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World Cancer Day 2021: जिंदगी जीने के जज्बे से कैंसर को दी मात, प्रयागराज के पंकज रिजवानी अब बने मिसाल

World Cancer Day 2021 37 वर्षीय पंकज रिजवानी जिंदगी जीने के जज्बे के बल पर कैंसर को शिकस्त देने में सफल रहे। उनकी जिंदादिली ने उन्हें तीसरे स्टेज से खुशहाल जीवन में वापस ला दिया। प्रयागराज बेकरी व्यवसायी पंकज रिजवानी को वर्ष 2003 में गले का कैंसर हो गया था।

By Rajneesh MishraEdited By: Updated: Thu, 04 Feb 2021 08:49 AM (IST)
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World Cancer Day 2021 37 वर्षीय पंकज रिजवानी अपने जज्बे से कैंसर को शिकस्त देने में सफल रहे।
प्रयागराज,जेएनएन। कैंसर खतरनाक बीमारी है और अधिक खौफनाक है उसका नाम। ऐसे में सबसे अहम होता जिंदगी के लिए जज्बा। अलोपीबाग निवासी 37 वर्षीय पंकज रिजवानी इसी जज्बे के बल पर कैंसर को शिकस्त देने में सफल रहे। उनकी जिंदादिली ने ही उन्हें तीसरे स्टेज से खुशहाल जीवन में वापस ला दिया।

पंजाबी कालोनी निवासी सेवकराम के बेटे बेकरी व्यवसायी पंकज रिजवानी को वर्ष 2003 में गले का कैंसर हो गया था। गले में गिल्टी होने पर जांच कराई तो पता चला कि कैंसर है। वह बताते हैैं कि मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में नेसोफेरन कार्नोमा (गले का कैंसर) होने का पता चला तो लगा कि सब कुछ खत्म हो जाएगा, लेकिन मन के किसी कोने में जिंदगी को लेकर उम्मीद थी। मुंबई के टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट में एक साल में पंकज के गले के छह आपरेशन हुए। इसके बाद 13 कीमो और 35 रेडियेशन हुए। तीन बार इंडोस्कोपी हुई।

मिल चुके हैं 32 अवार्ड

पंकज ने अपना जीवन कैंसर पीडि़तों के लिए समर्पित कर दिया है। उन्हें पूर्व राज्यपाल राम नाईक, पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मौजूदा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, पूर्व डीजीपी ओपी सिंह समेत 32 लोगों से अवार्ड मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वर्ष 2016 में उन्हें शुभकामना संदेश दिया था। 

रामचंद्र का मंत्र : पान सुपारी, सुर्ती है घातक, इससे बचें

कैंसर होने पर मुसीबत का सामना करने के लिए हौसला बनाए रखना चाहिए। यह संदेश देते हैं प्रतापगढ़ में पट्टी कस्बे के रामचंद्र जायसवाल। वह कैंसर से जंग जीतने के बाद अपने आत्मबल को मजबूत रखकर सामान्य जीवन जी रहे हैं। सुखी जीवन के लिए उनका दूसरों को एक ही मंत्र है- पान, सुपारी, सुर्ती, खैनी, गुटखा घातक है, इसे न खाएं। अनाज का थोक व्यवसाय करने वाले रामचंद्र जायसवाल की पहचान कारोबारी से कहीं अधिक अब कैंसर जागरूकता के लिए होती है। वर्ष 2015 में उन्हें मुंह का कैंसर हो गया था। जिंदगी में एकबारगी मानो अंधेरा छा गया, फिर मित्रों की सलाह पर रामचंद्र मुंबई गए और वहां बेथनी हॉस्पिटल में डॉ. सुल्तान प्रधान से मिले। उन्होंने पहले काउंसलिंग की फिर कुछ दिन बाद ऑपरेशन किया। यह ऑपरेशन सफल रहा और वह जिंदगी की नई सौगात लेकर मुंबई से फिर अपने घर लौटे।

ठीक होने के बाद लिया दूसरों को जागरूक करने का संकल्‍प

इस संकल्प के साथ वह दूसरों को इस तरह जागरूक करेंगे कि अन्य लोग कैंसर का शिकार होने से बच सकें। वह पर्चा और पंफलेट छपवा कर बांटने लगे। दुकान पर आने वाले लोगों को भी जागरूक करने लगे। अगर किसी के कैंसर की चपेट में आने की जानकारी पाते हैैं तो खुद पहुंच जाते हैैं उसे गाइड करने। उनके इस कार्य को रामलीला समिति पट्टी, मोमिन हलवाई कमेटी पट्टी जैसी संस्थाएं सराह चुकी हैैं। सराहना पत्र भी दिया है। कई कई बार मरीजों के साथ वह खुद व्यवसाय बंद कर मुंबई चले जाते हैं। समाज की उनकी इस सेवा में  परिवार के लोग भी बढ़ चढ़ कर सहयोग करते हैैं।

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