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1857 में प्रयागराज में अंग्रेजों की ढाल बना था अकबर का किला, अगर किले पर क्रांतिकारियों का कब्‍जा होता तब क्‍या होता

इतिहासकार और इलाहाबाद केंद्रीय विश्‍वविदयालय के प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि अकबर के किले पर जीत का मतलब था ना सिर्फ इलाहाबाद अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो जाता बल्कि पूरा अवध क्षेत्र आजाद कराया जा सकता था।

By Rajneesh MishraEdited By: Updated: Sat, 20 Feb 2021 07:50 AM (IST)
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1857 की गदर में अंग्रेजों ने अकबर के किले को ढाल की तरह इस्‍तेमाल किया।
प्रयागराज, जेएनएन। देश को आजाद कराने के लिए 1857 में इलाहाबाद में भी बगावत का बिगुल बज चुका था। पूरे शहर में क्रांति की ज्वाला फूट पड़ी थी। क्रांतिकारियों ने पूरे शहर पर कब्जा कर लिया था। केवल एक अकबर का किला ही बच गया था जिसे अंग्रेजों ने अपनी ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को क्रांतिकारियों से मुक्त करा लिया था। कहते हैं कि अकबर का किला न होता तो आज इतिहास कुछ दूसरा ही होता।

किले में जमा कर रखे थे भारी मात्रा में गोला-बारुद

संगम के किनारे स्थित सम्राट अकबर के किले को उस समय उत्तर-पश्चिम प्रांत की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों ने एक तरह से मुख्यालय बनाया था। किले में भारी मात्रा में गोला-बारुद इकट्ठा कर रखे थे जिसकी सुरक्षा के लिए अंग्रेजों ने यहां पर छठी रेजीमेंट देशी पलटन और फिरोजपुर रेजीमेंट के सिख दस्ते के सैनिक तैनात कर रखे थे। क्रांति के समय पर किले में यूरोपीय सिपाही या अधिकारी नहीं थे जो क्रांतिकारियों के लिए बढिय़ा मौका था। इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि अकबर के किले पर जीत का मतलब था ना सिर्फ इलाहाबाद अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो जाता, बल्कि पूरा अवध क्षेत्र आजाद कराया जा सकता था।

क्रांतिकारियों के हमले को नाकाम करने को तैनात की थीं तोपें

उस समय क्रांतिकारियों का नेतृत्व कर रहे मौलवी लियाकत अली और सरदार रामचंद्र ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ पंचायत की जिसमें फैसला लिया गया कि छह जून को किले पर हमला करेंगे। जिसकी भनक अंग्रेजों को लग चुकी थी। इस जानकारी पर कि बनारस से भी क्रांतिकारी आ रहे हैं और किले पर हमला कर सकते हैं तो किले की सुरक्षा और कड़ी कर दी गई। बनारस से आने वाले क्रांतिकारियों को रोकने के लिए देशी पलटन की दो टुकडिय़ां और तोपें दारागंज के करीब बने नाव के पुल पर तैनात कर दी गईं। किले की तोपों को बनारस से आने वाली सड़क की ओर मोड़ दिया गया। अलोपीबाग में देशी सवारों की दो टुकडिय़ों के साथ किले में 65 तोपची, चार सौ सिख घुड़सवार व पैदल सैनिक तैनात किए गए थे।

क्रांतिकारियों ने छह जून को किले पर किया था आक्रमण

अंग्रेजों के खिलाफ बगावत 6 जून 1857 को पूरे इलाहाबाद में एक साथ शुरू हो गई। देशी पलटन के सैनिकों ने भी बगावत कर दी। अंग्रेज लेफ्टीनेंट अलेक्जेंडर ने देशी पलटन को बागियों पर गोली चलाने का हुक्म दिया किंतु सैनिको ने मना कर दिया। अलोपीबाग के सैनिको ने लेफ्टीनेंट अलेक्जेंडर को गोली मार दी। बागियों ने दारागंज और किले के नजदीक की सुरक्षा चौकियों पर कब्जा कर लिया, खजाने से तीस लाख रुपये लूट लिए। 7 जून 1857 को कोतवाली पर क्रांति का हरा झंडा फहरा दिया लेकिन यह आजादी सिर्फ 11 दिन ही रही। बनारस से कर्नल नील को इलाहाबाद भेजा गया। उसने किले को अपना ठौर बनाकर जमकर कत्ले आम मचाया और 18 जून को फिर से इलाहाबाद पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।

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