Move to Jagran APP

पढ़िए शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की वीर गाथा जिनके नाम से कांपते थे दुश्मन देश के फौजी

कारगिल युद्ध के नायक के अदम्य साहस और वीरता की कहानियां आज भी देशप्रेमियों के रगों में जोश भर देती हैं। सात जुलाई 1999 को 4875 प्वांइट पर कब्जे के दौरान विक्रम ने सूबेदार रघुनाथ को यह कहकर पीछे कर था दिया कि तू बाल-बच्चेदार है...। पीछे हट जा...।

By Ankur TripathiEdited By: Fri, 24 Dec 2021 01:11 PM (IST)
पढ़िए शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की वीर गाथा जिनके नाम से कांपते थे दुश्मन देश के फौजी
सात जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 चोटी पर कब्जे के वक्त मिली शहादत

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। कैप्टन विक्रम बत्रा...। इस नाम से दुश्मन देश के फौजी भी थर-थर कांपते थे। कारगिल युद्ध के नायक के अदम्य साहस और वीरता की कहानियां आज भी देशप्रेमियों के रगों में जोश भर देती हैं। सात जुलाई 1999 को 4875 प्वांइट पर कब्जे के दौरान विक्रम ने सूबेदार रघुनाथ को यह कहकर पीछे कर था दिया कि 'तू बाल-बच्चेदार है...। पीछे हट जा...। खुद आगे आकर घात लगाए दुश्मनों की गोलियां सीने पर खाईं। उनके आखिरी शब्द थे ''''जय माता दी...''''।

शहीद कैप्टन बत्रा के माता-पिता ने प्रयागराज में सुनाई बेटे की गौरव गाथा

अदम्य साहस व वीरता की यह असल कहानी शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल और मां कमलकांता प्रयागराज आगमन पर दैनिक जागरण से साझा कर रहीं थीं। उन्होंने बताया कि नौ सितंबर 1974 को दो बेटियों (सीमा व नूतन) के बाद दो जुड़वा बेटों (विक्रम व विशाल) का जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पालमपुर स्थित घुग्गर गांव में हुआ। विक्रम ने चंडीगढ़ में डीएवी कालेज से 1995 में बीएससी की पढ़ाई के बाद 1996 में एमए अंग्रेजी में दाखिला लिया। 1996 में उन्होंने सीडीएस की परीक्षा दी और प्रयागराज में सेवा चयन बोर्ड द्वारा चयनित हुए। इसी बीच भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में शामिल होने के लिए कालेज ड्रापआउट किया। प्रशिक्षण समाप्त होने पर उन्हें छह दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली। 1999 में कारगिल की जंग में विक्रम को भी बुलाया गया। फिर श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त कराने का जिम्मा दिया गया। 20 जून 1999 को इस पोस्ट पर विजय हासिल की। उसी बीच उन्होंने दिल मांगे मोर... का नारा दिया। फिर सात जुलाई 1999 को प्वाइंट 4875 चोटी पर कब्जे के लिए भी कैप्टन विक्रम और उनकी टुकड़ी को जिम्मेदारी सौंपी गई। युद्ध के दौरान आमने-सामने की भीषण लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा ने पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। यहां वह सीने में गोली लगने से शहीद हो गए। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत सरकार ने मरणोपरांत सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

आज भी प्रेमिका ने नहीं रचाया ब्याह

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल ने बताया कि चंडीगढ़ की डिंपल चीमा उनके बेटे से प्यार करती थी। पहली बार साल 1995 में पंजाब यूनिवर्सिटी में मुलाकात हुई थी। यही से दोनों के बीच मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया और दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठे। बेटे के शहीद होने के बाद डिंपल ने अब तक ब्याह नहीं रचाया। इस वक्त वह लेक्चरर है। विक्रम के पिता ने बताया कि डिंपल उनसे अभी भी जुड़ी हैं। साल में दो दिन वह उनके और उनकी पत्नी के जन्मदिन पर फोन जरूर करती हैं।

माता-पिता को किया सम्मानित

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता गिरधारी लाल और मां कमलकांता गुरुवार को उच्चतर शिक्षा परिषद के चेयरमैन प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी के आवास पहुंचे थे। यहां प्रो. त्रिपाठी ने दोनों लोगों को सम्मानित किया। काफी देर तक कैप्टन विक्रम के शहादत और अदम्य साहस पर चर्चा हुई। इस दौरान प्रो. आरसी त्रिपाठी, अजय मिश्रा, प्रशांत पांडेय, अतुल त्रिपाठी, मनोज श्रीवास्तव, एक्सीड सोसायटी के कुलदीप मिश्रा, डा. सीपी शर्मा आदि उपस्थित रहे।