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प्रयागराज के गढ़वा किले की जानें ऐतिहासिक दास्‍तान, इतिहास समेटे हुए है यह किला, यूं ही नहीं पर्यटकों को है लुभाता

गढ़वा का ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ में शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर रेलवे स्टेशन से तकरीबन सात किमी. पश्चिम में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक पंकज तिवारी के मुताबिक प्रस्तर निर्मित यह किला पंचकोणीय है। इस किले की स्थापना का समय गुप्त व मध्यकालीन बताया जाता है।

By Rajneesh MishraEdited By: Updated: Thu, 21 Jan 2021 03:10 PM (IST)
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गढ़वा का ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ में शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर रेलवे स्टेशन से तकरीबन सात किमी. पश्चिम में स्थित है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज की बारा तहसील के शंकरगढ़ स्थित गढ़वा का किला ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के साथ पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस किले का जीर्णोदधार कराने के बाद यहां पर्यटकों का आना-जाना वर्ष भर बना रहता है। इस किले में प्राचीन मूर्तियां, बावली और विशाल शिवालय लोगों के आर्कषण का केंद्र है।

शंकरगढ़ से सात किमी. पश्चिम दिशा में स्थित है किला

गढ़वा का ऐतिहासिक किला शंकरगढ़ में शिवराजपुर-प्रतापपुर मार्ग पर रेलवे स्टेशन से तकरीबन सात किमी. पश्चिम में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक पंकज तिवारी के मुताबिक प्रस्तर निर्मित यह किला पंचकोणीय है। इसके चारो कोनों पर बुर्ज बने हैं। इस किले की स्थापना का समय गुप्त व मध्यकालीन बताया जाता है। गढ़वा का प्राचीन नाम भट्टप्राय था, यहां से कुछ ही दूर पर भट्टगढ़ नामक गांव था जो वर्तमान में बरगढ़ के नाम से जाना जाता है।

बघेल राजा विक्रमादित्य ने कराया था किले का निर्माण

किले के द्वार पर पुरातत्व विभाग की ओर से एक लेख प्रदर्शित किया गया है जिसमें कहा गया है कि गढ़वा किला एक पंचकोणीय शिलाखंडों से निर्मित परकोटा है। जिसके भीतर कुछ प्राचीन मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं। लेख में बताया गया है कि किले का निर्माण बारा के बघेल राजा विक्रमादित्य द्वारा सन् 1750 में कराया गया था। यह भी कि यहां से प्राप्त अवशेष गुप्तकालीन हैं। यहां से गुप्तकाल के राजा चंद्रगुप्त, कुमारगुप्त, स्कंदगुप्त के काल के सात अभिलेख भी पाए गए हैं।

किले में बनाए गए संग्रहालय में रखी हैं खंडित मूर्तियां

पंकज तिवारी के मुताबिक गढ़वा और बरगढ़ गांवों के बीच पत्थरों से निर्मित देवताओं की जीर्ण-शीर्ण कई मूर्तियां व प्रस्तर आदि मिले थे जिनको किले में बनाए गए संग्रहालय में सुरक्षित रखवा दिया गया है। किले में दो बावलियां है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। दोनों की मरम्मत कराकर उन्हें दर्शनीय बना दिया गया है। किले में ही विशाल शिव मंदिर है जिसका गर्भगृह खाली पड़ा है।  मंदिर के शिखर पर लगा कलश दल व गणेश जी की खंडित प्रतिमा भी यहां पर मिली है जिसे सुरक्षित रखा गया है।

पद्मासन मुद्रा में बैठी श्रीहरि की प्रतिमा है आकर्षक

किला प्रांगण में बने शिव मंदिर के स्तंभ अलंकृत हैं। पत्थर के बने इन स्तंभों पर संस्कृत में लेख भी लिखे हुए हैं। इस मंदिर के समीप बने एक कक्ष में भगवान विष्णु की पद्मासन मुद्रा में बैठी मूर्ति मौजूद है। श्री विष्णु व उनके दशावतार की विशाल प्रतिमा भी है जो तकरीबन आठ फीट ऊंची है। यहां पर मतस्यावतार, कच्छपावतार, नरसिंह,  बराह अवतार के साथ रामावतार और परशुराम आदि अवतारों की पत्थरों से बनी मूर्तियां भी हैं।

मौजूद हैं विशाल सभा कक्ष और राज निवास के भग्नावशेष

किला प्रांगण में काफी बड़े सभा कक्ष और राज निवास जैसे विशाल भवन का भग्नावशेष भी है। इस सभाकक्ष में पांच द्वार हैं जिसके खंभे सजावटी हैं। सभा कक्ष की छत मौजूद नहीं है। यहीं पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है। बताते हैं कि कसौटा खानदान के कंधार देव के 12 वें वशंज हुकुम सिंह ने किले का जीर्णोद्धार कराया था। बाद में हुकुम सिंह के पुत्र शंकर सिंह ने भी गढ़वा के किले का रख रखाव कराया था।

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