Prayagraj: शहर में बसा है अवैध शहर, ‘झुग्गी में जगह चाहिए तो पंडित-चाची से मिलो, काम हो जाएगा, रेट फिक्स है’
बस्ती में हम प्रवेश ही किए थे कि कर्कश आवाज ‘कसमें इ कौन टहल रहे हैं इ बाहरी हैं जरा कायदे से देखो तो इनका’ ने कदम रोक दिए। 20-22 वर्ष के दो लड़के पहला सवाल केसी मिलना है का चाहिए। किस जिले के हैं यह दूसरा सवाल था।
By Jagran NewsEdited By: Shivam YadavUpdated: Wed, 14 Dec 2022 04:20 PM (IST)
प्रयागराज, जागरण टीम: किराये पर झुग्गी में जगह चाहिए तो पंडित-चाची से मिलो। काम हो जाएगा, रेट फिक्स है। बिजली और पानी के लिए अलग से देना होगा। आवाज कर्कश और तल्ख थी। पंडित-चाची कहां मिलेंगी? इसका जवाब अलग अलग मकानों की ओर इशारा करके दिया गया। चाची के घर की ओर हमारे कदम आगे बढ़ते इससे पहले ही चाय वाले ने रोक दिया। ‘अभी मत जाओ, चाची रैली में गई हैं। ढाई-तीन बजे तक आना।’ आवाज में ठसक थी और राजनीतिक संरक्षण की झलक भी।
हमारी आंखों के सामने राजकीय अस्थान, रेलवे की कीमती जमीन पर आबाद संजय नगर बस्ती की सैकड़ों झोपड़पट्टी थी। एक किनारा कुंदन गेस्ट हाउस के पास रेलवे डाट पुल के पास से शुरू था, दूसरा हिस्सा बांध रोड पर जाकर खत्म होता था। हमें इसी कालोनी में एक झोपड़ी की दरकार थी, जिसे उस समानांतर व्यवस्था ने बसा रखा था, जो भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी हुई थी और जिसमें लोग झोपड़ी की कीमत देकर बसे हुए थे और संरक्षित थे।
गठजोड़ से झोपड़पटि्टयां आबाद
हमें ठिकाना भले न मिल पाया हो लेकिन निष्कर्ष यह रहा कि सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों के गठजोड़ से झोपड़पट्टियां आबाद हैं। इन अवैध बस्तियों को संबंधित विभागों के अधिकारी रोज ही देखते हैं और उदासीन हो आगे बढ़ जाते हैं। किसी के दिमाग में यह कौंधता तक नहीं कि इन्हें बिजली और पानी कैसे मिला हुआ है। पुलिस भी नहीं जानना चाहती कि इनमें कौन-कौन लोग बसे हुए हैं।हम यानी किरायेदार के रूप में दैनिक जागरण के रिपोर्टर ताराचंद्र गुप्त और अनुराग श्रीवास्तव ई-रिक्शा चालक बनकर संजय नगर बस्ती में पड़ताल करने पहुंचे थे। यहां अधिकांश बाहर से आकर किराये पर रह रहे थे और झोपड़पट्टी के जरिए कमाई करने वाले लोग दूसरे थे।
हमारी पड़ताल इस मायने में भी थी कि माघ मेला शुरू होने से पहले पुलिस मेला क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों का वेरीफिकेशन करती है। आपराधिक प्रवृत्ति के और संदिग्ध लोगों की पहचान कर कार्रवाई करती है।
अल्लापुर से पास संजय नगर बस्ती में हम प्रवेश ही किए थे कि कर्कश आवाज ‘कसमें इ कौन टहल रहे हैं, इ बाहरी हैं, जरा कायदे से देखो तो इनका’ ने कदम रोक दिए। 20-22 वर्ष के दो लड़के, पहला सवाल, केसी मिलना है, का चाहिए। किस जिले के हैं, यह दूसरा सवाल था। हमने गाजीपुर का नाम लिया तो दोनों सोच में पड़ गए। वहीं, हम पंडित को खोजने को बस्ती नाप रहे थे। कमरे का रेट ढाई से तीन हजार रुपये और बिजली के लिए 50 रुपये अलग से देना होगा?
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