कोरोना ने मिट्टी के बर्तन बनाने वालों के अरमानों पर फेरा पानी
अमरोहा ऐतिहासिक दशहरा मेला आसपास में ही नहीं बल्कि अन्य जनपदों में भी मिट्टी के बर्तनों की बिक्री होती है।
By JagranEdited By: Updated: Mon, 21 Sep 2020 10:43 PM (IST)
अमरोहा : ऐतिहासिक दशहरा मेला आसपास में ही नहीं, बल्कि अन्य जनपदों में भी मिट्टी के बर्तनों के लिए अपनी पहचान बनाए हुए था। मेले में कारीगर तरह-तरह के मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचते थे और छह माह की रोजी रोटी का इंतजाम कर लेते थे। मेले को भुनाने के लिए कारीगर इस बार भी छह माह पहले से ही बर्तन बनाने में पूरे परिवार के साथ जुट गए थे लेकिन, अबकी बार कोरोना ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। कोरोना के चलते दशहरा मेला नहीं लगने से उनकी रोजी रोटी पर संकट गहराया हुआ है।
नगर का दशहरा मेला आसपास में ही नहीं, बल्कि अन्य जनपदों में भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। मेले से मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की रोटी जुड़ी है, क्योंकि मेले के लिए सम्भल, बिजनौर, कांठ, मुरादाबाद तक के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगर सक्रिय हो जाते थे और मोटा मुनाफा कमाकर छह माह की रोजी रोटी कमा लेते थे। लिहाजा अबकी बार भी कारीगर मेले को भुनाने के लिए छह महीने पहले से ही अपने परिवार के साथ बर्तन बनाने में जुट गए थे। बड़ी तादाद में हांडी, मटकी, घड़े, गमले, कुल्हड़, गोलक, हुक्के की चिलम आदि बनाकर स्टॉक तैयार कर लिया लेकिन कोरोना प्रकोप के चलते अबकी बार दशहरा मेला नहीं लगेगा। इससे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों की रोजी पर संकट गहरा गया है। जनपद बिजनौर के फीना गांव के इंद्रराज भी अपने परिवार के साथ बर्तन बेचने आते थे। वह बताते हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाने का काम हमारे दादा-परदादा के जमाने से चला रहा है। वह मिट्टी के बर्तन बेचकर ही परिवार का पालन पोषण करते थे। जबकि अमरोहा के रहने वाले नसीम भी मिट्टी के बर्तन बनाकर दशहरा मेले में बेचते थे और छह माह की रोजी रोटी का इंतजाम कर लेते थे। उन्होंने बताया कि हमारा मिट्टी के बर्तन बनाने का काम दादा के जमाने से है। अबकी बार भी छह माह पहले से ही पत्नी नायाब बेगम के साथ बर्तन बनाए लेकिन कोरोना ने अरमानों पर पानी फेर दिया। कोरोना के चलते दहशरा मेला और बाजार नहीं लगने से रोजी रोटी पर संकट गहरा गया है। कारोबार ठप होने से भाइयों ने छोड़ा काम
अमरोहा : कारीगर नसीम ने बताया कि हमारा मिट्टी के बर्तन बनाने का काम पुश्तैनी है। भाई अब्दुल शकूर और नसीर अहमद भी बर्तन बनाकर जगह-जगह लगने वाले बाजारों और मेलों में बेचते थे, लेकिन कोरोना के चलते बाजार नहीं व मेले लगने पर प्रतिबंध है। जिससे मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने का कारोबार ठंड हो गया। भाइयों ने बर्तन बनाने का काम छोड़ दिया और वह ईंट के भट्ठों पर काम कर रहे हैं।
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