह है कि आज डिजिटल ट्रांजेक्शन से संबंधित शिकायतों को निपटाने के लिए कोई कारगर सिस्टम उपलब्ध ही नहीं है। इसलिए आज तमाम प्रकार के एटीएम और डेबिट कार्ड से संबंधित धोखाधड़ी का निपटारा मुकम्मल तौर पर नहीं हो पाता है। ऐसे में सबसे पहली आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक किया जाए।
धोखाधड़ी के बढ़ते चलन : आज गांव-गलियारों में एक छोटी सी दुकान पर भी आनलाइन पेमेंट का माध्यम उपलब्ध होता है। लेकिन यहां अधिकांश लोग डिजिटल तकनीक के नकारात्मक पहलुओं से अवगत नहीं हैं। क्या कभी हम लोगों ने इसके प्रति अपनी पुख्ता सुरक्षा की चिंता की है? क्या कहीं इस धोखाधड़ी के बढ़ते चलन पर कोई विशेष कदम उठाने की बात सुनी अथवा कोई डिजिटल अपराध को नियंत्रण बाबत कोई नियंत्रण आयोग की बात सुनी? संभवत: नहीं सुनी होगी। हम यह क्यों नहीं सोचते हैं कि किसानों को डिजिटल दुनिया से तो जोड़ रहे हैं, लेकिन उनको डिजिटल धोखाधड़ी के शिकार होने से बचाने के लिए क्या प्रयास कर रहे हैं? गरीब-मजदूर वर्ग के लोग बहुत मुश्किल से कुछ रकम अपने खाते में जोड़ पाते हैं और उनके प्रति धोखाधड़ी होना हमारे लिए बहुत ही शर्म की बात होनी चाहिए। ऐसे में विचारणीय यह है कि उनकी रकम कैसे सुरक्षित रहे।
डिजिटल बैंकिंग शुरू करने से पहले बढ़े जागरुकता : आज साइबर फ्राड इतना अधिक बढ़ गया है कि फ्राड लोग गरीबों और किसान, मजदूरों तक की गाढ़ी कमाई पल भर में हथिया ले रहे हैं। एक संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में धोखाधड़ी के ज्यादा मामले दर्ज किए गए। ऐसे में देश में डिजिटल बैंकिंग की शुरुआत से पहले फर्जीवाड़े की रोकथाम प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिए। व्यापक सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगाने और धोखाधड़ी के मामले को रोका जाना चाहिए। निश्चित तौर पर साइबर धोखाधड़ी की बढ़ती घटना के पीछे इसमें जागरूकता और सतर्कता की कमी देखी जाती रही है, लेकिन प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि सबको हम डिजिटल दुनिया में प्रवेश के लिए प्रेरित तो कर रहे हैं, परंतु यह नहीं सोच रहे हैं कि उनको प्रशिक्षण कौन देगा। आज जनमानस का सवाल भी यही है कि आखिर इस पर सरकार कोई विशेष कदम क्यों नहीं उठाती और आखिर क्यों अपनी अपंगता जाहिर कर रही है? हाल के दिनों में साइबर धोखाधड़ी की घटनाएं तीव्रता से बढ़ी हैं जिसमें अपराधी, लोगों के बैंक अकाउंट से लाखों की ठगी को सरलता से अजाम दिया है।
व्यक्ति स्वयं ही फ्राड द्वारा बुने गए जाल मे फंस जाता है : आज अपराधियों के फ्राड का तरीका भी नवाचारी हो गया है। जहां पहले, अपराधी किसी भी बैंक ट्रांजेक्शन के लिए बैंक अकाउंट धारक के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेज कर अपनी किसी चालबाजी से ओटीपी को प्राप्त कर, व्यक्ति के बैंक का पूरा रुपया पल भर में खाली कर देते थे, वहीं अब अपराध का तरीका बदला हुआ प्रतीत होता है। वर्तमान में अपराधी फोन पे, पेटीएम आदि जैसे यूपीआइ एप के माध्यम से व्यक्ति को लालच देकर एक बड़ी राशि का अनुरोध संदेश के रूप में भेजते हैं और व्यक्ति को फोन कर उसे एक्टिवेट करने पर रिवार्ड आदि मिलने की बात कहते हुए उसे अपने झांसे में ले लेते हैं। जैसा कि मनुष्य स्वभाव से ही लालची प्रकृति का होता है, इसी वजह से वह फ्राड व्यक्ति के अनुरोध को स्वीकार करते हुए उसके कहे अनुसार गतिविधि को अंजाम देता है, जिससे व्यक्ति स्वयं ही फ्राड द्वारा बुने गए जाल मे फंस जाता है।
हाल कि कुछ घटनाओं पर नजर डाला जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि डिजिटल अपराधी आज ‘ओएलएक्स’ जैसे तमाम एप जो कि बहुत से उपयोग किए जा चुके, परंतु अब भी उपयोगी यानी ‘सेकेंड हैंड’ उत्पादों को खरीदने और बेचने का एक बेहतर प्लेटफार्म हुआ करता था, आज सुरक्षा की जर्जर अवस्था के कारण अपराधियों के लिए ‘ठगी बैंक’ बनता चला जा रहा है। यहां बहुत से क्रेता-विक्रेता के मोबाइल नंबरों की आसान उपलब्धता के कारण अपराधी उनसे व्यापारी की भांति ही सौदा करते हैं और अंतत: भुगतान की बात कर बहुत सारे लोगों को अपने जाल में फंसा लेते हैं।
इस तरह के मामलों में चिंताजनक यह भी है कि कई बार ठगा जाने वाला व्यक्ति स्वयं को इस फ्राड के लिए जिम्मेदार मानते हुए पुलिस में शिकायत भी नहीं करता है। यदि करता भी है, तो हम सब देश के प्रशासनिक अधिकारियों के ढुलमुल रवैये से अच्छी तरह परिचित हैं। साथ ही इस संबंध में ठोस कानूनों के अभाव में अपराधियों तक जल्द पहुंच कायम नहीं हो पाती है और यदि होती भी है तो उनसे रकम की उगाही आसानी से नहीं होती है।
बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले : डिजिटल धोखाधड़ी के बढ़ने से अधिकांश लोगों के दिमाग में एक प्रश्न कौंधता है कि क्या इससे जुड़ी सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता नहीं बनाया जा सकता है। आरबीआइ के अनुसार वर्ष 2018-19 में डिजिटल बैंकिंग फ्राड 74 प्रतिशत बढ़कर 71,543 करोड़ रुपये का हो गया। इससे एक साल पहले यानी वित्त वर्ष 2017-18 तक यह आंकड़ा 41,168 करोड़ रुपये था। विभिन्न बैंकों ने वर्ष 2018-19 में 6,801 फ्राड के मामलों की जानकारी दी, जो वर्ष 2017-18 में 5,916 थी। बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सबसे आगे हैं। धोखाधड़ी के कुल मामलों में 55.4 प्रतिशत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से जुड़े थे। वहीं धोखाधड़ी के मामलों में निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों में कुल धोखाधड़ी में क्रमश: 30.7 प्रतिशत और 11.2 प्रतिशत मामले पाए गए हैं। यदि राशि को देखा जाए तो इन बैंकों की हिस्सेदारी क्रमश: 7.7 प्रतिशत और 1.3 प्रतिशत रही। लगातार बढ़ रहे डिजिटल बैंकिंग फ्राड के मामले में आरबीआइ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 11 वित्त वर्ष में बैंक फ्राड के कुल 53,334 मामले सामने आए हैं, जबकि इनके जरिये 2.05 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है।
अज्ञात स्रोतों से प्राप्त ईमेल और काल के प्रति रहे सतर्क : ऐसे में कुछ स्थायी उपाय किए जाने की आवश्यकता है जिसमें लोगों को साइबर सुरक्षा के प्रति अधिक से अधिक जागरूक किया जाए। आज प्रत्येक डिजिटल उपभोक्ता को ‘फिशिंग’ व ‘विशिंग’ से सावधान रहना होगा। ये सब ऐसी ईमेल्स होती हैं जो बैंक या किसी लोकप्रिय शापिंग वेबसाइट या संस्थान से भेजी हुई लगती हैं। इनसे ग्राहक की व्यक्तिगत जानकारियां हासिल करने की कोशिश की जाती है। इन पर दिए गए लिंक को क्लिक करने पर वास्तविक जैसी दिखने वाली नकली वेबसाइट खुल जाती है। उस पर यूजर आइडी और पासवर्ड दर्ज करते ही आपकी आनलाइन सुरक्षा पर खतरा बढ़ जाता है। इससे मोबाइल नंबर, लाग-इन आइडी, पासवर्ड, डेबिट कार्ड संबंधी जानकारी, सीवीवी, जन्म तिथि जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां चोरी की जा सकती हैं।अज्ञात स्रोतों से प्राप्त ईमेल, काल और एसएमएस के प्रति सतर्क रहना चाहिए। साथ में सभी लोगों को जागरूक किया जा सके, इसके लिए जरूरत इस बात की है कि ग्रामीण पंचायतों में एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति की जाए जो ग्रामवासियों को डिजिटल मिशन के प्रति प्रेरित भी करे और धोखाधड़ी से अपने धन की सुरक्षा के उपाय बाबत पुख्ता प्रशिक्षण भी प्रदान करे। सरकार को भी चाहिए कि यूपीआइ के माध्यम से फोन पे, भीम आदि एप में मनी रिक्वेस्ट के विकल्प को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि आज अधिकांश फ्राड का मुख्य केंद्र बिंदु यही बनता नजर आ रहा है। साथ में सुरक्षा के एक ऐसे पुख्ता ढांचे का निर्माण किया जाए, जिसे भेद पाना लगभग असंभव हो।[शोधार्थी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय]यहां भी पढ़े :UPI Payment: कैसे यूपीआइ के माध्यम से डिजिटल पेमेंट में आ रही क्रांति
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