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Prayagraj News: शृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में मंदिर पक्ष को मिली बड़ी जीत, जानिए पूरा मामला

वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में मंदिर पक्ष को बड़ी कानूनी जीत मिली है। प्रकरण में वाराणसी जिला जज के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की पुनरीक्षण याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek PandeyUpdated: Thu, 01 Jun 2023 09:56 AM (IST)
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शृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में मंदिर पक्ष को मिली बड़ी जीत, जानिए क्या है पूरा मामला
विधि संवाददाता, प्रयागराज : वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में मंदिर पक्ष को बड़ी कानूनी जीत मिली है। प्रकरण में वाराणसी जिला जज के फैसले के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी, वाराणसी की पुनरीक्षण याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है।

तीन महीने की लंबी बहस के बाद कोर्ट ने 23 दिसंबर 2022 को फैसला सुरक्षित कर लिया था। यह बहुप्रतीक्षित फैसला बुधवार को न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने सुनाया। कोर्ट ने सिविल वाद की ग्राह्यता (पोषणीयता) पर याची की आपत्तियां अस्वीकार कर दी हैं।

स्कंद पुराण का भी किया था उल्लेख

बहस के दौरान मंदिर पक्ष से जाने माने अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा, ‘दीन मोहम्मद केस (1937) में केवल वादी को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई है। मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं है।

कहा कि किसी इस्लामिक इतिहासकार ने ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र नहीं किया है। स्कंद पुराण के हवाले से कोर्ट में बताया गया कि पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में आने वाले मंदिरों का उल्लेख है। उनमें कुछ पर मस्जिद बनी हुई है। ज्ञानवापी कूप में स्नान कर शृंगार गौरी के पूजन का विधान है।

विवादित ढांचे की तस्वीर पेश कर कहा कि साफ दिखाई दे रहा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद का आकार दिया गया है। परिक्रमा मार्ग में 11 मंदिरों का उल्लेख है। सबकी अलग पूजा पद्धति है।

इन अधिवक्ताओं ने रखा था तर्क

मुस्लिम पक्ष से वादी का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी, जहीर असगर, फातिमा अंजुम ने रखा। हिंदू पक्ष की तरफ से अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय, प्रदीप शर्मा, सौरभ तिवारी, विनीत संकल्प थे। राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी, मुख्य स्थायी अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय ने पक्ष रखा।

मस्जिद पक्ष ने यह कहा था

प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट से नियमित पूजा प्रतिबंधित है। पूजा से स्थल की धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ होगी, जिसे कानूनन नहीं किया जा सकता। इसलिए नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। मर्यादा कानून के आधार पर सिविल वाद मियाद बाधित है।

सिविल वाद से विपक्षी के अधिकारों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की गई है, इसलिए जिला अदालत में वाद सुनवाई योग्य नहीं है। मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि नियमित पूजा 1990 में रोकी गई अथवा 1993 में। अगर इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट से प्रतिबंधित है।

सिविल वाद, प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट से भी प्रतिबंधित है क्योंकि, 15 अगस्त, 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का वही स्टेटस बरकरार रहना चाहिए। यह विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है क्योंकि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। बोर्ड की संपत्ति के विवाद की सुनवाई करने का अधिकार वक्फ अधिकरण को है।

मंदिर पक्ष का यह था तर्क

पौराणिक साक्ष्य हैं एवं 15 अगस्त, 1947 के पहले से शृंगार गौरी, हनुमान व कृति वासेश्वर की पूजा होती आ रही है। इसलिए, 1991 का प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट इस मामले में लागू नहीं होगा। मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित हो जाता है।

हिंदू विधि में मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी मूर्ति का परोक्ष रूप से अस्तित्व रहता है। औरंगजेब ने स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर तोड़ा। मंदिर की दीवार पर मस्जिद का आकार दिया गया। इस्लामिक कानून के तहत इसे मस्जिद नहीं माना जा सकता। विवादित स्थल पर नमाज कबूल नहीं होती।

काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट पहले का है। समवर्ती सूची के कारण प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट पर प्रभावी होगा। इस कानून के तहत ज्ञानवापी परिसर की भूमि विश्वनाथ मंदिर की है। मस्जिद का किसी भूमि पर स्वामित्व नहीं है। मंदिर की संपत्ति या हिंदू मुस्लिम का विवाद वक्फ अधिकरण को सुनने का अधिकार नहीं है, वह मुस्लिमों के बीच का विवाद ही सुन सकता है।

यह है मामला

राखी सिंह व चार अन्य महिलाओं ने पूजा के अधिकार की मांग को लेकर वाराणसी की जिला अदालत में सिविल वाद दायर किया। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने वाद की ग्राह्यता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की और कहा कि प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991 के उपबंधों के तहत अदालत को वाद सुनने का अधिकार नहीं है।

जिला अदालत ने अर्जी खारिज कर दी थी। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। राज्य सरकार ने इस मामले में कुछ भी कहने को आवश्यक नहीं माना। हालांकि हाई कोर्ट ने जानना चाहा था कि 1993 में पूजा किसके आदेश व किस कारण रोकी गई।

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