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Umesh Pal Murder: कौन है उमेश पाल? जिसको शूटरों ने गोलियों से भूना, 18 साल पहले एक हत्‍या से शुरू हुई थी कहानी

Umesh Pal Murder उमेश की हत्या की नींव 18 साल पहले राजू पाल हत्याकांड के बाद मुख्य गवाह बनने के साथ ही पड़ी थी। राजू पाल को इंसाफ दिलाने के लिए उमेश आखिरी सांस तक डटे रहे। आइए जानते हैं उमेश पाल और राजू पाल के संबंधों के बारे में...

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sat, 25 Feb 2023 01:17 PM (IST)
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उमेश पाल हत्याकांड के बाद जांच करने पहुंची पुलिस व उमेश की फाइल फोटो। -जागरण
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। उमेश पाल के बारे में करीबियों ने बताया कि वह राजू पाल के तब से दोस्त थे जब वह सक्रिय जीवन और राजनीति में नहीं थे। राजू पाल और पूजा पाल से उमेश पाल की रिश्तेदारी और घरेलू ताल्लुकात थे। रोज घर पर आना-जाना और साथ खाना-पीना होता था। बचपन की यह यारी उमेश पाल ने आखिरी सांस तक निभाई। वह राजू पाल हत्याकांड की पैरवी करते रहे और उससे जुड़े एक मुकदमे की पैरवी के बाद ही जिला न्यायालय से घर के लिए रवाना हुए थे। घर के बाहर ही उनके लिए शूटरों ने मौत का घेरा डाल रखा था।

उमेश ने राजू पाल के हत्यारों को सजा दिलाने की ठान रखी थी

उमेश पाल के करीबी बताते हैं कि वह राजू पाल के साथ अपने रिश्ते को याद करते रहते थे। कभी बात होती तो कहते कि राजू पाल के साथ बचपन बीता है, आंखों के सामने राजू पाल की हत्या हो गई थी जो कभी भूलता नहीं। उनके कातिलों को सजा दिलाने की ठान रखी थी उमेश पाल ने। वह राजू की पत्नी पूजा पाल के साथ लगातार हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी करते रहे। पूजा पाल की पैरवी पर ही सुप्रीम कोर्ट ने राजू पाल हत्याकांड की जांच सीबीआइ के हवाले की थी और जब उसकी चार्जशीट लग गई तो उमेश पाल जल्द सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में पैरवी करने लगे।

राजू पाल हत्याकांड में निर्णय आने की थी संभावना

उमेश पाल की पैरवी का ही नतीजा है कि जनवरी में हाई कोर्ट ने दो महीने में राजू पाल हत्याकांड का ट्रायल पूरा करने के लिए आदेश दिया। अतीक ने इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी तो उमेश पाल पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान विरोध करने के लिए पहुंचे थे। आखिरकार यही आदेश जारी हुआ कि दो महीने में ट्रायल पूरा किया जाए। यानी जो मुकदमा 18 साल से लंबित था, उसमें दो महीने बाद निर्णय आने की पूरी संभावना थी।

उमेश पाल अपने करीबियों से कहते थे कि अब राजू पाल के कातिलों को सजा होनी पक्की है। उमेश पाल बेहद आशांवित थे कि अतीक और अशरफ को उम्रकैद होगी। करीबियों और रिश्तेदारों के अलावा तमाम लोग उमेश पाल की मौत पर दुख जाहिर करते दिखे। उनका कहना था कि राजू पाल के लिए उमेश ने अपनी जान दे दी।

राजू पाल हत्याकांड को शूटरों ने ऐसे दिया था अंजाम

25 जनवरी 2005। दोपहर तीन बजे का वक्त। कुछ महीने पहले बसपा के टिकट पर शहर पश्चिमी का विधायक चुने गए राजू पाल पोस्टमार्टम हाउस में एक पीड़ित परिवार से मिलने के बाद धूमनगंज के नीवां में अपने घर के लिए रवाना हुए थे। उनके काफिले में दो गाड़ियां थी, एक स्कार्पियो और दूसरी सफारी। पहले हो चुके हमले की वजह से राजू पाल को पुलिस के सुरक्षाकर्मी मिले थे जिन्हें राजू ने पीछे सफारी गाड़ी में भेज दिया और अपने करीबियों के साथ स्कार्पियो में बैठकर खुद ड्राइविंग करने लगे थे। सुलेमसराय में दोनों गाड़ियां नेहरू पार्क मोड़ के पास पहुंची तभी शूटरों ने घेरकर फायरिंग शुरू कर दी।

राजू पाल के करीबी भी मारे गए थे

गोलियों की बौछार के बीच राजू पाल और उनके करीबी देवी पाल और संदीप पाल भी मारे गए थे। करेली इलाके की रुख्साना भी जख्मी हुई थी। राजू पाल को गोलियों से छलनी गाड़ी से निकाल जीवन ज्योति अस्पताल ले जाया गया था जहां उन्हें मृत बताए जाने पर बसपा और राजू पाल समर्थकों ने सड़क पर आकर बवाल शुरू कर दिया था। राजू पाल का शव पोस्टमार्टम हाउस ले जाया गया तो समर्थकों ने पुलिस से शव छीना और चौफटका के पास रखकर चक्काजाम कर दिया। जमकर पथराव होने लगा।

समर्थकों ने किया सड़क जाम कर किया था पथराव व आगजनी

पुलिस बल ने किसी तरह शव अपने कब्जे में लिया और दोबारा पोस्टमार्टम हाउस ले गई। लेकिन इतनी देर में सुलेमसराय समेत अलग अलग इलाकों में बसपा समर्थक पथराव करने लगे थे। रात में पुलिस ने राजू पाल के शव का जबरन बिना परिवार की मौजूदगी के अंतिम संस्कार कर दिया तो इस खबर ने आग में घी का काम किया। सुबह सात बजने तक में सुलेमसराय में हजारों समर्थक सड़क पर जमा हो गए थे जो जाम लगाकर पथराव करने लगे। पुलिस अधिकारी पहुंचे तो उन्हें ईंट-पत्थर मारते हुए खदेड़ लिया। फिर तो करेलाबाग से लेकर झूंसी और राजापुर से लेकर शिवकुटी और ग्रामीण अंचल में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। राजापुर पुलिस चौकी में उग्र भीड़ ने आग लगा दी। पुलिसवालों की गाड़ियां जला दी। खल्दाबाद, नुरूल्ला रोड, करेलाबाग, झलवा में भी आगजनी होने लगी तो पुलिस के हाथ-पांव फूले। शाम तक पुलिस पथराव से निपटने और आग बुझाने में जूझती रही।

कप्तान और टाइगर में हो गई थी तू-तड़ाक

राजू पाल हत्याकांड के बाद दूसरे दिन सुबह से बवाल शुरू होने पर तत्कालीन एसएसपी सुनील गुप्ता और एसपी सिटी राजेश कृष्णा पर शांति व्यवस्था की जिम्मेदारी थी लेकिन वे सुबह से दोपहर तक भागते-दौड़ते इतना बौखला गए कि आपस में ही उलझ गए। तब चर्चा रही कि एसएसपी ने वायरलेस पर कह दिया कि टाइगर तुमने सब गड़बड़ कर दिया तो टाइगर यानी एसपी सिटी ने भी तीखा जवाब दे दिया था। तत्कालीन थानाध्यक्ष धूमनगंज परशुराम सिंह को निलंबित कर दिया गया जबकि एसपी सिटी को भी हटा दिया गया लेकिन एसएसपी को बचा लिया गया। एसएसपी को कुछ महीने बाद छात्र नेता की हत्या होने के बाद बवाल होने पर हटाया गया था।

अतीक की गाड़ी में घूमता था वो अफसर

राजू पाल हत्याकांड के वक्त यूपी में सपा सरकार थी और माफिया अतीक अहमद का बोलबाला था या कहें दबदबा था। अतीक का ऐसा खौफ था कि पुलिस अधिकारी उसके दरबार में जी-हुजूरी करते। एक पुलिस अधिकारी उसकी गाड़ी में बैठकर घूमता था। राजू पाल को अतीक से जान का खतरा था लेकिन जानकर भी पुलिस लापरवाही बरतती रही।

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