Shekhar Joshi Dies: कहानी लेखन में सूनापन छोड़ गए शेखर जोशी, प्रयागराज में गुजारे 40 साल
Shekhar Joshi Dies शेखर जोशी का निधन क्या हुआ मानो कहानी के एक युग का ही अंत हो गया। कहानीकार मार्कंडेय और अमरकांत के साथ उनकी जो कथात्रयी (तिकड़ी) थी वह आखिरी कड़ी भी समाप्त हो गई। उन्होंने प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में जीवन के 40 साल गुजारे।
By amardeep bhattEdited By: Ankur TripathiUpdated: Tue, 04 Oct 2022 08:36 PM (IST)
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। सुप्रसिद्ध कहानीकार शेखर जोशी का निधन क्या हुआ मानो कहानी के एक युग का ही अंत हो गया। कहानीकार मार्कंडेय और अमरकांत के साथ उनकी जो कथात्रयी (तिकड़ी) थी वह आखिरी कड़ी भी समाप्त हो गई। उन्होंने प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) में जीवन के 40 साल गुजारे। इसी जिले को कर्मस्थली बनाकर ऐसी रचनाएं कीं जो कालजयी हो गईं। हाल के दिनों में एक काव्य संग्रह 'पार्वती' भी लिखा जिसका प्रकाशन होना बाकी है।
रचनाकारों ने कहा, जो साहित्यिक रिक्तता आयी उसके भरपाई संभव नहीं
शेखर जोशी सीओडी छिवकी के ईएमई विभाग में कर्मचारी थे और 1986 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर अपना संपूर्ण जीवन कहानी लेखन के लिए समर्पित कर दिया था। पत्नी ईजा के साथ लूकरगंज में लंबे समय तक रहे।उनके करीबी और साहित्यिक पत्रिका अनहद के संपादक संतोष चतुर्वेदी कहते हैं कि शेखर जोशी का रोजगारपरक और कथात्मक जीवन यहीं शुरू हुआ। इफको ने उन्हें अपना साहित्यिक सम्मान भी दिया था। दाज्यू, नौरंगी बीमार है, बदबू, मेंटल आदि उनकी कालजयी कहानियां हैं जिन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। खासबात है कि यह कहानियां उन्होंने प्रयागराज में ही रहते लिखीं।
शेखर की कहानियों में पहाड़ी संस्कृति और प्रगतिशील मानवीय तत्वों को खास जगह
साहित्यकार डा. रविनंदन सिंह कहते हैं कि शेखर जोशी प्रगतिशील कहानीकार थे। हिंदी जगत में उन्हें ख्याति दाज्यू तथा कोसी का घटवार जैसी प्रगतिशील कहानियों से मिली। उनकी कहानियों में पहाड़ी संस्कृति और प्रगतिशील मानवीय तत्वों को खास जगह मिली है। उनके निधन से जो साहित्यिक रिक्तता आयी है उस स्थान की भरपाई संभव नहीं है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फार मीडिया स्टडीज के प्रभारी डा. धनंजय चोपड़ा ने कहा है कि इलाहाबाद के रचनाकारों की एक पीढ़ी ऐसी भी रही है जो जिसने शेखर जोशी के सानिध्य में रहकर काफी कुछ सीखा। कहा कि हम सब भी जब उनके लूकरगंज स्थित आवास जाते थे तो न केवल पुस्तकें मिलती थीं बल्कि नई रचनाओं के लिए कई टिप्स भी उनसे मिलते थे। वह सहज जीवन जीने की एक महत्वपूर्ण पाठशाला थे। हर मुलाकात में उनसे काफी कुछ सीखने को मिलता था। चौधरी महादेव प्रसाद पीजी कालेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष करन सिंह परिहार ने भी शेखर जोशी के निधन पर दुख जताया है।प्रमुख कहानियांराज्यू, कोसी का घटवार, साथ के लोग, हलवाहा, नौरंगी बीमार है, मेरा पहाड़, डागरी वाला, बच्चे का सपना, आदमी का डर, एक पेड़ की यादमिले यह सम्मानमहावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार (1987) , साहित्यभूषण (1995), पहल (1997), मैथिलीशरण गुप्ता सम्मान
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।साहित्यकार डा. रविनंदन सिंह कहते हैं कि शेखर जोशी प्रगतिशील कहानीकार थे। हिंदी जगत में उन्हें ख्याति दाज्यू तथा कोसी का घटवार जैसी प्रगतिशील कहानियों से मिली। उनकी कहानियों में पहाड़ी संस्कृति और प्रगतिशील मानवीय तत्वों को खास जगह मिली है। उनके निधन से जो साहित्यिक रिक्तता आयी है उस स्थान की भरपाई संभव नहीं है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फार मीडिया स्टडीज के प्रभारी डा. धनंजय चोपड़ा ने कहा है कि इलाहाबाद के रचनाकारों की एक पीढ़ी ऐसी भी रही है जो जिसने शेखर जोशी के सानिध्य में रहकर काफी कुछ सीखा। कहा कि हम सब भी जब उनके लूकरगंज स्थित आवास जाते थे तो न केवल पुस्तकें मिलती थीं बल्कि नई रचनाओं के लिए कई टिप्स भी उनसे मिलते थे। वह सहज जीवन जीने की एक महत्वपूर्ण पाठशाला थे। हर मुलाकात में उनसे काफी कुछ सीखने को मिलता था। चौधरी महादेव प्रसाद पीजी कालेज के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष करन सिंह परिहार ने भी शेखर जोशी के निधन पर दुख जताया है।प्रमुख कहानियांराज्यू, कोसी का घटवार, साथ के लोग, हलवाहा, नौरंगी बीमार है, मेरा पहाड़, डागरी वाला, बच्चे का सपना, आदमी का डर, एक पेड़ की यादमिले यह सम्मानमहावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार (1987) , साहित्यभूषण (1995), पहल (1997), मैथिलीशरण गुप्ता सम्मान