Death Anniversary Upendra Nath Ashq सरस्वती ने बढ़ाया अश्क का हिंदी प्रेम, पढ़िए विख्यात कथाकार की यह जीवनी
पुण्यतिथि पर विशेष कथाकार डा. कीर्ति कुमार सिंह बताते हैं कि पंजाब के जालंधर में 14 दिसंबर 1910 को जन्मे उपेंद्रनाथ अश्क 1948 में पत्नी कौशल्या व तीन वर्ष के बेटे नीलाभ के साथ प्रयागराज आ गए। यहां महादेवी द्वारा रसूलाबाद में स्थापित साहित्यकार संसद में शरण लिया।
By Ankur TripathiEdited By: Updated: Wed, 19 Jan 2022 07:30 AM (IST)
पुण्यतिथि पर विशेष
जन्म 14 दिसंबर 1910 जालंधर में मृत्यु 19 जनवरी 1996 को प्रयागराज में
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। बेजोड़ लेखन के जरिए हिंदी साहित्य में अमिट छाप छोडऩे वाले कथाकार, उपन्यासकार उपेंद्रनाथ 'अश्क को हिंदी लेखन का प्रेम प्रतिष्ठित पत्रिका 'सरस्वती के जरिए बढ़ा था। उपेंद्रनाथ आठवीं कक्षा में पढ़ते समय उर्दू गजल लिखने लगे और अपना उपनाम 'अश्क रख लिया। वे आजर जालंधरी को उस्ताद बनाकर गजल कहने लगे। हाईस्कूल से उर्दू कहानी की ओर मुड़े और पहली कहानी ''याद है वो दिन नाम से लिखी। यह कहानी लाहौर के साप्ताहिक समाचार पत्र ''गुरु घंटाल में छपी। दूसरी कहानी लाहौर की ही पत्रिका प्रताप में छपी।
1948 में जालंधर से आ गए थे प्रयागराज
समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि अश्क ने अपनी आत्मकथा ''ज्यादा अपनी, कम पराई में लिखा है कि 1936 में उर्दू की एक कहानी का हिंदी में अनुवाद करके सरस्वती पत्रिका के तत्कालीन संपादक ठा. श्रीनाथ सिंह के पास भेजा था। उस समय मैं ला कालेज लाहौर में पढ़ रहा था। ठा. श्रीनाथ जी ने उस कहानी को मेरे चित्र के साथ छापा तो खुशी का ठिकाना न रहा। इससे उनकी काफी तारीफ हुई, यहीं से हिंदी में लेखन करने लगा। हिंदी लेखन में मुंशी प्रेमचंद व हरिकृष्ण प्रेमी भी उन्हें लगातार प्रेरित करते थे, लेकिन झुकाव सरस्वती में छपने के बाद ज्यादा बढ़ा। कथाकार डा. कीर्ति कुमार सिंह बताते हैं कि पंजाब के जालंधर में 14 दिसंबर 1910 को जन्मे उपेंद्रनाथ 'अश्क 1948 में पत्नी कौशल्या व तीन वर्ष के बेटे नीलाभ के साथ प्रयागराज आ गए। यहां महादेवी द्वारा रसूलाबाद में स्थापित साहित्यकार संसद में शरण लिया। विवाद के कारण तीन महीने बाद ही रसूलाबाद में ही किराए के मकान में रहने लगे। वहीं उपन्यास ''गर्म रख लिखना शुरू किया। प्रयागराज में रहते हुए उन्हें साहित्यजगत में ख्याति मिली। यहीं 19 जनवरी 1996 को उनकी मृत्यु हुई थी।
लौटेगा नीलाभ प्रकाशन का गौरव : भूमिकाउपेंद्रनाथ की पत्नी कौशल्या ने अपने रिफ्यूजी फंड से 'नीलाभ प्रकाशन स्थापित किया। उपेंद्रनाथ अश्क की बहू कथाकार भूमिका द्विवेदी ''अश्क नीलाभ प्रकाशन को उसका पुराना गौरव लौटाने के लिए प्रयासरत हैं। बताती हैं कि कृष्ण चंदर, मंटो, इस्मत चुगताई, राजेंद्र सिंह बेदी जैसे प्रख्यात साहित्यकारों की किताबें नीलाभ प्रकाशन में छपी हैं। प्रकाशन में गोष्ठियां होती थीं। नीलाभ वर्ष 2000 में दिल्ली चले गए तब से प्रकाशन अवरुद्ध है। उसे पुन: चलाने के लिए कानूनी प्रक्रिया चल रही है, जल्द ही उसे पूरा कर लिया जाएगा।
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