Swami Swaroopanand Saraswati: द्वारिका पीठाधीश्वर का नाम स्वामी स्वरूपानंद कैसे पड़ा, रोचक है प्रसंग
Swami Swaroopanand Saraswati ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। सुंदर व आकर्षक स्वरूप होने के कारण गुरु ने उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम दिया। स्वामी सच्चिदानंद तीर्थ के ब्रह्मलीन होने पर 27 मई 1982 को द्वारिका पीठ के पीठाधीश्वर बन गए।
By Brijesh SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 08:13 AM (IST)
प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। Swami Swaroopanand Saraswati निर्भीकता, बेबाकी के लिए विख्यात शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जीवनभर सनातन धर्म के उत्थान को काम करते रहे। उन्होंने न कभी विवाद की परवाह किया, न उसके परिणाम की। जो उचित लगा उसके लिए मजबूती से कदम बढ़ाया। संन्यास लेने से पहले स्वरूपानंद सरस्वती स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजादी मिलने के बाद 1950 में दंड संन्यास लिया।
स्वामी स्वरूपानंद के महत्वपूर्ण फैसलों का साक्षी रहा है प्रयागराज : स्वामी स्वरूपानंद के तमाम संकल्पों, निर्णयों का साक्षी है तीर्थराज प्रयाग रहा। माघ मेला, अर्द्धकुंभ व कुंभ मेला में गोवध रोकने, गंगा की निर्मलता, कामन सिविल कोड लागू करने, रामसेतु की रक्षा, स्वयंभू शंकराचार्यों व साईं बाबा का पूजन रोकने के लिए प्रयागराज से मुखर आवाज उठाई थी, जिसकी धमक देशभर में सुनाई दी।
सुंदर व आकर्षक स्वरूप के कारण गुरु ने रख दिया नाम : ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। सुंदर व आकर्षक स्वरूप होने के कारण गुरु ने उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नाम दिया। स्वामी सच्चिदानंद तीर्थ के ब्रह्मलीन होने पर 27 मई 1982 को द्वारिका पीठ के पीठाधीश्वर बन गए। इसके बाद हिंदुत्व की आवाज मुखर करते रहे।
गाय की हत्या रोकने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग उठाई थी : वर्ष 1983 में प्रयागराज कुंभ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संगम स्नान करने आई थीं। वे स्वरूपानंद का आशीर्वाद लेने उनके शिविर गईं, तब स्वरूपानंद ने उन्हें गाय के धार्मिक महत्व की जानकारी देते हुए उनकी रक्षा के लिए काम करने को कहा था। इसी कुंभ में स्वरूपानंद सरस्वती ने धर्म सम्मेलन का आयोजन करके गाय की हत्या रोकने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग उठाई थी।
श्रीराम मंदिर के लिए हुए थे सक्रिय : विश्व हिंदू परिषद ने श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या पर मंदिर निर्माण का आंदोलन शुरू किया तो स्वरूपानंद भी सक्रिय हो गए। उन्होंने प्रयागराज में 1989 में लगे कुंभ मेला में रामालय ट्रस्ट बनाने की घोषणा की। ट्रस्ट में चारों पीठ के शंकराचार्य, समस्त पंथों के प्रमुख संतों को शामिल किया गया, लेकिन संतों में एकता नहीं बन गई। इससे ट्रस्ट की मुहिम ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपांनद ने 1995 में प्रयागराज में लगे अर्द्धकुंभ मेला में कामन सिविल कोड व गंगा की निर्मलता के लिए कानून बनाने के साथ अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए संतों की एकजुटता पर जोर दिया था।
गंगा के लिए छेड़ी लड़ाई : गंगा में बढ़ते प्रदूषण से स्वरूपानंद व्यथित थे। उन्होंने वर्ष 2003 के माघ मेला में गंगा प्रदूषण से नाराज होकर कल्पवासियों के साथ एक दिन का उपवास रखा। इसके बाद प्रयाग में नालों का पानी गंगा में जाने से रोका गया। उन्होंने गंगा की रक्षा के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा। गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कराने के लिए 16 अक्टूबर 2008 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मिले थे। फिर चार नवंबर 2008 को गंगा राष्ट्रीय नदी घोषित की गईं। केंद्र सरकार की सेतु समुद्रम् परियोजना का विरोध करते हुए श्रीसेतुबंध रामेश्वरम् रक्षा मंच का गठन कर उसका मुखर विराध किया था।
स्वयंभू शंकराचार्यों के मुखर विरोधी : स्वामी स्वरूपानंद का मानना था कि शंकराचार्य का पद अत्यंत पवित्र व समर्पण का केंद्र होता है। आदिशंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की थी, उनके पीठाधीश्वर को ही शंकराचार्य लिखने का अधिकार है। इसके बावजूद काफी संत बिना पीठ के स्वयं को शंकराचार्य के रूप में प्रचारित करते थे। इसका स्वामी स्वरूपानंद ने मुखर विरोध किया। कुंभ मेला 2013 में प्रयागराज में चतुष्पद बनाने की मांग उठाई, जिसमें सिर्फ चारों पीठ के शंकराचार्यों के लिए भूमि आवंटित करने की मांग की थी। इस कुंभ में प्रयागराज आने पर सोनिया गांधी ने स्वरूपानंद का अशीर्वाद लिया था।
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