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लोकनाथ की गलियों ने दिए हिंदी के रत्न, ऐतिहासिक भारती भवन बना रहा उनका ठौर

प्रयागराज शहर कीम लोकनाथ सब्जी मंडी के भीतर कुछ तंग गलियों में बसे मोहल्ले मालवीय नगर खुशहाल पर्वत अहियापुर भारती भवन रोड। हिंदी के जुनूनी लोगों पं. बालकृष्ण भट्ट राजर्षि पीडी टंडन महामना पंडित मदनमोहन मालवीय और केशवदेव मालवीय का इनमें बचपना बीता।

By Ankur TripathiEdited By: Updated: Fri, 09 Sep 2022 05:43 PM (IST)
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लोकनाथ सब्जी मंडी स्थित भारती भवन पुस्तकालय भी हिंदी के खेवनहारों का ठौर रहा
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। पुराने शहर में लोकनाथ सब्जी मंडी के भीतर कुछ तंग गलियों में बसे मोहल्ले मालवीय नगर, खुशहाल पर्वत, अहियापुर, भारती भवन रोड। हिंदी के जुनूनी लोगों पं. बालकृष्ण भट्ट, राजर्षि पीडी टंडन, महामना पंडित मदनमोहन मालवीय और केशवदेव मालवीय का इनमें बचपना बीता। इनमें महामना और पीडी टंडन तो हिंदी की उत्कृष्ट सेवा और राष्ट्र के प्रति योगदान देने पर भारत रत्न तक हुए। पं. बालकृष्ण भट्ट ने हिंदी प्रदीप के रूप में ऐसी पत्रिका दी जिसकी बदौलत लोगों ने 'इलाहाबाद' को पहचाना।

यहीं भारती भवन पुस्तकालय भी इन हिंदी के खेवनहारों का ठौर रहा। महामना जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद भी थे। उनका व्यक्तित्व अद्वितीय था। हिंदी के विकास में इनका योगदान रहा। इन्होंने कई सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार किया। महामना ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना में सहयोग दिया और गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया।

संकरी गली में जन्म और उसके आसपास पले-बढ़े

खुशहाल पर्वत की संकरी गली में पं. बालकृष्ण भट्ट का जन्म हुआ और उसी के आसपास पले बढ़े। भारती भवन पुस्तकालय के पुस्तकालयाध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय कहते हैं कि हिंदी पल्लवित और विकसित हुई तो इसके लिए तमाम लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछार कर दिया था। पं. बालकृष्ण भट्ट, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, केशवदेव मालवीय, महामना पंडित मदनमोहन मालवीय का जुनून इसमें सहायक बना। बताया कि भारती भवन पुस्तकालय में ऐसी पुस्तकें भी हैं जिन्हें पढ़कर मालवीय नगर, खुशहाल पर्वत, अहियापुर का इतिहास जाना जा सकता है। हिंदी का परचम देशभर में लहराया है तो यह सौभाग्य की बात है कि इसकी मुहिम चलाने वाले इसी मुहल्ले के वासी रहे हैं। हालांकि यह दुर्भाग्य है कि इन मोहल्लों, हिंदी को प्रेरणादायी बनाने वालों की जन्मस्थली का न तो विकास हो सका न ही इनका संरक्षण हो रहा है। जबकि यही गलियां सभी हिंदी प्रेमियों के लिए नमन योग्य हैं।

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