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सपेरों का गांव जहां घरों में टहलते हैं नाग, सांपों के बीच गुजरती है इनकी जिंदगी, दहेज में भी देते हैं विषधर

प्रयागराज में शंकरगढ़ इलाके का कपारी गांव सपेरों का है। सांप पालना यहां के लोगों का पुश्तैनी काम है। हर परिवार के मुखिया समेत सभी पुरुष सदस्यों के पीछे एक सांप अवश्य पाला जाता है। घर-घर नागदेवता के दर्शन कराकर होने वाली कमाई से ये सपेरे खुशहाल हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Updated: Fri, 29 Jul 2022 05:16 PM (IST)
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प्रयागराज में यह एक गांव ऐसा है जहां के लोगों का जीवन नागों पर आश्रित है।

प्रयागराज, जेएनएन। नागदेव की स्तुति का पर्व नागपंचमी (Nagpanchami) दो अगस्त को मनाया जाएगा। सनातन धर्मावलंबी नाग की पूजा करके सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। नागपंचमी पर नागवासुकी व तक्षकतीर्थ बड़ा शिवालय में दर्शन-पूजन करने वालों की भारी भीड़ जुटती है। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि नागपंचमी पर नागदेव का पूजन करने से नागों के भय से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन प्रयागराज में एक गांव ऐसा है जहां के लोगों का जीवन नागों पर आश्रित है। इनके घर में नाग टहलते दिख जाते हैं। बच्चे सांप के साथ खेलते रहते हैं।

इस गांव में घर-घर हैं सांप

प्रयागराज का पाठा कहलाने वाले शंकरगढ़ इलाके का कपारी गांव सपेरों का है। सांप पालना यहां के लोगों का पुश्तैनी काम है। हर परिवार के मुखिया समेत सभी पुरुष सदस्यों के पीछे एक सांप अवश्य पाला जाता है। उदाहरण स्वरूप परिवार में पिता के तीन बेटे हैं तो उस घर में कम से कम चार विषधर पाले जाते हैं। घर-घर नागदेवता के दर्शन कराकर होने वाली कमाई से ही ये सपेरे खुशहाल हैं। बीन बजाने में माहिर इन सपेरों के साथ ही सांप भी अपनी जिंदगी जीते हैं। शहर या ग्रामीण क्षेत्र में कहीं भी सांप निकले तो सूचना दिए जाने पर कपारी के सपेरे उसे पकड़ने के लिए पहुंच जाते हैं।

आठवीं पीढ़ी में भी सांपों के भरोसे जिंदगी

कपारी के साथ जज्जी का पूरा में भी काफी संख्या में सपेरे रहते हैैं। जज्जी का पूरा निवासी झूमनाथ, जलूस नाथ व अंदाज नाथ कहते हैैं कि कुछ सांप बेहद विषैले होते हैैं। पलक झपकते ही फुंकार मारने वाले गेंहुअन नाग को काबू करना बहुत कठिन होता है। उसे जड़ी सुंघाते हैैं तभी उसका फन सिकुड़ता है। करताल नाथ का कहना है कि उनकी आठवीं पीढ़ी है, वह न नौकरी करते हैैं और न ही कोई दूसरा धंधा। सिर्फ सांपों की ही कमाई खाते हैैं।

सपोले हैं बच्चों का खिलौना

कपारी में बच्चे सपोले यानी सांप के बच्चे लेकर घूमते हैं, उनके साथ ही बचपन गुजरता है। बच्चे सांपों के बच्चों को बेखौफ हाथ से उठाते हैं और उनके साथ खेलते हैं।

विषधरों की ये प्रजातियां हैं

कोबरा, करिया, वाइपर, रेटल स्नैक, करैत प्रजातियों के सांप, विषखोपड़ा, गोहटा जैसे बेहद खतरनाक जीव इस बस्ती की झोपड़ियों में पाले जाते हैं।

सपेरों और मदारियों का बढ़ रहा कुनबा

कपारी के साथ सपेरों और मदारियों की पांच अन्य बस्तियां भी बस गई हैं। कपारी निवासी प्रकाश के मुताबिक ये सपेरे पश्चिम बंगाल से लगभग 100 साल पहले संगम स्नान के लिए आए थे। शंकरगढ़ के पहाड़ व हरियाली उन्हें भा गई। कपारी के अलावा गुडिय़ा तालाब, जज्जी का पुरवा, बेमरा, कंचनपुर बस्तियों में भी सपेरों के कुनबे विस्तार ले चुके हैैं।

बेटी की शादी पर दहेज में देेते हैैं सांप

इस गांव की खासियत यह भी है कि यहां के युवक-युवतियों की शादी दूसरे कुनबे में नहीं होती है। सपेरों और मदारियों में ही इनकी शादी की जाती है। दहेज में अन्य सामग्रियों के अलावा सांप दिए जाते हैं।

नाग पंचमी का मनाते हैं उत्सव

नाग पंचमी पर यहां के सपेरे सांपों को दूध से नहलाते हैं और चावल व फूल चढ़ाते हैं। पूजा-अर्चना, अभिषेक कर महाआरती करते हैं। महिलाएं नाग-नागिन लेकर नृत्य भी करती हैं। घर में पूड़ी-सब्जी, सेंवई व हलवा आदि पकवान बनता है। पूजा के बाद पिटारे में सांप लेकर निकलते हैं, जिसका लोगों को दर्शन कराते हैैं।

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