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Happy Holi: यहां तो लकड़ी-उपले चुराकर जलाई जाती है ‘होली’, गांव-गांव घूमती हैं टोलियां

Happy Holi जिले में होली को लेकर कई परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक अनोखी परंपरा लकड़ी व उपले चुराकर होली जलाने की है। रात के अंधेरे में गांव के बच्चे क्या बड़े व बूढ़े- सभी एक-दूसरे की लकड़ी व उपले चुपके से उठाकर होली में डालते हैं। इसमें हिदू मुसलमान समेत सभी कौम के लोग शामिल होते हैं।

By Dileep Maan Singh Edited By: Aysha Sheikh Updated: Sun, 24 Mar 2024 03:15 PM (IST)
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Happy Holi: यहां तो लकड़ी-उपले चुराकर जलाई जाती है ‘होली’, गांव-गांव घूमती हैं टोलियां
दिलीप सिंह, अमेठी। जिले में होली को लेकर कई परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक अनोखी परंपरा लकड़ी व उपले चुराकर होली जलाने की है। रात के अंधेरे में गांव के बच्चे क्या बड़े व बूढ़े- सभी एक-दूसरे की लकड़ी व उपले चुपके से उठाकर होली में डालते हैं। इसमें हिदू, मुसलमान समेत सभी कौम के लोग शामिल होते हैं।

पता चलने पर हाय-तौबा भी मचती है, मगर होली के रंग में सब रंजो-गुबार सुबह हवा में उड़ जाते हैं। साथ बैठकर पहले गुझिया से मुंह मीठा करते हैं और फगुआ गान के साथ होली की मस्ती में कुछ ऐसे सराबोर होते हैं कि तन-बदन सब रंगीन हो जाता है।

बसंत पंचती से जुट जाती हैं टोलियां

जिले का गांव कोई भी हो कहानी सब जगह एक सी ही रहती है। बस, अलग-अलग गांवों में किरदार बदले हुए होते हैं। अमेठी की माटी के रंग वैसे भी विविधता भरे हैं। अमेठी गंगा-यमुना तहजीब की नगरी है। यहां की परंपरा भी कौमी एकता की नई कहानी लिखने वाली होती है। शहर हो या गांव, बच्चों व युवाओं की टोली होली के लिए लकड़ी जुटाने के काम में वसंत पंचमी से ही जुटी हुई है।

बस होली का रहता है जोश

जायस, गौरीगंज के आस-पास के गांवों में बच्चे रात के अंधेरों में लकड़ी व उपले चुराकर ऊंची-ऊंची होली लगा चुके हैं। हरकरनापुर हो जामो गौरा, जायस नगर हो देहात, गूजरटोला हो या फिर रामदैयपुर, रामनगर हर गांव में होलिका दहन के लिए लकड़ी व उपले के ढेर सजे हुए हैं।

हेरूआ, नयन का पुरवा, पूरे फाजिल, सोगरा में तो हिदू-मुसलमान सभी साथ मिलकर पहले होली के लकड़ी व उपले जुटाते हैं और होली के दिन सब साथ मिलकर होलिका दहन कर प्रेम व भाईचारे के रंग में डूब जाते हैं। - पुरानी है परंपरा, कई किस्से व कहानी भी असईडीह के ननकू व मोहन लाल बताते हैं कि बचपन में यह काम दादा व काका करते थे।

अब नाती व पोते भी परंपरा की डोर को होली के रंग में डुबोकर खुशियों को बढ़ा रहे हैं। भटगवां के रामसुख बताते हैं कि हमारे समय में होली का मजा ही कुछ और था। हम लोग लकड़ी के साथ छप्पर तक उठाकर होली में रख दिया करते थे और लोग अपने सामान की रखवाली करते ही रह जाते थे।

बच्चों को लकड़ी व उपले चुराते देख मन बचपन में लौट जाता है। पुराने दिनों की यादों के साथ होली का रंग चटख हो जाता है। जायस के घनश्याम महेश्वरी, मऊ अतवारा के मानधारा सिंह, मुसाफिरखाना के हनुमंत सिंह व जगदीशपुर के राम नेवाज ओझा व मोहब्बतपुर के श्याम प्रसाद तिवारी कहते हैं कि होली में नए रंगों के बीच पुराने दिनों की यादें ताजा हो उठती हैं।

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