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अंबेडकरनगर सीट पर बसपा की नई चाल, इस मुस्लिम चेहरे पर लगाया दांव; अब भी त्रिकोणीय मुकाबला बरकरार

अंबेडकरनगर संसदीय क्षेत्र में कभी बसपा साथ रहे भाजपा और सपा से घोषित प्रत्याशियों के सामने बसपा ने पहली बार यहां मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाकर त्रिकोणीय मुकाबले को आसार को बरकरार रखा है। जिस राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए बसपा ने अपना पूर्व में घोषित प्रत्याशी बदला उसका भी सीधा कारण है कि बसपा यहां अपनी सीट किसी कीमत पर...

By Abhishek Malviya Edited By: Riya Pandey Updated: Tue, 21 May 2024 10:09 PM (IST)
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बसपा ने सपा-भाजपा के सामने मुस्लिम चेहरे पर लगाया दांव
जागरण संवाददाता, अंबेडकरनगर। अंबेडकरनगर संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव रोचक दिख रहा है। कभी बसपा साथ रहे भाजपा और सपा से घोषित प्रत्याशियों के सामने बसपा ने पहली बार यहां मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाकर त्रिकोणीय मुकाबले को आसार को बरकरार रखा है।

जिस राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए बसपा ने अपना पूर्व में घोषित प्रत्याशी बदला उसका भी सीधा कारण है कि बसपा यहां अपनी सीट किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती है। बसपा के कैडर वोटों के साथ मुस्लिम मतदाताओं को साधने के प्रयास में जुटी है। वहीं भाजपा और सपा प्रत्याशी का फोकस बसपा कैडर वोटों को हथियाने पर है। त्रिकोणीय मुकाबले को दर्शाती अभिषेक मालवीय की रिपोर्ट :

बसपा ने पहली बार चुनावी मैदान में उतारा था प्रत्याशी

अकबरपुर सुरक्षित सीट पर वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने यहां अपना प्रत्याशी पहली बार चुनावी मैदान में उतारा था। बसपा के टिकट पर अशोक कुमार चुनाव में लड़े और 1,25,901 मतों के साथ तीसरे स्थान पर पहुंचे थे। वर्ष 1991 में भी पार्टी ने दोबारा उन्हें प्रत्याशी बनाया था, इस बार बसपा के मतों में गिरावट आई थी।

हालांकि इस चुनाव में भी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन वर्ष 1995 में जिला गठन के बाद अकबरपुर सुरक्षित सीट बसपा के मजबूत किले के रूप में तब्दील होनी शुरू हो गई थी। वर्ष 1996 में के चुनाव में बसपा के घनश्याम चंद्र खरवार सांसद चुने गए थे। भाजपा यहां प्रतिद्वंद्वी के तौर पर अपनी दावेदारी पेश की।

सुरक्षित सीट को देखते हुए बसपा की अध्यक्ष मायावती ने भी इसी सीट को चुना और तीन चुनावों में लगातार जीत दर्ज की। बसपा का सीधा मुकाबला सपा और भाजपा से ही रहा था। यही कारण रहा कि वर्ष 2004 में मायावती के सांसद पद से त्यागपत्र देने के बाद हुए उपचुनाव में सपा के शंखलाल माझी ने जीत दर्ज सपा को स्थापित किया।

2014 में बसपा ने दोबारा राकेश पांडेय पर लगाया दांव

वर्ष 2009 के अंबेडकरनगर की सीट सामान्य होने के बाद लोकसभा चुनाव में बसपा ने यहां ब्राह्मण चेहरे के रूप में राकेश पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनाव में ढाई लाख मत हासिल कर उन्होंने जीत दर्ज की थी, जबकि सपा के शंखलाल माझी दो लाख 36 हजार 751 मतों के साथ उपविजेता रहे थे। वहीं भाजपा के विनय कटियार तीसरे स्थान पर थे। वर्ष 2014 में बसपा ने दोबारा सांसद राकेश पांडेय को ही प्रत्याशी घोषित किया।

भाजपा ने डा. हरिओम पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा। वहीं सपा ने शंखलाल माझी के स्थान पर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे राममूर्ति वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया, लेकिन मोदी लहर में अंबेडकरनगर की सीट भी भाजपा के पाले पर चली गई और डा. हरिओम पांडेय सांसद बने। वर्ष 2019 में राकेश पांडेय ने अपनी सीट पुत्र रितेश पांडेय को सौंप दी। बसपा ने उन्हें प्रत्याशी घोषित किया। सपा का गठबंधन होने से बसपा यहां मजबूत स्थिति में रही। वहीं भाजपा से मुकुट बिहारी वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा था।

चुनाव में बसपा को सपा गठबंधन का लाभ मिला और रितेश को 5,64,118 मत प्राप्त हुए। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को लगभग 95 हजार मतों से पराजित किया था। वहीं विधानसभा चुनाव के पहले से बसपा के सभी कद्दावर नेता दूसरे दलों में चले गए।

लोकसभा चुनाव के ठीक पहले रितेश पांडेय ने थामा भाजपा का दामन

वहीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सांसद रितेश पांडेय ने भी पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया, जिसे देख डगमगाई बसपा को इस बार चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर रणनीति बदलनी पड़ी। बसपा अपनी सीट को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती है। यही कारण रहा कि लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद पूर्व में घोषित मोहम्मद कलाम शाह की राजनीतिक पृष्ठभूमि को न देख प्रत्याशी तक बदलना पड़ा।

बसपा ने यहां पार्टी के पुराने नेता और जलालपुर नगर पालिका के अध्यक्ष रहे कमर हयात को प्रत्याशी घोषित किया है। बसपा ने यहां अनुसूचित जाति के चार लाख के करीब वोटों के साथ मुस्लिम के ढाई लाख वोटों पर पूरा दम लगाया है। अब बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि मुस्लिम मतदाताओं को सपा के पाले से खींच पार्टी अथवा प्रत्याशी के समर्थन में लाया जाए।

वहीं भाजपा प्रत्याशी रितेश पांडेय व इंडिया गठबंधन व सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा पार्टी के कैडर वोटों के साथ जातिगत व बसपा के कैडर वोटों को खींचने में मशक्कत कर रहे हैं। सपा के सामन यह भी मुस्लिम मतदाताओं को रोकने की भी चुनौती होगी। अब बसपा अपनी इस रणनीति में कहा तक कामयाब हो पाएगी यह चार जून को परिणाम के साथ सामने आएगा।

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