Pant Birth Anniversary 2022: सुमित्रानंदन पंत महात्मा गांधी से प्रभावित थे, उनके विचारों पर कई कविताएं लिखीं
प्रयागराज में सर्जनपीठ के तत्त्वावधान में सौंदर्यशिल्पी पंडित सुमित्रानंदन पंत की जन्मतिथि के अवसर पर आंतर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया। इसमें हिंदी साहित्य से भिन्न कार्य करने वाले विदुषी और विद्वज्जनों ने छायावादी कवि के व्यक्तित्व को याद किया।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 20 May 2022 03:59 PM (IST)
प्रयागराज, जेएनएन। छायावादी युग के सशक्त कवियों में एक थे सुमित्रानंदन पंत। पंत के अलावा छायावादी युग के कवियों में जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा और पंडित माखन लाल चतुर्वेदी भी इस काव्य धारा के सशकत कवि थे। आज सुमित्रानंदन पंत की जन्मतिथि है। ऐसे में उनके व्यक्तित्व पर चर्चा आयोजनों के माध्यम से हर ओर की जा रही है।
प्रयागराज में राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद : प्रयागराज भी साहित्य की नगरी रही है। यहां सर्जनपीठ के तत्त्वावधान में आज शुक्रवार को सौंदर्यशिल्पी पंडित सुमित्रानंदन पंत की जन्मतिथि के अवसर पर आंतर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया। इसमें हिंदी साहित्य से भिन्न कार्य करने वाले विदुषी और विद्वज्जन की बहुसंख्या में सहभागिता रही।
पंत का प्रकृति प्रेम काव्य में लक्षित होता है : मुंगेर विश्वविद्यालय, बिहार में संस्कृत साहित्य के सहायक आचार्य डाक्टर कृपाशंकर पांडेय ने कहा कि कवि सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम उनके काव्य में यत्र-तत्र लक्षित होता है। विराट और पल्लव में संकलित उनके गीतों में सौंदर्य की व्याप्ति का दर्शन होता है। कुल मिलाकर, पंत जी का समग्र साहित्यिक जीवन सत्यं शिवम् सुंदरम् की स्थापना करता है।
भारतीय मूल्यों के प्रति निष्ठावान थे : दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार डा. अरुण प्रकाश ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत महात्मा गांधीजी से बहुत प्रभावित थे। उनके विचारों को केंद्र में रखकर कई कविताएं लिखीं। यह पंत जी की भारतीय मूल्यों के प्रति निष्ठा के परिणाम के चलते भी हो सकता है, क्योंकि गांधीजी ने राजनीतिक, सामाजिक संचेतना के तत्त्व के रूप में भारतीय मूल्यों की ही प्रतिष्ठापना की थी।
छायावादी स्तंभों में से एक थे : राजकीय इंटर कालेज, प्रयागराज में अर्थशास्त्र की प्रवक्ता सम्पदा मिश्र बोलीं कि पंतजी छायावादी स्तंभों में से एक थे। उस युगप्रवर्तक कवि ने भाषा की निखार और संस्कार देने के अलावा उसके प्रभाव को भी सामने लाने का प्रयत्न किया। वे मानव सौंदर्य और आध्यात्मिक चेतना के कवि थे। खागा, फतेहपुर के पत्रकार व फिल्मकार अमित राजपूत ने कहा कि काव्य के कलापक्ष की भांति भाव पक्ष के क्षेत्र में भी सुमित्रानंदन पंत दक्ष कवि थे। उन्हें प्रकृति चित्रण और महर्षि अरविंद के आध्यात्मिक दर्शन पर आधारित रचनाओं का श्रेष्ठ कवि माना जाता है। गोंडा में गणित विषय के अध्यापक घनश्याम अवस्थी बोले कि कविवर पंत की जीवंत चित्रात्मक भाषा शैली शुद्धता के साथ भाव प्रवाह में भी अप्रतिम है। यह विशेषता उन्हें अन्य कवियों से पृथक् करती है।
आचार्य पंडित पृथ्वीनाथ पांडेय ने पंत के व्यक्तित्व पर चर्चा की : परिसंवाद के आयोजक आचार्य पंडित पृथ्वीनाथ पांडेय ने कहा कि पंतजी जीवन के अधिक निकट पहुंचकर उसे कल्पना की दृष्टि से न देखकर, वास्तविक दृष्टि से देखते हैं, तब उन्हें जीवन कहीं अधिक कठोर, कटु और अधिक भयावह दिखायी देता है। वाराणसी में अध्यापिका प्रतिभा मिश्र ने पंतजी के कर्तृत्व के विषय में बताया,कि प्रकृति के कुशल चितेरे पंत, मानवीकरण का अद्भुत चित्रण, दार्शनिक और रहस्यमयी कवि अद्वितीय कोमलता और सुकोमल भावना के कवि, विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत तथा मातृत्व भावना से पूरित रचनाएं लिखीं।
छायावादी कवियों में सर्वाधिक काव्य रचना पंतजी ने ही की : शासकीय महाविद्यालय, हटा (दमोह) में हिंदी की सहायक प्राध्यापिका आशा राठौर बोलीं कि छायावादी कवियों में सर्वाधिक काव्य रचना पंतजी ने ही की है। 'चिदंबरा' काव्य संग्रह के प्रणयन के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ऐसे महान साहित्यकार काल का अतिक्रमण करते हुए, सदैव साहित्याकाश में विद्यमान रहते हैं। प्रयागराज की कवयित्री उर्वशी उपाध्याय ने कहा कि पंत का आलंकारिक, दार्शनिक, मानवीकरण नारीरूप का चित्रण और हर प्रकार की काव्यरचना अद्भुत है।
पंत हिंदी कविता के नक्षत्र स्वरूप हैं : प्रयागराज के साहित्यकार डा. प्रदीप चित्रांशी ने कहा कि पंतजी ने प्रकृति प्रेम के बाद लौकिक प्रेम के भावात्मक जगत में प्रवेश करने के साथ-साथ यौवन के सौंदर्य तथा संयोग-वियोग की अनुभूतियों की मार्मिक व्यंजना की थी।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में प्राध्यापक शिवप्रसाद शुक्ल ने कहा कि कवि पंत हिंदी कविता के नक्षत्र स्वरूप हैं, भारतीयता के धरोहर हैं, संघर्ष से आद्यंत जूझते रहे, छायावाद पर उनकी महत्त्व पूर्ण टिप्पणी कविता का मार्ग प्रशस्त कर रही है।
प्रकृति के संरक्षक होने का दायित्व बोध कराता है : प्रयागराज में अध्यापक प्रदीप तिवारी ने कहा कि पंतजी द्वारा प्रकृति को केंद्रीय भाव में रखकर किया गया। साहित्य सर्जन मानव सभ्यता को प्रकृति के संरक्षक होने का दायित्व बोध कराता है। भोपाल में शोध छात्रा अनुभूति शर्मा ने कहा कि पंत के मन में सौंदर्य के प्रति दृढ़ आस्था रही है। सुंदरता उन्हें तभी अच्छी लगती है जब वह सत्यं और शिवं से समन्वित हो। प्रयागराज की कवयित्री चेतना चितेरी ने कहा कि प्रकृति के कुशल चितेरे कवि पंत ने अपने कोमल भावनाओं की कमनीयता से कामिनी का अनुपम शृंगार करते हुए, हिंदी-साहित्य जगत में मानवतावादी दृष्टिकोण का रूपायन किया है। गढ़ाकोटा (सागर) के शासकीय महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष डा. घनश्याम भारती ने कहा कि पंतजी की मां का बचपन में देहांत हो गया था। अतः उन्होंने प्रकृति को ही अपनी मां समझकर इसका मानवीकरण किया।
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