RSS की शाखाएं जहां नहीं हैं, वहां संघ का साहित्य जगाएगा अलख, प्रयागराज की बैठक में होगा विमर्श
जागरण पत्रिका के अखिल भारतीय प्रमुख प्रेम कुमार ने देश भर से प्रयागराज में आयोजित आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में शामिल होने आए पदाधिकारियों व स्थानीय अधिकारियों के साथ इस संबंध में विस्तृत चर्चा की है।
By Jagran NewsEdited By: Brijesh SrivastavaUpdated: Sun, 16 Oct 2022 12:13 PM (IST)
प्रयागराज, [अमलेंदु त्रिपाठी]। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) वर्ष 2025 में अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। तब तक प्रत्येक गांव में शाखा, सभी घरों में स्वयंसेवक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए प्रचारकों की टोलियां सक्रिय की जानी हैं। कुछ जगहों पर कार्य भी शुरू हो चुका है। इसी क्रम में जहां अब तक शाखाएं नहीं हैं वहां संगठन का साहित्य पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। नियमित रूप से पत्रिकाओं का प्रकाशन, पत्रक आदि वितरित किए जाएंगे। इसे लेकर प्रयागराज में आयोजित अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में विस्तृत रूपरेखा बनाने की तैयारी है।
आरएसएस की प्रयागराज में चार दिवसीय बैठक : जागरण पत्रिका के अखिल भारतीय प्रमुख प्रेम कुमार ने देश भर से प्रयागराज में आयोजित आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में शामिल होने आए पदाधिकारियों व स्थानीय अधिकारियों के साथ इस संबंध में विस्तृत चर्चा की है। सभी प्रांतों से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं व अन्य साहित्य की भी जानकारी ली है। उनके प्रसार और विषयवस्तु पर भी विमर्श किया है। प्रत्येक प्रांत से प्रकाशित होने वाली पुस्तिकाओं में किसी तरह के विषय समाहित किए जा रहे हैं, उनमें लेख व संगठन की गतिविधियों को कितना स्थान दिया जा रहा इसपर भी चर्चा की गई। स्पष्ट किया गया कि जहां शाखा नहीं लग रही वहां के लोगों में वैचारिक जागृति लाने के लिए साहित्य का सहारा लेना जरूरी है।
हिंदू समाज को संगठित और जागृत करने का मिशन : काशी प्रांत में चेतना प्रवाह नाम की प्रकाशित होने वाली पत्रिका को ग्रामीण क्षेत्रों व संठन से संबद्ध सभी सदस्यों तक पहुंचाने का निर्णय लिया गया। शीर्ष पदाधिकारियों ने जोर दिया कि वैचारिक साहित्य सृजन के क्षेत्र में और प्रयास होने चाहिए। 16 से 19 अक्टूबर तक होने वाली बड़ी बैठक में इस विषय को पूरी महत्ता के साथ रखा जाएगा, जिससे हिंदू समाज को संगठित और जागृत किया जा सके। देश के अन्य प्रांतों में जहां हिंदी के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषाएं प्रभावी हैं वहां उसी क्षेत्रीय भाषा में वैचारिक साहित्य सृजन कराया जाएगा। विशेष रूप से राष्ट्रीयता के भाव को जगाने व पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक एक भारत श्रेष्ठ भारत निर्माण के लिए प्रयास होगा।
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